दुआओं के एंटीबॉयटिक का फ़ौरन असर होता है
सूरज भाई पेड़ की फ़ुनगियों से झांक रहे हैं. पीटी मास्टर सरीखे किरणों, उजाले, रोशनी , प्रकाश को इधर-उधर पसरने, छा जाने का संकेत दे रहे हैं. ऊर्जा-सीटी बजाते हुये सारे अंधेरे को भाग जाने का इशारा कर रहे हैं. एक पेड़ के नीचे कोहरा अंधरे के साथ खड़ा एक किरण के साथ कुछ बदतमीजी सी करता दिखा तो सूरज भाई के इशारे पर उजाले ने उसकी तुड़ैया कर दी. कोहरे की हड्डी-पसली बराबर कर दी. भागा कराहते-कांखते हुये.
हम सूरज भाई को अपने काम में व्यस्त देखकर चाय लाने के लिये बोलकर सोचने लगे कि कैसे सूरज भाई अपनी किरणों, उजाले, रोशनी को लाखों किलोमीटर से नीचे लाते होंगे? सोचा शायद एक चद्दर में इकट्ठा करके सुबह-सुबह धरती की तरफ़ उछाल देते होगे सबको जैसे मछेरा पानी में जाल फ़ेंकता है. या फ़िर कोई फ़िसलपट्टी सरीखी बना रखी होगी अपने और धरती के बीचे जिसमें किरणें आदि खिलखिलाते हुये रपटती आती होंगी सर्र देना नीचे. क्या पता रोशनी की सीढियां भी बना रखी हों जिसमें से कुछ किरणें धड़धड़ करते , अपना चकमक लंहगा जीने से उतरती दुल्हन सरीखा समेटे, चली आती हों. जिस रास्ते सूरज भाई का काफ़िला गुजरता होगा वह हावड़ा स्टेशन पर की सीढियों सरीखा दिखता होगा, जहां लोग पानी की तरह उफ़नते , गुम होते दीखते होंगे.
सूरज भाई कभी किसी किरण को या उजाले को चोट भी लगती होगी अंधेरे से उलझनें ? तब क्या करते हैं? चाय पीते हुये सूरज भाई से हमने पूछा.
अमूमन ऐसा होता नहीं. अंधेरा हमारे बच्चों को देखकर ऐसे भागता है जैसे किसी चाटू कवि से श्रोता या फ़िर भीड़ को देखकर अकल की बात. लेकिन कभी अगर किसी को चोट लगती भी है तो हम उसको ऊर्जा के इंजेक्शन लगाते हैं, आपकी दुआओं के एंटीबॉयटिक देते हैं. फ़ौरन असर होता है. मन से की गयी दुआओं का बड़ा असर होता है. वो कविता है न :
मैंने मांगी दुआयें, दुआयें मिलीं,
अब दुआओं पर उनका असर चाहिये.
चाय पीते हुये हम दोनों मुस्कराते सबकी सलामती की दुआ करने लगे. देखा कि उनमें पूरी कायनात की मौन दुआयें शामिल हो रही हैं. सुबह हो गयी है. किरणें , रोशनी के साथ खिलखिलाते हुये सब तरफ़ पसर रहीं हैं. उजाला और प्रकाश मुस्कराते हुये उनके साथ हैं.
16 सितम्बर 1963 को कानपुर के एक गाँव में जन्मे अनूप शुक्ल पेशे से इन्जीनियर हैं और भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय में कार्यरत हैं. हिन्दी में ब्लॉगिंग के बिल्कुल शुरुआती समय से जुड़े रहे अनूप फुरसतिया नाम के एक लोकप्रिय ब्लॉग के संचालक हैं. रोज़मर्रा के जीवन पर पैनी निगाह रखते हुए वे नियमित लेखन करते हैं और अपनी चुटीली भाषाशैली से पाठकों के बांधे रखते हैं. उनकी किताब ‘सूरज की मिस्ड कॉल’ को हाल ही में एक महत्वपूर्ण सम्मान प्राप्त हुआ है
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