सुन्दर चन्द ठाकुर

अपनी मूर्खता से न मरो, प्रकृति की इज्जत करो

यह बात सही है कि पृथ्वी पर जिसका जन्म हुआ है, उसे एक दिन मरना भी है. लेकिन आ बैल मुझे मार वाली नौबत क्यों आए. पिछले कुछ महीनों में मुझे सोशल मीडिया और खबरों के जरिए मृत्यु की जैसी खबरें देखने, पढ़ने को मिलीं, वे सभी दर्दनाक थीं. मृत्यु एक दर्दनाक हादसा ही है. पर मैंने गौर किया कि कई जगह लोगों ने खुद ही मृत्यु को आमंत्रित किया. वे थोड़ा भी प्रज्ञा से काम लेते, थोड़ा भी प्रकृति का सम्मान करते, तो दुर्घटना से बच सकते थे. सबसे दुखद उस लड़की की मृत्यु के बारे में जानना था, जिसने हिमाचल में किन्नौर की एक घाटी में अपनी सेल्फी ट्वीट की और आधे घंटे बाद ही पहाड़ से गिरते पत्थरों की चपेट में आकर मारी गई. इन पत्थरों की चपेट में आकर नौ लोगों की जान गई थी.
(Mind Fit 49 Column)

पहाड़ों में खराब मौसम के वक्त जिंदगी और मौत के दरमियान बहुत कम फासला रहता है. वहां जाने कितनी बार बादल फटने की दुर्घटनाएं हो चुकी हैं. इनमें गांव, घर और लोग बहे हैं. जो लोग पहाड़ों में रहते हैं, वे जानते हैं कि वहां खास जगहें होती हैं, जहां अक्सर भूस्खलन होता है. जहां भूस्खलन होता है, वहां आप बहादुरी नहीं दिखा सकते, क्योंकि आपकी जान सिर्फ संयोग की मोहताज होती है. ऊपर से कोई पत्थर गिरे और नीचे आप या आपकी गाड़ी न हो, यह संयोग घटित हो, तो आप बच जाओगे. पर अगर न हो तो?

पृथ्वी पर मनुष्य लाखों वर्षों से प्रकृति के बीच रह रहा है. हमारे दिमाग को हर तरह के खतरों का एहसास होता है. लेकिन फिर भी हम मूर्खताएं करते हैं. खतरों का खिलाड़ी बनते हैं. रोमांचित होने के लिए दुस्साहस करते हैं. किन्नौर की इस घाटी में पहाड़ से जब पहला पत्थर लुढ़कते हुए नीचे आया था, तो इतने से ही पर्याटकों को चौकन्ना होकर उनकी जद से दूर निकल जाना चाहिए था. ऊपर से वेग से आने वाला एक बहुत छोटा-सा पत्थर भी अगर किसी के सिर पर लग जाए, तो खोपड़ी चटकनी तय है. वहां तो बड़े-बड़े पत्थरों की बरसात हो रही थी.

मैंने एक दूसरा विडियो देखा जिसमें एक सड़क एक नदी के मुहाने तक जाकर खत्म हो रही थी. वहां लोग जमा थे, क्योंकि नदी या नाला, सामने जो भी था, उसका जलस्तर बढ़ गया था. एक दुस्साहसी ड्राइवर लोगों के मना करने के बावजूद नदी पार करने चल पड़ा. वह आधे रास्ते भी नहीं पहुंचा था कि पानी के वेग से गाड़ी बहने लगी. विडियो में गाड़ी को बहते दिखाया गया. ड्राइवर बचा या नहीं, मालूम नहीं चलता पर उसकी मूर्खता साफ दिखाई देती है.
(Mind Fit 49 Column)

ऐसा ही एक दूसरे विडियो में हाथियों के एक दल को सड़क पार करते दिखाया गया है. यह 40-50 हाथियों को बड़ा दल था. सड़क पर दोनों ओर कुछ बावले लड़के बीच से गुजरते हाथियों को अलग-अलग ढंग से उकसाने की कोशिश करते हैं. हाथियों में कई छोटे बच्चे भी हैं जिन्हें उनकी मांएं अपने साथ सुरक्षित सड़क पार करवा रही थीं. पूरे दल के पार होते-होते एक बड़े डील-डौल का हाथी उन बावले लड़कों पर बिगड़ गया. वह उनकी ओर भागा, तो बाकी तो दौड़कर दूर चले गए, पर उनमें से एक पत्थर की ठोकर खाकर गिर पड़ा. उसके उठने तक गुस्से से भरा बुरी तरह झुझलाया हुआ हाथी उसके सिर पर था. उसने दो-चार बार उस पर अपना पैर रखकर उसे मसला और वापस लौट गया. यह सब महज 30 सेकंड में हो गया. वह लड़का भी बचा या नहीं, कह नहीं सकता, पर क्या जरूरत थी हाथियों को भड़काने की. उन्हें चुपचाप भी निकलने दिया जा सकता था. अपनी ओर से वे बहुत शालीनता से कतार में सड़क पार कर रहे थे.

असल में हमें साहस और दुस्साहस में फर्क करना नहीं आता. कई बार यही अज्ञानता हम पर भारी पड़ जाती है. साहसिक अभियानों में जाना एक बात है. मैं नहीं कहता कि इंसान को डरना चाहिए. डर के आगे जीत है, यह बात तो हमें पता ही है. लेकिन अगर मूसलाधार बारिश हो रही है और आपको पता है कि मुंबई की सभी सड़कों में बेहिसाब पानी भर चुका है, तब भी अगर आप ‘जो होगा देखा जाएगा’ कहते हुए घर से निकलते हैं, तो इसे क्या कहेंगे. ऐसा भी नहीं कि आपको मुंबई में 26 जुलाई 2005 की बारिश से हुए हादसे के बारे में नहीं पता. कितने लोग सड़कों पर अपनी गाड़ियों के बाहर ही नहीं आ पाए. गाड़ियां ही सबकी कब्र बन गईं. लेकिन हमें हमेशा ये लगता है कि दुर्घटनाएं दूसरों के साथ होने के लिए बनी हैं. हमें कुछ नहीं होगा. कहीं न कहीं दुस्साहस के लिए हमारा अहंकार जिम्मेदार है. हम खुद को प्रकृति से ज्यादा ताकतवर समझने की गलती कर बैठते हैं. उसका तिरस्कार करते हैं. हम भूल जाते हैं कि उसकी एक फूंक हमें अनंत में विलीन कर सकती है. वह कर ही देती है.
(Mind Fit 49 Column)

-सुंदर चंद ठाकुर

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कवि, पत्रकार, सम्पादक और उपन्यासकार सुन्दर चन्द ठाकुर सम्प्रति नवभारत टाइम्स के मुम्बई संस्करण के सम्पादक हैं. उनका एक उपन्यास और दो कविता संग्रह प्रकाशित हैं. मीडिया में जुड़ने से पहले सुन्दर भारतीय सेना में अफसर थे. सुन्दर ने कोई साल भर तक काफल ट्री के लिए अपने बचपन के एक्सक्लूसिव संस्मरण लिखे थे जिन्हें पाठकों की बहुत सराहना मिली थी.

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