क्या आपने इस ओर ध्यान दिया कि किस तरह होश संभालने के बाद से आप मुसलसल भाग रहे हैं. कुछ यूं कि आपको दम भरने की फुर्सत नहीं मिल रही. स्कूली दिनों से ही कभी इम्तहानों के चलते या खेलकूद और तरह-तरह की दूसरी प्रतिस्पर्धाओं में माता-पिता, टीचर्स और दोस्तों की अपेक्षाओं पर खरा उतरने के वास्ते आपने खुद पर एक दबाव बनता महसूस किया होगा. वही मनोवैज्ञानिक स्तर पर उस दौड़ की शुरुआत थी, जो आज तक खत्म न हो पाई है. यह दौड़ थी जीवन में सब कुछ पाने की. आपको जो भी दूसरों के पास दिखा – अच्छी गाड़ी, बड़ा ओहदा, सुख-सुविधाएं, बड़ा घर, सुंदर बीवी, शोहरत और भी न जाने क्या-क्या. यह एक अंतहीन फेहरिस्त है. मजे की बात यह कि आपके पास वाकई सुंदर बीवी आ गई, अच्छी गाड़ी भी आ गई, आपने घर भी ले लिया गया, अच्छी नौकरी भी मिली और कई प्रमोशन भी हुए, आपको शोहरत भी मिली, लेकिन आपकी दौड़ थी कि रुकने को न आई. हमेशा कुछ न कुछ नया शुरू हो जाता था.
(Mind Fit 46 Column)
आप जिंदगी में खुद सेटल हुए, तो अब बच्चे टीनऐज में पहुंच गए. अब उनके करियर का मसला अहम हो गया. उसमें आप जरा भी लापरवाही नहीं दिखा सकते थे. बच्चों के सेटल होने तक आपका अपना रिटायरमेंट फन उठाए खड़ा था. और इस बीच यूं बिना रुके लगातार दौड़ते रहने से सेहत के कई मसले अलग ध्यान खींचने लगे थे. आपको खबर ही न लगी कि कब आपका दिल बिना जरूरत तेज धड़कने लगा और डायबिटीज के चलते चाय में शक्कर पर प्रतिबंध लग गया. और तब पहली बार आप यह सोचकर थोड़ा कांप जाते हैं कि अरे, जिस सुकून को पाने की तलाश में दौड़ना शुरू किया था, कहीं उसका स्वाद लिए बिना दुनिया से कूच न करना पड़ जाए.
सवाल यह है कि क्या बिना दौड़े, बिना किसी भी तरह के दबाव या तनाव में आए हम एक सुकून भरा जीवन नहीं जी सकते? बिल्कुल जी सकते हैं. अलबत्ता जब आप किसी दबाव या तनाव में आकर भाग नहीं रहे होते और पूरे होशोहवास में बिना किसी डर के जीवन जी रहे होते हैं, तो ज्यादा बेहतर तरीके से जीवन जी पाते हैं. आपका चीजों को देखने का नजरिया ही बदल जाता है. आप बीवी की तलाश करते हुए दूसरों को प्रभावित करने के लिए सुंदर, स्मार्ट लड़की की बजाय आपसे प्रेम करने वाली ऐसी सिंपल लड़की खोजते हो, जिसे आप भी प्रेम करते हों. आप नौकरी की बजाय ऐसा काम देखते हो, जिसे लेकर आपमें जुनून हो. यह जुनून आपको कभी प्रमोशन और पैसे की अलग से चिंता नहीं करने देता, क्योंकि दोनों ही जुनून के बाई-प्रॉडक्ट हैं. सचिन तेडुलकर को अपने खेल के लिए जुनून बनाकर रखना पड़ा, पैसे और प्रतिष्ठा की कभी चिंता नहीं करनी पड़ी. इसके बजाय कि आप बीवी, नौकरी, पद, पैसे, मकान, रुतबे के पीछे भागें, आप किसी जुनून पर सवार हो जाएं. एक अदद जुनून ही आपको यह सब दिलवा देगा.
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लेकिन अगर आप इन सांसारिक चीजों को पाने भर के लिए जुनून की सवारी करेंगे, तो भी शायद आपकी सुकून की तलाश खत्म न हो. दुनिया में जाने कितने जुनूनी लोग हैं, जिनके पास सबकुछ है, पर सुकून नहीं. सवाल जीवन के प्रति हमारे नजरिए का है. हम सांसारिक सफलताओं को ही जीवन की सफलता मानते है. सबकुछ हमें बाहर चाहिए. लेकिन एक दुनिया हमारे भीतर भी तो है. उसका क्या? कबीर तो एक गरीब जुलाहा ही थे. ईसा मसीह भी कोई बहुत धनी परिवार में न जन्मे थे. गौतम बुद्ध और महावीर ने अपने राजपाट त्याग दिए थे. वे सांसारिक मायनों में समृद्ध न थे, पर हम जानते हैं कि उनसे ज्यादा समृद्ध नहीं हुआ जा सकता. सबसे बड़ी बात बाहरी और भीतरी समृद्धता के बीच संतुलन है. इस संतुलन के आने पर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपके पास कितना बड़ा मकान है, कितनी सुंदर बीवी है, आप किस ओहदे पर हो, आपका बैंकबैलेंस कितना है. आप जीवन की ओर भाग नहीं रहे होते, जीवन भागते हुए आपकी ओर आने लगता है. याद रखें कि हमारी दौड़ जब अहं-केंद्रित होती है, तो जल्दी ही वह तृष्णा में बदल जाती है. तृष्णा आपका जीवन निगल जाती है.
जरूरत जागने की है. जागते ही जीवन का स्वाद बदलना तय है. जागते ही अंधी दौड़ अपनी आप रुक जाएगी. लेकिन जागने के लिए आपको अपने अहं को सुलाना पड़ेगा. अहं को सुलाने के लिए आपको ध्यान में जाना पड़ेगा. जितना ध्यान की गहराई में हम उतरेंगे, उतना हमें जीवन साफ समझ में आता जाएगा. यह समझ, यह जागरण, बिना प्रयास के आपको वह सब दे देगा, जिसे पाने के लिए आप अपने प्राण हथेली पर रखकर बेहोशी में बेतहाशा भागते ही जा रहे थे.
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-सुंदर चंद ठाकुर
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कवि, पत्रकार, सम्पादक और उपन्यासकार सुन्दर चन्द ठाकुर सम्प्रति नवभारत टाइम्स के मुम्बई संस्करण के सम्पादक हैं. उनका एक उपन्यास और दो कविता संग्रह प्रकाशित हैं. मीडिया में जुड़ने से पहले सुन्दर भारतीय सेना में अफसर थे. सुन्दर ने कोई साल भर तक काफल ट्री के लिए अपने बचपन के एक्सक्लूसिव संस्मरण लिखे थे जिन्हें पाठकों की बहुत सराहना मिली थी.
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