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उत्तराखंड में राजनैतिक पार्टियों द्वारा घोषित ‘मुफ्त की बिजली’ जमीन पर कितनी ठहरती है

उत्तराखंड में 2022 में चुनाव की हवा तेज हो गयी है. पहले आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की तर्ज पर उत्तराखंड में भी बिजली फ्री देने का वादा किया फिर कांग्रेस नेता हरीश रावत ने अपनी सरकार बनने पर 200 यूनिट बिजली फ्री देने का वादा किया. इसके बाद सरकार ने जल्द ही उत्तराखंड में घरेलू उपभोक्ताओं को 100 यूनिट बिजली निःशुल्क देने और साथ ही 200 यूनिट तक 50% सब्सिडी देने की घोषणा कर दी.
(Free Electricity in Uttarakhand)

आज देहरादून आये आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अरविन्द केजरीवाल ने देहरादून आकर 300 यूनिट बिजली फ्री देने की घोषणा कर दी. चुनावी वर्ष में राजनैतिक पार्टियों द्वारा किया जा रहा यह वादा जमीन पर कितना उतर सकता है इस बात पर भी नज़र डाली जानी चाहिये.

एक अनुमान के अनुसार उत्तराखंड में वर्तमान में 26 लाख बिजली के कनेक्शन हैं. अगर वर्तमान सरकार की घोषणा की बात कि जाय तो इनमें से करीब 17 लाख उपभोक्ता लाभान्वित होंगे. इसका खर्चा करीब 44 करोड़ करीब आना इस लिहाज से उत्तराखंड सरकार को हर साल बजट में करीब 500 करोड़ फ्री में बिजली बांटने के लिये रखना होगा.
(Free Electricity in Uttarakhand)

अब जिस विभाग को यह काम करना है उसकी हालत पर भी एक बानगी जरुर देखा जाना चाहिये. उत्तराखंड राज्य उर्जा निगम वर्तमान में 3 हजार करोड़ के नुकसान में चल रहा है. इसपर यह 500 करोड़ का यह अतिरिक्त वार्षिक नुकसान कैसे भरा जाएगा इसकी कोई ख़ोज खबर नहीं है.

उत्तराखंड सरकार जिसका ख़ुद का बजट के केंद्र के अनुदान पर चलता है. राज्य में तमाम ऐसे विभाग हैं जिनकी तनख्वा तक सरकार समय से नहीं दे पाती है. इस पर मुफ्त बिजली जैसी योजना राज्य के लिये कितनी फायदेमंद होगी यह समय पर छोड़ दिया जाना चाहिये.
(Free Electricity in Uttarakhand)

काफल ट्री डेस्क

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  • सम्पादक जी, लेख बहुत सटीक लगा . जनताको इसकी आवश्यकता थी . उत्तराखंड विषयों पर उभरती व व्यापक लोकप्रियता को प्राप्त करने वाले इस समाचार, संस्कृति , इतिहास व सामयिकी पर लेख प्रस्तुत करने के इतर टुच्ची आर्थिक नीति को लेकर उत्तराखंड में पैठ बनाने की कोशिश करने वालों को ये लेख छापकर आपने आइना दिखाया है उन लोगों को जो पढ़े-लिखे का ढोंग कर सस्ती लोकप्रियता प्राप्त कर राज्य में पुनः दिल्ली से चलने वाली सरकार स्थापित करना चाहते हैं. ये दो रुपैया का चावल और धोती बाँट कर सता हथियाने का ज्ञान कब का निचले दर्जे का मान लिया गया है. न तो ये सरकारों के पक्ष में साबित हुआ न ये उस प्रदेश की आर्थिकी के लिए अच्छा साबित हुआ . आर्थिक विषयों पर बौधिक खोखला पन लेकर आप ये कहाँ आ गए ?? हमें ये नहीं चाहिए . हमें चाहिए था पलायनं रोकने का चिंतन ? क्या आपने एक राजनैतिक विकल्प देने के लिए पलायन पर कोई अध्ययन की टीम बनायी ? क्या ऐसे किसी अध्यौं पर ध्यान दिया ? यदि दिया तो उसका समाधान एक बहुत बड़ी गिफ्ट हो सकती है . और यदि इस और ध्यान ही नहीं दिया तो फिर आप यहाँ आ ही क्यों रहे हैं? कोई भी यहाँ की पलायन की समस्या का अध्ययन करेगा तो उसे जो कारण मिलेंगे उनका ही समाधान करने का मन यहाँ शासन करने के लिए चाहिए . हम उत्तराखंड में राजनैतिक उठापटक का नाटक नहीं देखना चाहते . यहाँ मतदाता देश के अन्य क्षेत्रों से कही अधिक विवेकशील साबित हुआ . इन मतदाताओं ने उठापटक के चलते यहाँ के क्षेत्रीय दलों को मुख्य राजनीति से सदैव के लिए विदा कर दिया . और ऐसा देश के अन्य राज्यों में ना हुआ ना होगा . जिस प्रदेश के मतदाता स्थायित्वा ना मिलने से, क्षेत्रीय संकुचन की भावना को हटा सकते हैं वे आर्थिक नौटंकी का झुनझुना देकर सत्ता चाहने वालों को भी कुछ नया और मौलिक सोचने को मजबूर कर सकते हैं .

  • लेखक ने उचित बात उठाई है । केवल फ़्री बांटने की राजनीति से किसी राज्य या देश का भला नहीं होने वाला है। हालांकि कांग्रेस और भाजपा ने हमेशा उत्तराखंड की अनदेखी की है जिसका परिणाम पलायन के रूप में दिखाई देता है । अतः परिवर्तन समय की मांग है । रही बात दिल्ली मॉडल की, तो बिजली पानी में सुधार के साथ ही शिक्षा वी स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी पहले की अपेक्षा आप सरकार ने अच्छा काम किया है ।

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