यात्रा पर्यटन

कॉर्बेट पार्क में जब बाघिन मां दुर्गा की भक्ति में डूबी दिखी

आज मैं आपके साथ ऐसा वाकया साझा कर रहा हूँ जिसके बाद भगवान के प्रति मेरी आस्था को और बल मिला. इस दिन मुझे किस्से-कहानियों में सुनी बातों को अपनी आँखों के सामने चरिथार्थ होते हुए देखने का मौक़ा मिला. बात सन 2016 के जून महीने की है. (Memoirs of Corbett Park by Deep Rajwar)

कॉर्बेट पार्क में परम्परा रही है कि जब भी पार्क बंद होता है तब पार्क के गाइडों या प्रशासन द्वारा माँ वन देवी का भण्डारा आयोजित किया जाता है. वन देवी को माँ दुर्गा का ही रूप माना जाता है. भण्डारे द्वारा हम सभी पार्क में साल भर हुए सफल पर्यटन के लिए माँ का धन्यवाद अदा करते हैं. भंडारा शुरू करने से पहले जंगल के अंदर बने वन देवी के मंदिर में भोग लगाया जाता है. बात बिज़रानी सफ़ारी ज़ोन की है.

उस दिन मुझे भी भोग लगाने वाली टीम के साथ अंदर जाने का मौक़ा मिला. बिज़रानी कैम्पस से थोड़ा पहले बने माँ के मंदिर में पूजा-अर्चना करने के बाद पुजारी बोले कि आप लोग जो प्राचीन वन देवी मंदिर में जाकर वहाँ भी भोग लगा आओ. यह मंदिर जंगल के भीतर एक विशालकाय बरगद के पेड़ के नीचे है. हम लोग जिप्सी में भोग लगाने को चल दिए. वहाँ जाने के दौरान हम सभी के बीच एक ही बात चल रही थी कि माँ के वाहन, यानि बाघ, के दर्शन हो जायें तो भंडारा सफल हो जाए. इस प्रार्थना के साथ जैसे ही हम उस जगह पहुँचे तो जो देखा उस पर सहज ही विश्वास करना मुश्किल हो रहा था. वह कुछ ऐसा था जिसे हमने केवल किस्से-कहानियों में ही सुना था. उस पल को सामने घटित होता देखकर हम सभी हक्के-बक्के एक दूसरे का मुँह ताक रहे थे.

हमारे सामने बरगद के पेड़ के नीचे बने मंदिर में साक्षात माँ दुर्गा का वाहन मूर्ति पर अपना  सर टिकाये बैठा हुआ था. पेड़ की टहनी पर लटकी घंटी हवा से हिलकर आवाज़ कर रही थी. वाकया हतप्रभ करने वाला था.

मुझे याद है जब मैं छोटा था तो बड़े-बुज़र्गो से सुना करता था कि ख़ास तौर से गर्जिया देवी और सीताबनी मंदिर में रोज़ रात को माँ के दर्शन करने को बाघ आया करता है. शायद हम सभी ने इस तरह का कोई किस्सा सुना होगा. हिंदू धर्म में बाघ को माँ दुर्गा के वाहन के रूप में पूजा जाता है.

जिम कॉर्बेट ने भी अपनी किताब टेम्पल टाइगर में इस मान्यता का ज़िक्र किया है और मैं इसे अपने सामने घटता हुआ देख रहा था. इस पर यक़ीन कर पाना मुश्किल था. बाघिन बड़े प्यार से अपनी गर्दन मूर्ति के ऊपर रखकर आँखे बंद कर लेटी हुई थी, मानो कोई भक्त माँ की अराधना में लीन हो. ये भक्त कोई और नहीं इस ज़ोन की सबसे प्रसिद्ध बाघिन ‘शर्मीली’ थी.

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कुछ देर बाद उसने आँख खोलकर हमें देखा और फिर भक्ति में लीन हो गई. लगभग 15-20 मिनट बाद वह उठी और मंदिर के प्रांगण में बैठकर दोबारा आँखें बंद कर फिर भक्ति में डूब गई.

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हमने भी उसकी भक्ति में ख़लल उचित नहीं समझा और उसे वही छोड़कर इस अदभुत नज़ारे से रू-ब-रू कराने के लिए हाथ जोड़कर माँ का धन्यवाद अदा किया और भोग को मंदिर के सामने रास्ते में ही रखकर हम वापस लौट आये.

रामनगर में रहने वाले दीप रजवार चर्चित वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर और बेहतरीन म्यूजीशियन हैं. एक साथ कई साज बजाने में महारथ रखने वाले दीप ने हाल के सालों में अंतर्राष्ट्रीय वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर के तौर पर ख्याति अर्जित की है. यह तय करना मुश्किल है कि वे किस भूमिका में इक्कीस हैं.

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Sudhir Kumar

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