बैसाख की पूर्णिमा को पूरे विश्व मे बुद्धपूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है. भगवान बुद्ध का जन्म, परिनिर्वाण और ज्ञान की प्राप्ति ये तीनों महत्वपूर्ण घटनाएं उनके जीवन में इस एक ही दिवस विशेष पर घटित हुई थीं. जन्म और निर्वाण की बात हम नहीं करेंगे, ये सामान्य मानवीय घटनाएं हैं किंतु तीसरी अर्थात बोधप्राप्ति की घटना महत्वपूर्ण है जिसके घटित होने पर राजकुमार सिध्दार्थ गौतम, भगवान गौतम बुद्ध हुए.
(Mandrolling Monastery Dehradun)
हमारे देश में लगभग 25 से अधिक बौद्ध मठ हैं, जहां बौद्ध संस्कृति और परंपराओं को सीखा जा सकता है. ये सभी मठ देश के अलग-अलग हिस्सों में स्थित हैं, जो भारत में फैली बौद्ध धर्म के इतिहास को दर्शाता है. अरुणाचल प्रदेश से लेकर लद्दाख तक कई ऐसे बौद्ध मठ हैं जो अपनी संरचना के लिए जाने जाते हैं. बेहद खूबसूरत तरीके से निर्मित यह सभी बौद्ध मठ आपको शांति का अनुभव कराएंगे.
उन्हीं मठों में उत्तराखंड के प्रसिद्ध पर्यटक स्थल देहरादून के क्लेमेन्टाउन में बौद्ध धर्म के अनुयायियों द्वारा स्थापित है मिन्ड्रोलिंग मठ. यह मठ बौद्ध धर्म के इतिहास, परम्परा व वास्तुकला के उत्कृष्ट उदाहरण को दर्शाती है. यहाँ रोज़ सैंकड़ों की संख्या में पर्यटक आते हैं. यह भारत के सबसे अनूठे और खूबसूरत मठों में से एक है . यह मठ पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र है. 1676 में इस मठ के निर्माण में रिग्जिन टेरडक लिंगपा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
यह 107 फीट की ऊंचाई पर स्थित भगवान बुद्ध की महत्वपूर्ण मूर्तियों में से एक है अतः इसको भारत का सबसे ऊंचा स्तूप भी माना जाता है. यहां प्रतिवर्ष 300 से अधिक बौद्ध भिक्षु रहते हैं जो शिक्षा, दीक्षा, अध्ययन ,अध्यापन और जीवन का महत्वपूर्ण समय व्यतीत करते हैं, इस स्थल को बौद्ध धर्म का महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल माना जाता है और यही वजह है कि यहां बौद्ध धर्म को मानने वाले लोग प्रतिवर्ष अधिक से अधिक संख्या में आते हैं.
महत्व
यह एक बौद्ध महास्तूप ही नहीं बल्कि खूबसूरती का बेजोड़ नमूना भी है, जिसके कारण बौद्ध अनुयायियों में इसका बड़ा ही जीवंत एवं धार्मिक महत्त्व है. इस स्तूप की चौथी मंजिल की दीवार पर महात्मा बुद्ध के एक हज़ार चित्र हैं जो महात्मा बुद्ध के संपूर्ण जीवन चक्र का जीवंत वर्णन करता है. यहाँ पर स्थित उद्यान भी काफ़ी मनमोहक और अपनी खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध है जो यहाँ देश विदेश से आने वाले पर्यटकों और श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है.
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क्लेमेन्टाउन देहरादून स्थित मिन्ड्रोलिंग स्तूप तिब्बतियों के बौद्ध धर्म की परम्परा व वास्तुकला का पूरे विश्व में अपने प्रकार का एक मात्र सबसे बड़ा व अनूठा संगम है. इस महास्तूप का उद्घाटन तिब्बतियों के धर्म गुरु दलाई लामा द्वारा हज़ारों श्रद्धालुओं की उपस्थिति में 28 अक्टूबर, 2002 को किया गया था.
इस स्तूप को बनाने में निंगमपा समुदाय के सर्वोच्च गुरू मिन्ड्रोलिंग ट्रिचेन व खोचेन, जिन्होंने की 185 फ़ीट ऊंचा महास्तूप का निर्माण किया था और इस स्तूप को बनाने में अपना मार्गदर्शन दिया था. पांच मंजिला इस महास्तूप की प्रत्येक मंजिल पर एक देवालय है, जो कि अलग-अलग बौद्ध भिक्षुओं और गुरुओं को समर्पित किया गया है.
स्तूप की पहली मंजिल ओडियाना के महागुरु पद्मसम्भव को समर्पित है. इस कक्ष में महागुरु पद्मसम्भव की एक बड़ी प्रतिमा स्थित है चारों ओर दीवारों पर महागुरु की जीवन कथा के 108 अध्यायों को अनूठी चित्रकारी द्वारा दर्शाया गया है.
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दूसरी मंजिल पर भगवान बुद्ध की बड़ी प्रतिमा स्थित है.जिसमें उनकी जीवन लीला का चित्रण दीवारों पर आज भी बहुत ही जीवंत प्रतीत होता है. स्तूप की तीसरी मंजिल पर एक मंडला स्थित है. महास्तूप की चौथी मंजिल की दीवार पर 1000 बुद्ध के चित्र हैं. जो चित्र उनके ओजश्वी स्वरूप की याद आज भी हमें दिलाते हैं.
बौद्ध स्थल की पांचवी मंजिल पर बारह जोगचेन बुद्ध का चित्रण किया गया है.जो बौद्ध जीवन के सजग रूप को दर्शाता है. महास्तूप की तीसरी व पांचवी मंजिल के बाहर वाले चबूतरे से परिक्रमा करने पर देहरादून की छवि बहुत ही रमणीक दिखायी पड़ती है. इस स्तूप के परिसर में बने फूल, पौधों व प्राकृतिक छवि वाले उद्यान आज भी देश -विदेश से आये श्रद्धालुओं व पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है. बौद्ध धर्म मूलतः अनीश्वरवादी हैं वास्तव में बुद्ध ने ईश्वर के स्थान पर मानव प्रतिष्ठा पर ही बल दिया.
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निधि सजवान
मूल रूप से टिहरी गढ़वाल की रहने वाली निधि सजवान डेनियलसन डिग्री कॉलेज के इतिहास विभाग में सहायक प्राध्यापक के पद पर कार्यरत हैं. निधि वर्तमान में छिंदवाड़ा, मध्य प्रदेश में रहती हैं.
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