समाज

काले कौआ : ले कौवा पुलेणी, मी कें दे भल-भल धुलेणी

पूस की कुड़कुड़ा देने वाली ठंड, कितना ही ओढ़ बिछा लो, पंखी, लोई लिपटा लो कुड़कुड़ाट बनी  रहती. नाक से भी पानी चूता रहता. नानतिनों की क्या कहें,  ठुले जवान बुड़-बाड़ि स्वीटर, फतुई, कुरता, जो पहना हो में नाक रगड़ ही लेते. आद मर्चवानी चाहा की कितली उबलती रहती. ऐसे ही पूस के मासांत की रात या मकर संक्रांन्ति की पुष्यूड़िया मनाया जाता घुघुतिया त्यार. Makar Sankranti 2020

मोटे आटे में घी का मोयन डाल इसे एकसार मसल देते. फिर अंदाजे से गुड़ का पाग मिला सख्त गूँथ लिया जाता. अब इससे बनते खजूरे. खजूरे के साथ ही दाड़िम का फूल, ढाल तलवार, घुघुते, पुलेनि, छोटी पूरी बनाई जाती. सांकल का आकार दे कर मोडा जाता. डमरू जैसा हुड़का भी बनता इनको तलने में डालडा या तेल का उपयोग होता. जैसे ही यह सिक जाते. बड़े स्युड में मोटे धागे या ऊन में इन्हें पिरो कर माला बना ली जाती.

पहले भाँग की डोरी में भी पिरोया जाता था बल.  माला के बीच बीच में मूंगफली, तालमखाने और बड़े भी पिरोये जाते. नारंगी का दाना भी. घर के हर बच्चे के लिए तो माला बनती ही. भगवान जी के लिए भी चढाई जाती. अगल बगल पडोसी और बिरादरों के साथ माल -मैदान -परदेश गए मित्रों के नाम की भी एक -एक माला बनती. घुघुते की माला इग्यारा, इक्कीस, इकावन, एकसौआठ घुघुतों से बनती. 

दूसरे दिन सुबह बच्चों का कौतुक होता. घर की छत से या खुले में काले काले की धाल लगा कौवे की पुकार लगती. कौवों की खूब मिन्नत होतीं ढाल, तलवार, पुलेंणी जो भी माला में होता उसे दे उससे मांग भी की जाती. कौओं के लिए अलग से भी लगड़, पूरी, बड़ा रखा जाता. बड़े बूढ़े कहते कि कौवा सुबे सुबे बागेश्वर सरयू में नहा धो के आता है. 

सरयू के उत्तर वाले इलाके गंगोली, सोर, कुमूँ में काले कऊवा मासांत को मना कर संक्रांति को कौआ बुलाया जाता है. तो सरयू के दक्षिण वाले भाग में संक्रांति के दिन त्यार मना माघ की दो गते सुबे-सुबे कौआ बुलाया जाता है. संक्रांति के दिन का भात तो कौवे के लिए रखा ही जाता है. 

ह्यून या हेमंत में खूब जाड़ा पड़ता. खेती का काम भी कम होता. घास के पुले और लकड़ी के गट्ठर पहले ही सार लिए जाते. गोठ-भकार हैसियत के हिसाब से भरे रहते. भट्ट, गहत भाँग, गुड़, चुवा, च्यूड़, निम्बू चूक, गदुवा, गड़ेरी घुइयां, तिल बदन की गर्मी बनाये रखने को पूस में खूब खायी जातीं. पूस माह में इतवार को उपवास किया जाता. दूध और नमक नहीं खाते. सूरज दिखने पर उसकी पूजा होती. तब तक आग सेकना, तात पाणि में हाथ लगाना, चाय पीने का भी परहेज होता. 

मकर संक्रांति के दिन ठया या पूजा घर में चौकी पर लाल वस्त्र बिछा अक्षतों का अष्टदल बना सूर्य भगवान की मूर्ति को स्थापित करते हैं. फिर षोडशोपचार पूजा होती.आदित्य ह्रदय स्त्रोत का पाठ होता है. घी, चीनी, तिल, मेवे से हवन किया जाता है.  “ॐ भगवते सूर्याय, ॐ सूर्याय नमः मंत्र का जाप करते हैं. 

अन्नम , स्नानं, जपो, होमो  देवतानाम  च पूजनम, 
उपवास्तथा दानमेकेंक पावनं स्मृतम. 
संक्रांति यानि दत्तानि हव्यकव्यानि  दातृभि:
तानि  नित्यं  ददात्यक: पुनर्जनमानि जन्मानि.

घुघूती त्यार के बारे में एक काथ  कुमाऊं के चंदवंशीय राज से भी जुड़ी है. जब राजा कल्याण चंद  के पुत्र निर्भय चंद का अपहरण राजा के मंत्री ने कर लिया. निर्भय चंद को लाड़ से घुघूती कहा जाता था. तभी एक कौवे ने कांव-कांव कर घुघूती को छुपाये स्थान का भेद दे दिया. बस राजा ने खुश हो कर कौवों को मीठा खिलाने का चलन शुरू किया और इसे घुघूती त्यार नाम मिला. 

मकर  संक्रांति का दिन इस लिहाज से भी यादगार बन गया जब इसी दिन 14 जनवरी 1921 को कुमाऊं केसरी बद्री दत्त पांडे ने सरयू घाट, बागेश्वर में कुली बेगार प्रथा को खतम कराया.  Makar Sankranti 2020

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

जीवन भर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के कुल महाविद्यालयों में अर्थशास्त्र की प्राध्यापकी करते रहे प्रोफेसर मृगेश पाण्डे फिलहाल सेवानिवृत्ति के उपरान्त हल्द्वानी में रहते हैं. अर्थशास्त्र के अतिरिक्त फोटोग्राफी, साहसिक पर्यटन, भाषा-साहित्य, रंगमंच, सिनेमा, इतिहास और लोक पर विषदअधिकार रखने वाले मृगेश पाण्डे काफल ट्री के लिए नियमित लेखन करेंगे.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

नेत्रदान करने वाली चम्पावत की पहली महिला हरिप्रिया गहतोड़ी और उनका प्रेरणादायी परिवार

लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…

5 days ago

भैलो रे भैलो काखड़ी को रैलू उज्यालू आलो अंधेरो भगलू

इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …

5 days ago

ये मुर्दानी तस्वीर बदलनी चाहिए

तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…

1 week ago

सर्दियों की दस्तक

उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…

1 week ago

शेरवुड कॉलेज नैनीताल

शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…

2 weeks ago

दीप पर्व में रंगोली

कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…

2 weeks ago