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एस. डी. बर्मन के कड़े इम्तहान में कैसे पास हुआ नीरज का रंगीला रे

1955-56 की एक काव्य संध्या में देव साहब ने नीरज को सुना. उनकी कविता उन्हें इतनी भायी कि उन्होंने नीरज के सामने सीधे प्रस्ताव रख डाला, अगर कभी फिल्मी गीत लिखने का मन हो, तो मैं आपके साथ काम करना पसंद करूँगा. (Lyricist Neeraj and Rangeela Re Song)

लगभग डेढ़ दशक बाद नीरज ने किसी फिल्मी मैगजीन में ‘प्रेम पुजारी’ का विज्ञापन देखा. खतो-खिताबत हुई. दस दिन में उनके लिए मुंबई से बुलावा आ गया. (Lyricist Neeraj and Rangeela Re Song)

नीरज जी अलीगढ़ के धर्म समाज कॉलेज में साहित्य-शिक्षक थे. छह दिन का अवकाश लेकर वे मुंबई के लिए रवाना हो गए. देव साहब ने उनकी खूब आदर-खातिर की. सांताक्रुज के महँगे होटल में ठहराया. हजार रुपया एडवांस भी दिया.

वहाँ से एसडी बर्मन से मुलाकात कराने ले गए. एसडी बर्मन की धारणा थी कि क्या कवि फिल्मी गीत भी लिख सकते हैं. इस बात पर उन्हें गहरा संदेह था.

देव साहब ने बर्मन दादा से कहा, आप धुन बताएँ, नीरज जी लिखेंगे. अगर नीरज जी आपके मनमाफिक नहीं लिख पाते हैं, तो छह दिन मेरे मेहमान बने रहेंगे.

बर्मन दा ने नीरज को धुन बताई और ऊपर से शर्त जोड़ी कि गीत “रंगीला रे”  से शुरू होना चाहिए. सिचुएशन भी समझाई. नायिका, नायक को किसी पार्टी में गैर स्त्री के साथ देखती है. वह अवसाद से डूबी है. मन में गहरी निराशा है. हां इसमें उसकी स्त्री सुलभ ईर्ष्या भी झलकनी चाहिए.

नीरज रात भर होटल के कमरे में माथापच्ची करते रहे. रंगीला रे … तेरे रंग में रंगा है मेरा मन … छलिया रे …

गीत बन गया, तो उसे लेकर सीधे देव साहब के ऑफिस पहुँचे.

छलिया रे ना बुझे है
किसी जल से ये जलन..
पलकों के झूले से
सपनों की डोरी
प्यार ने बाँधी जो
तूने वो तोड़ी..

दुःख मेरा दूल्हा है
बिरहा है डोली
आँसू की साड़ी है
आहों की चोली
आग मैं पीऊँ रे
जैसे हो पानी..
गांव घर छूटा रे…
सपना हर टूटा रे
फिर भी तू रूठा रे पिया..

एक-एक अंतरा मोतियों से जड़ा हुआ. देव को इस बात पर गहरा ताज्जुब हुआ कि एक ही रात में कोई इतना खूबसूरत गीत कैसे लिख सकता है.

इसके बाद नीरज को बर्मन दा के पास ले गए और बोले, मैंने कहा था ना. नीरज ने वह कर दिखाया. बर्मन दा ने गीत देखा. गीत उन्हें भा गया.

एस. डी. बर्मन प्रशंसा करने में कंजूसी बरतते थे. देव साहब से बोले, नीरज थोड़ी देर यहीं रुकेगा. और हाँ आज का डिनर मेरे साथ करेगा.

देव साहब भाँप गए क्योंकि इतना लंबा साथ होते हुए भी कभी एस. डी. बर्मन ने खुद उन्हें चाय तक नहीं पूछी थी. देव साहब ने नीरज को जाते-जाते कनखियों से संकेत किया- बात कुछ खास ही होगी, तभी तो सीधे डिनर ऑफर किया जा रहा है.

बहरहाल एस. डी. बर्मन ने नीरज के सामने स्वीकार किया कि, मैंने जानबूझकर तुमको जटिल परिस्थिति दी थी कि, तुम इस प्रोजेक्ट को छोड़ दो.

खास बात यह है कि किसी दौर में उन्होंने यही धुन गुरुदत्त को सुनाई थी, जिसे गुरुदत्त ने अस्वीकार कर दिया. हाँ, अबरार अल्वी को यह धुन खूब पसंद आई. तब से वह धुन एस. डी. बर्मन के दिमाग में अटकी रही.

प्रेम पुजारी के खूबसूरत गीतों में शुमार ‘शोखियों में घोला जाए..’ गीत को नीरज ने अपनी कविता ‘चांदनी में घोला जाए…’ से कुछ अंतरे परिवर्तित करके पेश किया.

नीरज को सबसे ज्यादा रॉयल्टी देव आनंद के लिए लिखे गीतों से मिली. नीरज कहते थे कि, मेरे और देव साहब के बीच कभी किसी तरह का काँट्रेक्ट साइन नहीं हुआ. जुबानी भरोसे पे जितनी रॉयल्टी मिली, शोहरत उससे कम न मिली.

रंगीला रे… गीत जितने खूबसूरत ढंग से लिखा गया है, उस पर वहीदा का बेहतरीन अभिनय चार चाँद लगा देता है. विरह को व्यक्त करने वाले ऐसे गीत, हिंदी सिनेमा में कम ही लिखे गए.

सुमन (वहीदा रहमान) का भारत-सुंदरी खिताब जीतना और विश्व-सुंदरी-स्पर्धा के लिए योरोप जाने का प्लॉट, रीता फारिया के विश्व सुंदरी खिताब जीतने (1966) से प्रेरित रहा.

 

ललित मोहन रयाल

उत्तराखण्ड सरकार की प्रशासनिक सेवा में कार्यरत ललित मोहन रयाल का लेखन अपनी चुटीली भाषा और पैनी निगाह के लिए जाना जाता है. 2018 में प्रकाशित उनकी पुस्तक ‘खड़कमाफी की स्मृतियों से’ को आलोचकों और पाठकों की खासी सराहना मिली. उनकी दूसरी पुस्तक ‘अथ श्री प्रयाग कथा’ 2019 में छप कर आई है. यह उनके इलाहाबाद के दिनों के संस्मरणों का संग्रह है. उनकी एक अन्य पुस्तक शीघ्र प्रकाश्य हैं. काफल ट्री के नियमित सहयोगी.

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