प्रसिद्ध कवि लीलाधर जगूड़ी जी को उनकी काव्य रचना ‘जितने लोग उतना प्रेम’ के लिए अखिल भारतीय बिड़ला फाउंडेशन का इस वर्ष का व्यास सम्मान दिया गया है.
जगूड़ी जी की कविता, एक बने बनाए शिल्प और आजमाए हुए तौर-तरीकों वाली कविता नहीं होती. वे व्यावहारिक जीवन में वैचारिक प्रयोग के हिमायती रहे हैं. उनके अनुसार, सारी दुनिया कविता का विषय हो सकती है. यह कवि की दृष्टि पर निर्भर करता है.
उनकी कविताओं का वितान इतना विस्तृत है कि, उसमें जहाँ एकओर ‘वह शतरूपा’ कविता है, जिसमें पौराणिक पात्र शतरूपा में उनका अनूठा सौंदर्य बोध दिखता है, तो दूसरी ओर ‘बसंत आया’ कविता में उनका बसंत रूमानियत के साथ नहीं आता, अपितु ‘बसंत धाँय से आता है, जिससे अति यथार्थ की ध्वनि व्यंजित होती है.
उनकी ‘सिल्ला और चिल्ला गाँव’ की कविता, ठेठ गढ़वाली परिवेश की कविता है, जिसमें ‘पश्चिम का पहाड़ तीन बजे ही शाम कर देता है’, तो ‘दिल्ली में है, तो क्या हुआ’ कविता सापेक्षता की कविता है. तो ‘विराट चिड़िया’ सृष्टि की कविता है.
उनकी कविता में नए भाषिक प्रयोग देखने को मिलते हैं,
‘मेरे हाथों के तोते और मेरे मन के घोड़े, दोनों ने मेरे छक्के छुड़ा दिए हैं, इसीलिए तोते मैंने उड़ा दिए और घोड़े दौड़ा दिए हैं.‘
वे कविता के सरोकारों से कुछ यूँ रू-ब-रू होते हैं, “अकेले कवि की बहुत सी कविताएँ, उसे अकेले नहीं रहने देतीं. कवि के अकेलेपन में भी एक सामूहिक राग है.‘
जगूड़ी जी की कविताओं के शीर्षक, स्वतः काव्य प्रेमियों का ध्यान खींचते हैं. इतना ही नहीं, कविताओं के शीर्षक स्वतः सार-संकेत भी जता देते हैं. उनके काव्य संग्रहों में से ‘अनुभव के आकाश में चांद, भय भी शक्ति देता है और शंखमुखी शिखरों पर, सबसे ज्यादा चर्चित रहे. उनके अन्य चर्चित संग्रहों में, ‘नाटक जारी है, इस यात्रा में रात अब भी मौजूद है, बची हुई पृथ्वी, घबराए हुए शब्द, महाकाव्य के बिना, ईश्वर की अध्यक्षता में, खबर का मुँह विज्ञापन से ढका है’ प्रमुख हैं.
इस अवस्था में भी वे निरंतर सृजनरत हैं. साहित्य अकादमी पुरस्कार, पदमश्री और रघुवीर सहाय सम्मान से पुरस्कृत कवि को व्यास सम्मान मिलने की बधाई! ईश्वर उन्हें नीरोग रखे.
हर पौधा तुम्हारी तरह झुका हुआ होगा
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कुछ काम हम करते हैं कुछ करते हैं पहाड़
ललित मोहन रयाल
उत्तराखण्ड सरकार की प्रशासनिक सेवा में कार्यरत ललित मोहन रयाल का लेखन अपनी चुटीली भाषा और पैनी निगाह के लिए जाना जाता है. 2018 में प्रकाशित उनकी पुस्तक ‘खड़कमाफी की स्मृतियों से’ को आलोचकों और पाठकों की खासी सराहना मिली. उनकी दो अन्य पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य हैं. काफल ट्री के नियमित सहयोगी.
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