भगवत गीता के श्लोकों का यह अनुवाद चारुचन्द्र पांडे द्वारा किया गया है. काफल ट्री में यह अनुवाद पुरवासी पत्रिका के 14वें अंक से साभार लिया गया है.
(Kumaoni Translation of Bhagavad Gita)
भौते और लै शूर म्यार निजी मरण बरण करि।
सबै युद्ध में चतुर, हथ्यारन् लै छजिया छन्॥
जनार भयानक घोषल धर्ति-अगास ध्वनित भै।
कल्जन पड़िगै वैर सबै धृतराष्ट्राक् च्यालनाक्॥
नै हत्यार यै काटी सकन, नै आग जलाई।
नै पाणी यै भिजै सकन, नै हवा सुकाई॥
यो केछ? तेरा दुश्मण तेरी सगत की हँसी उड़ाला।
कूण-निकूण कतुक कौला ये है बाँकि के दुख॥
मरी स्वर्ग जालै, जितलै तौ धरती भोगलै।
युद्ध करुंल कै मन में दृढ़ निश्चय कर-ठाड़ हो॥
बची यज्ञ बटि खाणी संत पापन है छुटनी।
आपुणे लिजी पकूणी पापि तौ पापै खानी॥
जब जब धर्मेकि हानि अधर्मेंकि बढ़ती हूँछऽ
भारत! तब मैं प्रकट करूँ अपना रचरुप कैं॥
बिद्य बिनय वाल् बामण में गोरु में औ, हाथि में।
कुकुर और चंडाल में लै पंडित समदर्शी॥
इन्द्रिन का सब बिषय भोग दुख का कारण छन्।
आदि अन्त वाल भोगन में नी रमन् बिबेकी॥
(Kumaoni Translation of Bhagavad Gita)
ब्रह्मामार्ग में भबरी ऊ कैं नष्ट त नी हुन्?
छितरी बादल जसो भ्रष्ट है द्वियै लोक बटि॥
सब उदार यों पर ज्ञानी मेरो स्वरुप छS।
थिर बुद्धिल मैं में थित रै उत्तम गति पाँछऽ॥
शीघ्र हई धर्मात्मा शाश्वत शान्ति पांछ ऊ।
अर्जुन ! भलिकै जाणि ल्हे म्योर नै भक्त नष्ट हुन्॥
दैत्यन में प्रह्लाद, समय छू प्रतिक्षण बितणी।
पशुन् में छू मैं सिंहराज औ गरुड़ चाड़न में॥
अनेक रुपी मुख ताणिया छा।
ठुल्ला आँखन जगमगानै चई छा,
अगास छवींणी तै रुप देखी।
बिष्णो! डरी छू न धैर्ज शान्ती।
करलि दाड़नवाल औ भयानक,
तुमरा मुखन में अतिशीघ्र जानी।
मुनली कचुनियाँ कतुकै देखीनी,
लटकन तुम्हारा दाँतन का बीचै॥
शत्रु-मित्र में मान-अनादर में सम जो हो,
गरम-ठंड, सुख-दुख में सम, आसक्तिरहित हो,
निन्दा स्तुति सम, मननशील, संतुष्ट-जे मिलिग्वे,
स्थिर मति जो अनिकेत सदा म्योर भक्त मकैं प्रिय॥
दंभ और अभिमान नि हो, हो क्षमा अहिंसा
गुरुसेवा, शुद्धता, स्थैर्य, संयम व सरलता,
भोगन सूं बैराग्य तथा हो गर्वहीनता,
जन्ममृत्यु दुख दोष जरा रोगन को चिन्तन॥
(Kumaoni Translation of Bhagavad Gita)
माट दुङ् सुन यकनसै जै हुं, जो सुखदुख में सम।
प्रिय अप्रिय सम, निन्दास्तुति सम, धीर स्वस्थ जो
मान और अपमान मित्र अरिपक्ष में जो सम
कर्तापन अभिमान रहित, ऊ गुणातीत छऽ॥
पक्का जाड़न वाल ये जग-पिपल कैं
बैराग्य रुपी शस्त्रल काटण छऽ॥
आज मकैं यो मिलछ इच्छ आब ऊ पुरि करूँलो
आज यतुक धन पास छ, आब ऊ लै ऐ जालो,
आज शत्रु यो मारछ आब मैं और लै मारूंल
ईश्वर मैं छु, सिद्ध बली भोगी व सुखी छू॥
बुधि बल सुख आरोग्य आयु औ प्रीत बढ़णी
रसिल चुपाड़ मनप्रिय अहार सात्विकनाक हूनी॥
देश काल नी देखी कुपात्र के दान दिईं जो
बिना मान सम्मान दान – ऊ तामस हूंछौ॥
उ पैंली बिपतुल्य अन्त में अमृततुल्य हूं।
हरि विषयक बद्धिल उपजी ऊ सुख सात्विक हूं॥
फिरि फिरि याद करी ऊ अद्भुत रुप हरी को
मकणि महा आसज हुंछ फिरि फिर हर्षित हूं में॥
(Kumaoni Translation of Bhagavad Gita)
-चारुचन्द्र पांडे
पुरवासी के चौदवें अंक से साभार.
इसे भी पढ़ें: कुमाऊंनी लोक साहित्य में नारी का विरह
Support Kafal Tree
.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें