कला साहित्य

भल करियक भलै हुनेर भै : कुमाऊनी लघुकथा

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सिबौ हंसुलि बिचारिक ग्रहौ खराब भोय, ईज बाबू लि ब्या करौ मस्त दैज ले दे आब जदुक उनरि हैस्यत छी वीहैबेर बाकिकरौ. तौ ब्या ले ठगिबेर भो बल. कम्पनी में छ कूनेर भै ब्या बखत, पछिल चांछा के नै निकल. दिल्लीपन छी बल कथप. शराब पीनेर भये सुदै आम जस चूसनेर भै पऊ. पीबेर मारन हाडन ले करछी बल.
(Kumaoni Short Story Vinod Pant)

एक बार मैत ले ऐगेछी, आब मैत ले कब तक रवै खावै हूंछी? फिर ईज-बाबू लि समझै बुझैबेर दुल्हौ क दगाड़ भेजी. लिजाण बखत कूणय बल रनकौर आज बटी नि पीं. कसम हसम ले खाईन. पर उज्याड़ि बल्दै लि कबै उज्याड़ खांण छौडै? सौरास जांईयाक तीन-चार म्हैण बाद आजि उसै. वी हाल. मैत क दिई सब जेवर बेचि दे रनकारैलि. बिचारि हात् एक पिरूलै मुनडी ले नि रूण दी. के कूण पर बौई जानेर भै. खा्प कुखा्प कूंण निकूण सब कूनेर भै. कदुकै दिन लंगंण ले ठेली बिचारिलि.

जब नान् बैंणी ब्या दिन मैत आई भै तो बिचारि क आंग में मा्ंस क रत्ति नि भै, सिबौ हाडै-हाड़ देखी रई भाय. आंगूं काटला तो ल्वे तोप ले नि निकल तसि हालत हई भै. तासै रंग न में बिचारिलि कारबार ले करी भै. द्वि नानतिन ले भईन बिचारि बटी. दूसर भौ हुण बखत तो मरी-मरी बचीं बिचारि.

फिर एक दिन दूल्हौ ले जानै रौ, पीलीया भो बल, पीलीया में ले शराब पींण नि छाडि हैगे कि हूंछी. दूल्हौ मरी बाद सासू लि नरूण करि दी, बार-बार वीकैणी दोछूण दिनेर भै, म्यार च्याल कैं खै गे, असकुनी ऐ म्यार घर मे तौ कूनेर भै. सौरज्यू जै जरा भाल आदिम छी बल. नानतिन के के हूंछी? बिन बाबू क हैग्याय, च्योल तो बीडि ले सिखि गोछी बल. जरा चेली जै सहार भै, कबै घा काटण, कबै गुबर निकालण, ओखल कूटण बखत छिटण बटोवण करि दिनेर भै. च्योल बिगडि गो कैबेर उकें माम् नाक दगाड़ अलमाड़ भेजौ. वां जैबेर जै जरा सुधरौ.  
(Kumaoni Short Story Vinod Pant)

जब तक सौरज्यू छी उनरि पिनसिनैलि दर गुजर चलनेर भै पछिल सौरज्यू मरी बाद उ ले बन्द हैगे. सास् एक लाल पाई नि देखूनेर भै. मैसनक बौल करि करि बेर बखत काट्.

समयक फेर भै, उ कूनन नै भगवान बारै बाट् नि मारन कैबेर, आज देखो च्योल ले पी डब्लू डी मे लागि गो, चेलि बीएससी करनै बल. को कूंछी तैक च्योल सुधरौल कैबेर? आब्बै च्यालक ब्या ह्या करैलि तो तैक दगड़ हैजाल और सुपत्ति ले ऐ जालि बिचारि कैं.

कदुकै कष्ट सहन तैलि पर एक बात छ कबै तैलि कैकै नक नि कर और नक नि चाय, कबै कैकी निद्र नि करि. दौ द्याप्तन ले खूब मानछी कति एक ढूंग ले ठाड़ देखनेर भै तो उत्ती मुनिटोप दी दिनेर भै. पैं भगवानैलि ले चा शैद तैक उज्याणि. भल करियक भलै हुनेर भै. भगवान ले परीक्षा ल्हिनन शैद मनखी कि. जनमभरि कष्ट करि बाद आब सुपत्ति ऐरै, आब चारै दिन सही सन्तोषलि खालि बिचारि.
(Kumaoni Short Story Vinod Pant)

विनोद पन्त_खन्तोली

वर्तमान में हरिद्वार में रहने वाले विनोद पन्त ,मूल रूप से खंतोली गांव के रहने वाले हैं. विनोद पन्त उन चुनिन्दा लेखकों में हैं जो आज भी कुमाऊनी भाषा में निरंतर लिख रहे हैं. उनकी कवितायें और व्यंग्य पाठकों द्वारा खूब पसंद किये जाते हैं. हमें आशा है की उनकी रचनाएं हम नियमित छाप सकेंगे.

इसे भी पढ़ें: विरासत है ‘खन्तोली गांव’ की समृद्ध होली परम्परा

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  • आपके माध्यम से विनोद जी की कहानी पड़ी कहानी दमदार है काफी अच्छा साहित्य पुट है।
    टिप्पणी कर्ता खीम सिंह रावत हल्द्वानी से।।

  • आपके माध्यम से भेजी गई विनोद जी की कहानी पड़ी कहानी दमदार है और इसमें साहित्यिक पुट है।।0

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