पहाड़ में पैदा हुई पूरी एक पीढ़ी ऐसी है जिनका बचपन बुजुर्गों की थपकियों संग बीता है. जटिल और कठोर जीवन जी चुकी पहाड़ की इस बुजुर्ग पीढ़ी के पास नई पीढ़ी को देने को अनुभव के सिवा और था ही क्या. बुजुर्ग पीढ़ी ने कथाएं गढ़ी गीत गढ़े और हंसते गाते अगली पीढ़ी को सौंप दिया. पहाड़ में कही जाने वाली लोरियां इसी विरासत का हिस्सा तो हैं.
(Kumaoni Lullaby)
लाड़ भरी इन लोरियों में केवल तुकबंदी नहीं होती यह एक बच्चे को उसके परिवेश से परिचित कराती थी. रोचक प्रसंग जोड़कर कभी आचरण तो कभी पर्यावरण के पहले बीज यही लोरियां बोया करती.
दुनिया के किसी भी कोने में बैठ अगर पल भर के लिये गांव की इन लोरियों की धुन कान पर पड़ जाये तो आंखें बंद हो जाती हैं और मन के किसी कोने में सुकून का धुँआ उठता है. सांसें धीमी कर देने वाला यह धुंआ वाष्प बनकर आंखें नम कर देता है और छोड़ जाता है चेहरे पर हल्की मुस्कान.
(Kumaoni Lullaby)
कुछ बातें केवल महसूस करने की होती है पहाड़ की यह लोरियां भी केवल महसूस की जा सकती हैं. इसे सुनने के बाद कैसा लगा जैसा कोई सवाल नहीं. काफल ट्री ने बचपन की भीनी यादों को धुन में सहेजने की कोशिश की है. रौशनी चंदोला की आवाज में सुनिये एक कुमाऊनी लोरी.
(Kumaoni Lullaby)
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