पहाड़ के जीवन की विशिष्टता ही सादगी और सामूहिक उत्सवधर्मिता है. जटिल परिस्थितयों में रहने वाले पहाड़ियों के पर्व भी उनके व्यवहार की तरह ही सरल होते हैं. जन्माष्टमी के त्यौहार में भी यह विशेषता खूब देखने को मिलती है.
(Kumaoni Krishna Bhajan)
पहाड़ में जन्माष्टमी के दिन स्त्री और पुरुष दोनों ही उपवास रखते हैं. आज घरों में पकवान बनाये जाते हैं. पहाड़ियों के घर में आज तेल में पके पकवान जरुर बनते हैं. देर रात तक गांव भर के लोग किसी एक स्थान पर बैठ भजन कीर्तन करते हैं. इन कीर्तनों में स्त्री पुरुष दोनों शामिल होते हैं.
कुमाऊं और गढ़वाल दोनों ही जगह कृष्ण स्थानीय मान्यताओं के साथ पूजे जाते हैं. कृष्ण से जुड़ी लोककथाएँ यहां स्थानीय रचकर खूब कही सुनी जाती हैं. कुमाऊनी और गढ़वाली दोनों ही भाषा में कृष्ण लीला से जुड़े भजन मौजूद हैं.
(Kumaoni Krishna Bhajan)
यह कुमाऊनी का यह भजन स्व. चारू चन्द्र तिवारी द्वारा लिखा गया है. स्व. चारू चन्द्र तिवारी के इस भजन को स्वर दिये हैं लोकगायिका बीना तिवारी ने. बीना तिवारी उत्तराखंड की सबसे लोकप्रिय लोकगायिकाओं में हैं.
लोकगायिका बीना तिवारी का गाया सबसे लोकप्रिय गीत छाना बिलौरी है. रेडियो के जमाने में लोकगायिका बीना तिवारी सबसे अधिक सुने जानी वाली लोकगायिका हैं. उनके द्वारा गढ़वाली और कुमाऊनी दोनों ही भाषा में लोकगीत गाये गये हैं.
जन्माष्टमी की संध्या पर सुनिये एक कुमाऊनी भजन –
(Kumaoni Krishna Bhajan)
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