‘कोतवाल का हुक्का’ पुस्तक को कहानी संग्रह कहा गया है, पर यह तो कविता है. पढ़ते हुए भी और सोचते हुए भी. जहाँ-जहाँ कहानी है या कहानी होने की गुंजाइश है वहाँ पर भी कविता है. कभी द्रुत में सामाजिक सरोकारों, दृष्टिकोण की बहुलताओं को सरपट नापती हुई. (Kotwal Ka Hookah)
कभी विलम्बित में धीरे -धीरे खुलती फैलती, अपने कथ्य के कोनों अंतरों को भरती, लास्य में अलस पर पाठक को चैन से पृष्ठ भी नहीं पलटने देने वाली कहानी नुमा कविता.
मेरा किसी पुलिसिए व्यक्तित्व से कोई परिचय नहीं है. अमित श्रीवास्तव से भी नहीं. पर कोतवाल रामबदन, माधव बाबा, कबीर, विष्ट, पुरानी कमीज, मस्कन, 376 पेलूराम, रामभजन, स्क्रीन सेवर पर गिरी एक बूंद, लड़का और लड़की ने जबरदस्ती जबरन जबरदस्त पहचान करा दी.
पुलिस और ऐसी कविता इतनी साफ जैसे जीवन, इतनी उलझी जैसे जीवन, इतनी रहस्य से भरपूर जैसे जीवन.
कहानियों की सजग पाठक हूँ. हुक्के ने सारी सजगता धुंए में उड़ा दी. अब तक जो पढ़ा था संरचना के भीतर का यथार्थ, यथार्थ का सांचे में डालने का कौशल सृजन, संवेदना का परितोष और गम्भीरता की गणना. कोतवाल जी ने सारी पढ़ाई बेकार कर दी.
कहानी की सबसे मशहूर नाप एडगर एलन पो ने ‘फिलोसफी ऑफ कम्पोजिशन’ में 1846 में पेश की थी जो एक मान्य परिभाषा की तरह स्थापित हुई— कहानी को एक बैठक में पढ़ लिया जाना चाहिए. पर अमित ने दो मिनट भी नहीं दिए और रात वहीं पर ठहर गई.
भाषा के विषय में कहने और लिखने से अच्छा है सब इस रचना को पढ़ें. उर्दू जबान क्यों प्यार की भाषा है, क्यों अपने अकेले होने की भाषा है, क्यों जालिम दुनिया से लड़ न पाने की भाषा है? यह पुस्तक पढ़ कर पता चल सकता है.
शाम साड़ी को टखनों से जरा उपर उठाए चुपचाप दबे पांव नदी के किनारे-किनारे चली जा रही थी. पांव गीले थे उसके. धोती के किनारी पर बालू के कण चमकते थे. रहरह कर वो तिरछी निगाहों से पश्चिम का आकाश देख लेती थी. उसके मांग का सिन्दूर उधर ही पुता हुआ जो था.
और भी बहुत कुछ है पुस्तक में. सिर्फ वर्तनी की त्रुटियां एक भी नहीं हैं. चिरंजीव लेखक और प्रकाशक को शुभकामनाएं देना तो बनता है. लेखक को धन्यवाद देती हूँ, उन्हीं के मार्फ़त किताब मेरे पास आई.
पुस्तक इस लिंक से प्राप्त की जा सकती है : https://www.amazon.in/dp/8195328075/ref=cm_sw_r_apan_i_J8JBHY7JKVFM7DJ9D0Z3
सविता मोहन विभिन्न विश्वविद्यालयों और उत्तराखण्ड सरकार के कई संस्थानों में महत्वपूर्ण पदों पर रह चुकी हैं. कई पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया. महत्वपूर्ण पुस्तकों के अनुवाद के साथ आधा दर्जन से अधिक साहित्यिक कृतियां प्रकाशित हैं.
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