( पोस्ट को नीरज पांगती की आवाज़ में सुनने के लिए प्लेयर पर क्लिक करें )
हिमालय की तीन सुन्दर चोटियों के समूह को त्रिशूल के नाम से जाना जाता है. भगवान शिव के अस्त्र त्रिशूल जैसा दिखाई देने के कारण इसे यह नाम दिया गया है. इन तीन में सबसे ऊंची चोटी, जिसे त्रिशूल 1 कहा जाता है, की ऊंचाई 7120 मीटर है.
नन्दा देवी सैंक्चुअरी की चोटियों के दक्षिणी-पश्चिमी सिरे पर अवस्थित त्रिशूल स्वयं नन्दादेवी की चोटी से 15 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में है.
वर्ष 1907 में त्रिशूल 1 का आरोहण हुआ था. टी. जी. लॉन्गस्टाफ द्वारा किये गए इस आरोहण के बाद त्रिशूल 1 सात हज़ार मीटर से अधिक ऊंचाई वाली पहली चोटी बनी जिसे मनुष्य द्वारा फ़तेह किया गया था.
त्रिशूल के उत्तर पश्चिम से कुछ किलोमीटर दूर नंदा घुंटी का शिखर है जबकि इसके दक्षिण पूर्व की दिशा में मृगथूनी शिखर अवस्थित है.
ब्रिटेन के टी. जी. लॉन्गस्टाफ ने सबसे पहले त्रिशूल ने पश्चिमी और दक्षिणी हिस्से पर केन्द्रित अपना पहला पर्वतारोहण अभियान 1905 में किया था.
दूसरी बार वे 1907 में लौटे. इस दफा उनके साथ दो और ब्रितानी पर्वतारोही, तीन अल्पाइन गाइड और बड़ी संख्या में गुरखे भी थे. वे ऋषिगंगा घाटी होते हुए पहले शिखर के उत्तर की तरफ चढ़े आर वहां से पूर्व की ओर स्थित त्रिशूल ग्लेशियर पहुंचे.
यहाँ से उन्होंने 12 जून को शिखर का आरोहण किया. उस समय तक संभवतः त्रिशूल से ऊंचे किसी भी पर्वतशिखर को फतह नहीं किया गया था. इस अभियान में पहली बार अतिरिक्त ऑक्सीजन का प्रयोग भी किया गया था.
1950 के दशक में हैरल्ड विलियम्स ने भारतीय सेना के सदस्यों के एक अभियान दल का नेतृत्व करते हुए त्रिशूल के शिखर पर पहुँचने में सफलता पाई.
त्रिशूल की चोटी पर त्रिशूल 1 के पश्चिमी आयाम और दक्षिणी रिज से होते हुए भी आरोहण किया जा चुका है.
त्रिशूल 2 और त्रिशूल 3 पर 1960 में एक युगोस्लावियाई दल द्वारा सफलतापूर्वक चढ़ाई की गयी थी.
1987 में एक और युगोस्लावियाई दल ने तीनों शिखरों पर विजय प्राप्त की और इसके दो सदस्यों ने चोटी से बाकायदा पैराग्लाइडिंग भी की. 1960 वाले युगोस्लावियाई दल के एक सदस्य एलेस कुनवेर की बेटी व्लास्ता कुनवेर पैराग्लाइडिंग करने वाले इन दो सदस्यों में एक थी.
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त्रिशूल की सभी फोटो जयमित्र सिंह बिष्ट के खींचे हुए हैं.
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