जिस ज़माने में मेरे साथ के अन्य बच्चे गुल्ली डंडा खेलते थे उस ज़माने में मैंने स्नूकर खेलना सीख लिया था यह कहना है मुक्तेश्वर निवासी 95 वर्षीय बुजुर्ग कमलापति पाण्डेय का जो बचपन से स्नूकर के खेल को देखते समझते और एक शिक्षक की तरह समझाते हुए आ रहे हैं. वे आज भी आईवीआरआई के कई वैज्ञानिकों और कर्मियों को यह खेल सीखा रहे हैं.
कमलापति अपने चाचा और ताऊ के साथ पैतृक गाँव धौला देवी, अल्मोड़ा, से वर्ष 1942 में मुक्तेश्वर आये. उस वक़्त वह केवल 11 वर्ष के थे और उनके चाचा और ताऊ दोनों ही ‘इम्पीरियल इंस्टिट्यूट ऑफ़ वेटरनरी रिसर्च इंस्टिट्यूट’ (जिसका नाम आजादी के बाद सन 1948 में आईवीआरआई पड़ा) में कार्यरत थे. तभी वह इस खेल की तरफ आकर्षित हुए. शुरुआत में वे ब्रिटिश वैज्ञानिकों सहित अन्य अधिकारियों के साथ रहकर उनकी खेल में मदद किया करते. धीरे-धीरे वे इस खेल को सीखने भी लगे. इस बीच उन्नीस वर्ष की उम्र में उनकी शादी भी हो गयी.
सन 1945 में उनकी नौकरी भी यहीं लग गयी. इस दौर में जब देश ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ उबल रहा था वहीं मुक्तेश्वर का माहौल एकदम शांत था. इस बीच ब्रटिश अधिकारी एफसी माइनेट और निदेशक एफ वेयर सहित तमाम अन्य निदेशकों और वैज्ञानिकों के साथ उन्होंने स्नूकर सहित बिलियर्ड्स का एक ख़ास गेम, जिसे मैग्निटी स्लाश कहा जाता है भी सीखा.
कमलापति आज भी सेहत से एकदम फिट हैं, हालाँकि आँखें उम्र के इस पड़ाव में आकर अब थक चुकी हैं. लेकिन कमलापति के हाथ में क्यू (बिलियर्ड्स खेलने वाली स्टिक) आते ही मानो उन्हें जल्द खेल समेटने की धुन सवार हो जाती है. वह बताते हैं की उन्होंने कई ब्रिटिश अधिकारियों को बिलियर्ड्स और स्नूकर खेलना सिखाया है.
अपने इस हुनर में महारत का श्रेय वह तत्कालीन अंग्रेज अधिकारियों को देते हैं, वह बताते हैं कि अंग्रेजों द्वारा खेल सिखाने और मदद करने की एवज में उन्हें पुरस्कार और बख्शीश भी दी जाती थी. अक्सर ही यह बख्शीश उनकी तनख्वाह से कहीं अधिक हो जाया करती थी.
सन 1990 में सेवानिवृत्त होने के बाद कमलापति आज भी आईवीआरआई के ऑफिसर व कर्मियों को बिलियर्ड्स का ज्ञान देते हैं. उन्हें यह दुःख भी है की आज कर्मचारियों के पास खेलों के लिए समय नहीं है. मोबाइल, इन्टरनेट और अन्य खेलों की तरफ रुझान ज्यादा है, जिस वजह से अब कभी-कभार ही ऑफिसर क्लब खुलता है. अब यहाँ रखी 1913 में लाहौर से लायी गयी बिलियर्ड्स टेबल पर कभी-कभार ही रौनक नज़र आती है. फिलहाल कमलापति आईवीआरआई परिसर स्थित ऑफिसर्स क्लब के पास ही एक छोटे से आवास में रहते हैं. आज भी जब कभी कोई अधिकारी, कर्मचारी बिलियर्ड्स सीखने या खेलने की इच्छा जताता है तो वह तुरंत क्लब चले आते हैं.
हल्द्वानी में रहने वाले भूपेश कन्नौजिया बेहतरीन फोटोग्राफर और तेजतर्रार पत्रकार के तौर पर जाने जाते हैं.
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1 Comments
Suresh Dua
Nice publication and informative particularly about Mukteswar. I was brought up in Mukteswar and went to middle school there. Also worked at the IVRI, used to play soccer/ football during the year1967. It reminds me those days when a crowd of spectators used to watch football tournaments played among various football teams: Research/Veterinary/Farm/ Powerhouse etc. It was during the years 1956-1968. The time created several changes thereafter. People moved to different places due to transition. I made a last visit to Mukteswar in 2018. I observed a lot of changes as being a resort tourist place. Most of the people moved out from IVRI. However, it is my native place where I was raised and am wondering about my colleagues and whereabouts my coworkers.
In the last, I like to read kafaltree. A beautiful magazine to read.
Thanks
Suresh Dua
USA