हिमाचल प्रदेश में जिला सिरमौर के आखिरी छोर में बसे शरली मानपुर गांव के निवासी हैं कल्याण सिंह. उम्र करीब 65 वर्ष के आसपास. वह अपने व परिवार की आजीविका के लिए कपड़े सीने का काम करते हैं. लेकिन एक हुनर ऐसा है जिस वजह से वह अब किसी परिचय के मोहताज नहीं है. (Kalyan Singh Sharli Manpur)
वह है पारम्परिक वाद्य यंत्र रणसिंघा बजाने का उनका हुनर. क्षेत्र की करीब 19 पंचायतों में वह अकेले शख्स हैं, जो इसे विधिवत तरीके से रणसिंघा बजा पाते हैं. कई गांव तो ऐसे भी हैं जहां ये वाद्य यंत्र तो है, लेकिन बजाने वाला कोई नहीं बचा. कल्याण सिंह को यह हुनर अपने पिता शाउणु राम से विरासत में मिला है. उनके पिता भी रणसिंघा बजने में उस्ताद थे.
बताते चलें कि इस विशेष वाद्य यंत्र का जिक्र महाभारत काल में भी आता है. जब किसी लोक उत्सव में इसकी धुन बजती है तो उत्सव में स्वतः ही चार चांद लग जाते हैं. कानों में इसकी आवाज गूंजते ही जैसे हम कहीं खो जाते हैं.
![Kalyan Singh Sharli Manpur](https://kafaltree.com/wp-content/uploads/2020/01/Kalyan-Singh-2.jpg)
यह वाद्य यंत्र वीरता का भी प्रतीक माना जाता है. महाभारत युद्ध आरम्भ होने से पहले अन्य वाद्य यंत्रों के साथ इसकी धुन बजाई गई थी. गीता के पहले अध्याय में इसका जिक्र है.
यही कारण है कि जरूरत पड़ने पर खास आयोजनों में कल्याण सिंह को आयोजक न्यौता देना नहीं भूलते. करीब दो साल पहले 25 अगस्त 2018 को शरली गांव में ठारी देवी के पूजा के लिए शांत यज्ञ करवाया गया था, जिसमें कल्याण सिंह को आप अस्त्र शस्त्रों के साथ नृत्य करते लोगों के बीच रणसिंघा बजाते देख सकते हैं.
रणसिंघा जैसे पारंपरिक वाद्ययंत्रों को बजाने वाले कलाकार अब लुप्त से होते जा रहे हैं. नयी पीढ़ी इन वाद्ययंत्रों को बजाने में विशेष रुचि नहीं ले रही है. आने वाले समय में ये वाद्य मात्र शोपीस बनकर न रह जाएँ इसके लिए सरकार व समाज को विशेष प्रयास करने चाहिए. मौजूदा कलाकारों को विभिन्न संस्कृतिक मंचों में सम्मानित करने के साथ इनके लिए सरकारी पेंशन की व्यवस्था भी की जानी चाहिए. इसी तरह इस संस्कृति का संरक्षण व संवर्धन किया जा सकता है.
आज जब मेरे पिताजी श्री कुंदन सिंह शास्त्री ने मुझे उनका यह वीडियो उपलब्ध करवाया तो इसे सबसे पहले पहाड़ की संस्कृति को देश दुनिया तक पहुंचा रही और लोक कलाकारों को नई पहचान दिला रही काफल ट्री टीम से साझा करने का मन हुआ. आप भी आनंद लें.
रामनगर में जब द ग्रेट खली पत्रकारों को लेने खुद पहुंचे
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मूल रूप से हिमाचल के रहने वाले महावीर चौहान हाल-फिलहाल देहरादून में हिंदुस्तान दैनिक के तेजतर्रार रिपोर्टर के तौर पर जाने जाते हैं.
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