उत्तराखंड में यहीं पर रहकर रोजगार ढूँढना कठिन काम है, कारण यहां पर मैदानी इलाकों की तरह खेती करना सहज नहीं है. सीढ़ीनुमा खेत सिंचाई के लिए सिर्फ वर्षा पर ही निर्भर रहते हैं, कुछ ही इलाकों पर नहर से सिंचाई मुमकिन हो पाती है.
ऐसे में यहां के लोगों ने रोजी-रोटी के लिए जो अन्य विकल्प चुने उनमें घोड़े, खच्चरों की अहम भूमिका है. कुछ गांव मेन रोड से काफी दूर और ऊंचाई पर स्थिति होते हैं, वहां की दुकानों तक सामान जैसे गुड़, चावल, आटा, दाल, साबुन वगैरह बिना इनके पहुंच ही नहीं सकता है. अगर ऐसे किसी गांव में मकान बनता है तो सीमेंट, रेता, सरिया, लकड़ी, कील, कुंडे सब यही घोड़े लेकर जाते हैं.
खच्चरों का सबसे ज्यादा उपयोग नदियों से रेता, रोड़ी ढोने मे किया जाता है, आजकल अगर कोई फौजी घर आता है या फिर कोई शहर से पैसे कमाकर लौटता है तो उसका पहला काम घर बनाना ही होता है. ऐसे में रेता, रोड़ी की जरूरत बढ़ जाती है. खच्चर वाले अकेले काम नहीं करते हैं ये समूह बना लेते हैं. कुछ लोग नदी पर छन्ना लगाकर रेता छानते है तो कुछ उसे कट्टों मे भरकर घोड़ों से ढोते हैं. एक आदमी दो या तीन घोड़े ही रख पाता है, फिर जरूरत पूरी करने के लिए तीन चार लोग मिलकर एक मजबूत दल भी बना लेते हैं और अपने दल मे से सबसे व्यवहार कुशल या बुजुर्ग व्यक्ति को नया आर्डर ढूंढने के लिए फ्री छोड़ देतें है. ये लोग मजदूर महिलाओं की टीम को रोड़ी तोड़ने के लिए भी रख लेते हैं. ये कामगार महिलाएं डिमांड के अनुसार 10,15,20 एमएम की रोड़ी तैयार कर देतीं हैं जिसे ये घोड़े वाले निर्माण स्थल तक ढो कर पहुंचा देते हैं.
खच्चरों का मूल्य लगभग 70000 रुपये से शुरू हो जाता है. इनको भोजन में चना व चोकर मुख्य रूप से देना ही पड़ता है. आपको गांव के लोग अक्सर इन्हें चराते हुए मिल जाएंगे. सरकार एक योजना बनाकर इनका बीमा भी करवाती है, इससे बैंक आसानी से लोन भी दे देता है क्योंकि अगर खच्चर मर भी गया तो बैंक की पूंजी बीमा कंपनी दे देती है. ये गावों की ऐसी जरूरत बन चुके हैं जिनके बिना उत्तराखंड के गांवों की कल्पना भी नहीं की जा सकती है.
काफल ट्री के फेसबुक पेज को लाइक करें : Kafal Tree Online
हल्द्वानी के रहने वाले नरेन्द्र कार्की हाल-फिलहाल दिल्ली में रहते हैं.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
1 Comments
Madhu Sudan Juyal
अब खच्चर पहाड़ों में बहुत कम हो गये हैं। प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना से उत्तराखंड के प्राय: सभी राजस्व ग्राम सड़क से जुड़ गए हैं।