1929 में महात्मा गांधी ने कुमाऊं की यात्रा की थी. 22 दिनों की इस यात्रा में उनका लक्ष्य क्षेत्रीय स्तर पर राष्ट्रीय आन्दोलन को मजबूती प्रदान करना था. इस दौरान उन्होंने अपना अधिकांश समय कौसानी में गुजारा और कौसानी का वह बँगला स्वतंत्रता सेनानियों का तीर्थ बन गया जहाँ गाँधी लगभग 15 दिन रहे. बाद में इस बंगले को अनाशक्ति आश्रम नाम दे दिया गया. (Historical Gandhi Ashram Chanauda)
गांधी जी कौसानी के अलावा जिन स्थानों पर गए उनमें चनौदा का नाम बहुत महत्वपूर्ण है. कौसानी पहुँचने से पहले गांधी जी कुछ देर को यहाँ ठहरे और उन्होंने अपने स्वागत के लिए आये लोगों से विदेशी वस्त्रों का त्याग करने का आह्वान किया. यह स्थान उन्हें बहुत पसंद आया और उन्होंने अपने साथ आये शांतिलाल त्रिवेदी से आग्रह किया कि वे इस स्थान पर एक आश्रम की स्थापना करें. (Historical Gandhi Ashram Chanauda)
बोरारौ क्षेत्र में स्थित इस चनौदा ग्राम में महात्मा गांधी की प्रेरणा से वर्ष 1937 में शांतिलाल त्रिवेदी ने यहाँ एक आश्रम की स्थापना की. स्थापना के बाद से ही यह स्थान इस क्षेत्र में राष्ट्रीय चेतना का केंद्र बन गया. अल्मोडा के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर ने कुमाऊं कमिश्नर को लिखा था कि जब तक यह आश्रम चालू है इस क्षेत्र में ब्रिटिश शासन का चलना मुश्किल है.
इसे राजद्रोह फैलाने वाला आश्रम कहा जाने लगा. 21 अगस्त 1942 को रानीखेत से गोरी फौज ने आश्रम का डेरा डाल दिया. आश्रमवासी अहिंसक और शांत बने रहे. सरकार ने विद्याधर वैष्ण्व, कुशलसिह खर्कवाल सहित सात कार्यकर्ता आश्रम से गिरफ्तार किये. भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान बोरारौ घाटी क्षेत्र में स्वायत्तशासी सरकार के गठन का प्रयास किया गया.
12 अगस्त के दिन पूरे क्षेत्र में हड़ताल का आयोजन किया गया. यहां आयोजित सभाओं में प्रयाग दत्त जोशी की सलाह पर तय किया गया कि नवंबर-दिसम्बर तक एक समानांतर सरकार गठित कर दी जायेगी. 15 अगस्त के दिन प्रयाग दत्त जोशी को गिरफ्तार किया गया और इसके बाद क्षेत्र में क्रान्ति के दमन हेतु तत्कालीन कुमाऊं कमिश्नर एक्टन समेत ब्रिटिश सेना ने भीषण दमन चक्र चलाना प्रारंभ कर दिया. सितम्बर के माह में आश्रम को सील कर दिया गया और आश्रम पर 35 हजार रुपये का जुर्माना लगाया गया. गिरफ्तार सत्याग्रहियों को अल्मोड़ा जेल ले जाते समय ब्रिटिश सेना को स्थान-स्थान पर विरोध का सामना करना पड़ा.
उस समय से स्थापित यह आश्रम अब तक चल रहा है और बड़े पैमाने पर खादी उत्पादन का कार्य कर रहा है. एक समय इस स्थान पर बनी चीजें देश भर में सप्लाई की जाती थीं लेकिन पिछले कुछ वर्षों से इसकी आर्थिक स्थिति बहुत जर्जर हुई है. खादी की घटती मांग और सरकारों की उदासीनता के कारण आज इस आश्रम में कार्य कर रहे लोगों के समक्ष अस्तित्व का सवाल उठ खड़ा हुआ है. भारत के स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले चनौदा के गांधी आश्रम को उसकी प्रतिष्ठा के अनुरूप सरकारी व स्थानीय सहयोग की बड़ी आवश्यकता है.
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