सिखों के दसवें गुरु गोविन्द सिंह ने विचित्र नाटक के छठे भाग में लोकपाल-दंड पुष्करणी के बारे में लिखा –
हेमकुंड पर्वत है जहां, सप्तश्रृंग सोहत है वहां
तहां हम अधिक तपस्या साधी, महाकाल कालका आराधी.
(Hemkund Lake Uttarakhand Location Mythology)
बद्रीनाथ से बीस कि.मी. पहले की ग्रामीण बस्ती गोविन्द घाट है. इसके आगे चार कि.मी. दूरी पर पुलना गाँव आता है. पुलना से छः कि.मी. चढाई कर भूडार गाँव और चार कि.मी. आगे घांघरिया गाँव आता है जो समुद्र तल से 3048 मी. ऊंचाई पर है. ऊपर उत्तर दिशा की ओर लगातार चढाई है. हिमनद भी शुरू हो जाता है. दूर हरे भरे पर्वतों के बीच लक्ष्मण गंगा सरिता प्रवाहित होती है. जैसे-जैसे ऊपर की ओर जाते हैं तो वृक्ष भी धीरे धीरे कम होते जाते हैं और छोटी झाड़ियां दिखने लगतीं हैं. फिर सामने मखमली घास है और साथ में हैं अनगिनत असंख्य पुष्पों की बहार.
घांघरिया से एक रास्ता तीन कि.मी.आगे फूलों की घाटी की ओर जाता है. ब्रिटिश पर्वतारोही फ्रैंक स्माइथ कामेट शिखर के सफल आरोहण के बाद गमशाली गाँव के आगे रास्ता भटक गए और पहुंच गए फूलों की घाटी. 1937 में दुबारा आ उन्होंने यहाँ की दुर्लभ तीन सौ से अधिक पुष्प प्रजातियों पर किताब लिख इस स्थल को विश्व प्रसिद्ध कर दिया.
इससे पहले 1930 से संत सोहन सिंह सप्तश्रृंग के सरोवर की खोज में अपने साथियों के साथ बद्रीनाथ के दुर्गम इलाकों में भटकते रहे थे. पांडुकेश्वर में गाँव वालों से उन्हें ऊंचाई पर स्थित हिमानी झील के बारे में जानकारी मिली. सिखों का विश्वास था कि उनके गुरु गोविन्द सिंह ने पूर्व जन्म में इसी झील स्थल में महाकाल की तपस्या की थी जिसके समीप सप्त श्रृंग या सात शिखर हैं.
(Hemkund Lake Uttarakhand Location Mythology)
1936 में संत सोहन सिंह ने अपने भाई वीर सिंह के सहयोग व सिख समुदाय के जोखिम भरे प्रबल प्रयासों से लोकपाल दंड पुष्करणी में झील के किनारे गुरु गोविन्द सिंह की तपस्या स्मृति के रूप में गुरूद्वारे की स्थापना कर डाली.
स्कन्द तथा नारदीय पुराण में उल्लेख है कि लोकपाल तीर्थ की स्थापना स्वयं श्री हरि ने अपने दंड से की. रम्यगिरि पर्वत को सप्त ऋषियों का आवास कहा जाता था. रम्य गिरि पर्वत के आठ श्रृंग थे जिसके एक श्रृंग को भगवान श्री हरि ने पेय जल प्राप्ति के लिए अपने दंड से खंडित किया तभी से यह पर्वत श्रृंखला सप्तश्रृंग के नाम से जानी गई.
दंडपुष्कर्णी या लोकपाल में गंधर्व सपत्नीक जल विहार करते थे. इस स्थल में जप तप व दान करने के साथ ही ज्येष्ठ शुक्ल द्वादशी को विधिवत स्नान करने का विशेष मह्त्व है. जनश्रुति है कि मेघनाथ का वध करने के बाद लक्ष्मण ने मानसिक शांति के लिए दंडपुष्कर्णी तीर्थ में तप किया. इसी कारण दंडपुष्कर्णी को लक्ष्मण झील तथा यहाँ से प्रवाहित सरिता को लक्ष्मण गंगा के नाम से जाना गया. झील के कोने में लक्ष्मण का प्राचीन मंदिर है जिसमें लक्ष्मण की मूर्ति विद्यमान है. पश्चिम दिशा से जलधारा नीचे ढलान की ओर बहते करीब छः कि.मी. नीचे पुष्पावती नदी में मिलती है जो फूलों की घाटी से आती है.
(Hemkund Lake Uttarakhand Location Mythology)
फूलों की घाटी से ऊपर जो चढाई शुरू होती है उसमें धीमे-धीमे चलते फूलों की मादक गंध से थकान का अहसास नहीं होता. फूलों की सैर और बुग्याल पार करने के बाद चौदह हजार फ़ीट की ऊंचाई तक हिमनद पसरे हैं. फिर आतीं हैं एक हज़ार चौसठ सीढ़ियां जिनके खत्म होते सामने है हेमकुंड लोकपाल. सुबह सूरज की पहली किरण के साथ पंद्रह हज़ार दो सौ फ़ीट की ऊंचाई पर डेढ़ कि.मी. परिधि में पसरी यहाँ की झील के दर्शन जून माह से अक्टूबर माह किए जा सकते हैं. यहाँ दुर्लभ ब्रह्मकमल भी हैं और मोनाल पक्षी भी.
(Hemkund Lake Uttarakhand Location Mythology)
यात्रा की कुछ पुरानी तस्वीरें देखिये :
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जीवन भर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के कुल महाविद्यालयों में अर्थशास्त्र की प्राध्यापकी करते रहे प्रोफेसर मृगेश पाण्डे फिलहाल सेवानिवृत्ति के उपरान्त हल्द्वानी में रहते हैं. अर्थशास्त्र के अतिरिक्त फोटोग्राफी, साहसिक पर्यटन, भाषा-साहित्य, रंगमंच, सिनेमा, इतिहास और लोक पर विषदअधिकार रखने वाले मृगेश पाण्डे काफल ट्री के लिए नियमित लेखन करेंगे.
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