उत्तराखण्ड के गढ़वाल मंडल के उत्तरकाशी जिले में है हरसिल. हरसिल उत्तरकाशी गंगोत्री मार्ग पर 72 किमी की दूरी पर है. मनोरम पर्यटन स्थल के तौर पर जाना जाने वाला हरसिल भारत के प्रमुख सैन्य अड्डों में से है. भारत चीन सीमा पर होने के कारण हरसिल सेना का रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण छावनी क्षेत्र है.
हरसिल में भागीरथी नदी के तट पर लक्ष्मीनारायण मंदिर के पास भगवान श्रीहरि की शिला है. इस लेटी हुई शिला के कारण ही इस जगह को हरसिल कहा जाता है.
हरसिल गाँव में और आसपास उत्तराखण्ड के सबसे घने जंगलों में से एक है. इन जंगलों में देवदार और भोजपत्र के पेड़ भारी तादाद में मौजूद हैं. इन घने जंगलों के बीच से कई छोटी-बड़ी जलधाराएँ आकर भागीरथी में समा जाती हैं. इन जलधाराओं और झरनों की वजह से हरसिल की खूबसूरती को कई गुना बढ़ जाती है.
7800 फीट की ऊंचाई पर बसे हरसिल से साल भर बर्फ से लकदक हिमालयी चोटियों का नजारा दिखाई देता है. हरसिल उत्तराखंड की उन गिनी-चुनी जगहों में से एक है जहाँ सड़क के रास्ते पहुंचकर ही दुर्गम हिमालयी क्षेत्रों जैसे नयनाभिराम प्राकृतिक सौन्दर्य और जैव विविधता का आनंद लिया जा सकता है.
हरसिल से पैदल दूरी पर ही धराली, मुखबा, पुराली और झाला आदि ऐतिहासिक व धार्मिक महत्व के गाँव भी हैं. धराली का पौराणिक कल्पकेदार मंदिर और मुखबा में गंगा मां का मंदिर हरसिल से मात्र 3 किमी की दूरी पर हैं. मुखबा यानी मुखिमठ में गंगोत्री धाम का शीतकालीन प्रवास है. हरसिल से 7 किमी का पैदल ट्रैक सातताल के लिए जाता है. यहाँ पर छोटी-छोटी प्राकृतिक झीलों का समूह देखा जा सकता है.
ग्राम सभा हरसिल पहले मुखबा ग्राम सभा का हिस्सा हुआ करती थी, अब यह एक स्वतंत्र ग्राम सभा है. हरसिल गाँव की आबादी लगभग 1500 है. यहाँ आसपास के गाँवों के लिए इंटर कॉलेज और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भी है. पर्यटन के अलावा आलू, राजमा, चेरी और सेब के बागान स्थानीय ग्रामीणों की अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं. हरसिल की जैविक राजमा देश-विदेश तक में मशहूर है.
हरसिल और इसके आसपास के गांवों में सेब की एक विशिष्ट प्रजाति पायी जाती है, जिसे विल्सन सेब कहा जाता है. इससे जुड़ा रोचक किस्सा है कि ब्रिटिश भारत में फ्रेडरिक ई. विल्सन नाम के एक अंग्रेज ईस्ट इण्डिया कंपनी के कर्मचारी के रूप में भारत आए. एक दफा वे मसूरी घूमने आए और वहां से हरसिल की घाटी पहुँच गए.
हरसिल के मोहपाश ने विल्सन को ऐसा बाँधा कि उन्होंने नौकरी छोड़कर यहीं बसने का फैसला कर लिया. वे हरसिल के होकर रह गए. यहाँ रहकर उन्होंने स्थानीयता को पूरी तरह अपना लिया. उन्होंने गढ़वाली भाषा सीखी और पहले स्थानीय लड़की रायमत्ता से विवाह किया. निस्संतान रहने पर विल्सन ने मुखबा की एक लड़की संग्रामी उर्फ़ गुलाबी से दूसरा विवाह भी किया. इस विवाह से विल्सन को 3 पुत्र हुए. विल्सन ने हरसिल में ही अपने लिए देवदार की लकड़ी से शानदार बंगला बनाया. यह बंगला आज भी हरसिल में वन विश्राम गृह के रूप में अपने मूल स्वरूप में मौजूद है. मुखबा के ग्रामीण बताते हैं कि विल्सन ने अपने ससुरालियों के लिए पांचेक लकड़ी के घर भी मुखबा में बनवाए. विल्सन यहाँ पर ब्रिटेन से सेब की ख़ास प्रजाति के पौधे लेकर आए, इन्हीं पेड़ों के सेब आज स्वादिष्ट विल्सन सेब के नाम से पहचाने जाते हैं.
यह भी कहा जाता है कि फ्रेडरिक ई. विल्सन एक ब्रिटिश फौजी था जो हिमालय के अकूत सौन्दर्य को देखने की ललक से मसूरी से हरसिल आया. विल्सन ने यहाँ रहकर भारतीय रेल के लिए लकड़ी का अच्छा कारोबार किया. फ्रेडरिक ई. विल्सन को पहाड़ी विल्सन, राजा विल्सन और हुलसन नामों से भी जाना जाता है. आज भी विल्सन की कब्र मसूरी में मौजूद है.
हरसिल का जादू कुछ ऐसा है कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के शोमैन के तौर पर पहचाने जाने वाले राजकपूर ने अपनी सुपरहिट फिल्म राम तेरी गंगा मैली का ख़ासा हिस्सा हरसिल में ही फिल्माया.
आज भी देश-विदेश के पर्यटकों को हरसिल बहुत आकर्षित करता है. अप्रैल से अक्तूबर तक यहाँ भारी संख्या में सैलानी आते हैं. जाड़ों में बर्फ की सजधज के बीच हरसिल एक अलग तरह की खूबसूरती ओढ़ लेता है, तब भी यहाँ पर्यटक आया करते हैं. हरसिल में रहने-खाने के पर्याप्त ठिकाने मौजूद हैं.
—सुधीर कुमार
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