कुमाऊं के अनेक प्रतिष्ठित देवता हैं— जैसे गोलू, हरू, सैम, ऐरी, गंगनाथ, भोलानाथ, कलबिष्ट, चौमू, भूमिया आदि. ये सभी मध्यकाल के उदार और आदर्शवादी शासक हुआ करते थे जो अपनी क्षेत्री सीमाओं पर विजय प्राप्त कर देवता के समान प्रतिष्ठित हुए. (Golu Devta Mandir Chitai Almora)
गोलू कुमाऊं के सर्वाधिक प्रतिष्ठा प्राप्त देवता हैं. अन्य देवताओं की तरह ये भी हमारी शारीरिक, मानसिक बाधाओं को दूर कर अध्यात्मिक सुख देते हैं. गोलू को न्याय का देवता भी माना जाता है. गोलू कुमाऊं क्षेत्र के सर्वाधिक लोकप्रिय देवता हैं. लगभग पूरे कुमाऊं में गोलू देवता के मंदिर हर गाँव में हैं.
गोलू देवता के तीन मंदिर सर्वाधिक लोकप्रिय और मान्यता प्राप्त हैं— घोड़ाखाल, चितई और चम्पावत के मंदिर.
चितई में गोलू देवता का मंदिर अल्मोड़ा से छह किलोमीटर की दूरी पर है. आकार में बहुत छोटा यह मंदिर समूचे कुमाऊं के अलावा देशभर के अन्य हिस्सों में भी श्रद्धा का केंद्र है. इस मंदिर के निर्माण के ऐतिहासिक तथ्य तो नहीं मिलते इतना अवश्य है कि 1909 में इसका पुनर्निर्माण हुआ.
चितई मंदिर के गर्भगृह में घोड़े पर सवार, हाथ में धनुष-बाण लिए गोलू देवता की प्रतिमा प्रतिष्ठित है. इसमें गोलू देवता ने राजसी वस्त्र धारण किये हुए हैं.
गोलू की प्रतिमा के अलावा यहां पर मां कलिंका तथा उनके सेवकों की प्रतिमाएँ भी हैं. गोलू के सेवक कलुवा मसाण की मूर्ति मंदिर के प्रवेशद्वार पर ही प्रतिष्ठित है.
चितई में गोलू के प्रतिनिधि गौर-भैरव की भी पूजा की जाती है.
अष्टकोणीय आकार का चितई मंदिर हजारों छोटी-बड़ी घंटियों से पटा हुआ है. ऐसी मान्यता है कि गोलू भगवान को गोलू देवता के मंदिर में त्रिशूल व घंटियां चढाने से मनोकामनाएं पूर्ण हुआ करती हैं. कभी यहां मनोकामना पूर्ति के लिए बकरे की बलि दिए जाने की भी परंपरा थी.
मंदिर के आंगन में बने धूनी कुंड के चरों ओर अनगिनत छोटे-बड़े त्रिशूल गड़े हुए हैं.
चितई मंदिर के प्रांगण में बंधे तारों पर हजारों कागज के टुकड़े टंगे हुए हैं. इन कागजों में श्रद्धालुओं द्वारा न्याय की प्रार्थना की गयी है. इन अर्जियों में इच्छित मनोकामना पूर्ति पर चढ़ावा चढ़ाने के वचन भी लिखे रहते हैं.
चितई गोलू देवता मंदिर को गोलू देवता की पीठ माना जाता है. इस वजह से यहां पर कामनापूर्ति के लिए मनौती मांगने वाले भक्तों की भारी भीड़ हुआ करती है.
गोलू देवता को नारियल और मिठाई की भेंट अर्पित कर मनौती मांगी जाती है. मनौती पूर्ण होने पर घंटियां व त्रिशूल भेंट किये जाते हैं. भेंट में अनाज की पोटलियाँ भी चढ़ाई जाती हैं.
ऐसा विश्वास है कि गोलू देवता अन्यायी को दंड देकर पीड़ितों को न्याय दिया करते हैं. इसलिए गोलू देवता मंदिर को उनका न्यायालय भी माना जाता है, इसी वजह से यहां पर रविवार को प्रार्थनाएँ नहीं भेजी जाती. उच्च न्यायालय तक से न्याय न मिलने पर श्रद्धालु यहां पर आया करते हैं.
गोलू देवता के मंदिर में लोग अन्याय और उत्पीड़न के खिलाफ घात भी लगाया करते हैं. उत्पीड़ित व्यक्ति चीख-चिल्लाकर गोलू के दरबार में घात लगता है. वह कहता है ‘हे! चितई के गोलू देवता आपने स्वयं देखा कि मेरे प्रति कितना अन्याय हुए है. आप न्यायी हैं अतः अन्यायी को दंड दें. घात लगाने वाले की पुकार में सत्यता होने पर अत्याचारी, अन्यायी व्यक्ति का अनिष्ट हो जाता है.
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(अल्मोड़ा बुक डिपो द्वारा प्रकाशित सी. एम. अग्रवाल द्वारा लिखित ‘कुमाऊँ हिमालय के न्याय देवता गोलू’ के आधार पर)
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