व्यक्तित्व

आंखें नहीं तो क्या, उम्मीदों की रोशनी का उजियारा बहुत है

ये उस शख्स के दृण संकल्प का नतीजा है जिसने अपनी आंखों की रौशनी तो खो दी मगर समाज में अलख जगाने के काम करते हुए अपनी अलग पहचान बनाई है. (Girish Thuwal Social Worker)

किसी ने सही कहा है कि जहां चाह वहां राह, ठीक ऐसे ही एक शख़्सियत  नैनीताल जिले के ओखलकांडा ब्लाक के खुटियाखाल निवासी गिरीश थुवाल हैं जो दृष्टिहीन होते हुए भी आज के नौजवानों के लिए मिसाल हैं.

क्षेत्र में अपनी विशिष्ट पहचान बनाये हुए थुवाल को हर कोई प्यार से दादा कह के पुकारता है गिरीश बचपन में रतौंधी का शिकार हो गए. कई जगह ईलाज करवाया पर कोई सफलता नहीं मिली और धीरे-धीरे कुदरत ने दोनों आंखों की रोशनी छीन ली,  नवीं कक्षा हेल्पर की मदद से उत्तीर्ण की. पिता मोहन थुवाल और माता हीरा थुवाल ने हमेशा हर संभव मदद की.

गिरीश ने तय कर लिया कि वह कुछ अलग कर के समाज में अपनी पहचान बनाएगा. इस तरह उन्होंने समाज सेवा की शुरुआत की. बेरोजगार युवाओं को रोजगार, स्व रोजगार के लिए प्रेरित किया. विधवा पेंशन,  वृद्धावस्था पेंशन के लिए दफ्तरों के चक्कर काट रहे लोगों के कार्य पूर्ण करवाए. वृहद वृक्षारोपण कार्यक्रम चलाये और श्रमदान कर कर गाँव के जल स्रोतों को साफ़ किया. जीर्ण मार्गों की दशा सुधारने खुद ही हाथ में फावड़ा पकड़ लिया.

अब तक वे अकेले ओखलकांडा ब्लाक में ही बीस से ज्यादा युवाओं की दहेज़ रहित शादी करवा चुके हैं. गिरीश विकलांग विकास योजना और अश्व कल्याण समिति के अध्यक्ष हैं और क्षेत्र में विकलांगों और घोडा -खच्चर पालकों के लिए कार्य कर रहे हैं. लन्दन की संस्था ब्रूके हॉस्पिटल फॉर एनिमल्स के साथ हाथ मिला कर गिरीश काफी खुश हैं अपनी एनजीओ के माध्यम से वे राज्य और केंद्र सरकार द्वारा उपेक्षित उपेक्षित लोगों की मदद करते हैं. उनका मानना है कि जब तक मनुष्य का दिमाग सही कार्य करे तब तक वो किसी की मदद का मोहताज़ नहीं होता.

गिरीश थुवाल

गिरीश निरन्तर अपने पथ पर अग्रसर हैं और बताते हैं की 124 अश्व कल्याण समूह का गठन कर चुके हैं. वे अब तक ओखलकांडा, धारी और रामगढ ब्लाक में दो हजार से भी अधिक घोड़ों का टीकाकरण करवा चुके हैं. जब कुछ माह घोड़ों पालकों के पास कार्य नहीं होता तो उस वक़्त जैम, जेली, अचार, मोमबत्ती, माचिस जैसे लघु उद्योगों के जरिये घोडा पालकों को आर्थिक संकट से उबारने में भी उनका स्वयं सहायता समूह कार्य करता है. मुक्तेश्वर से बॉलीवुड तक निर्मला की उड़ान

गिरीश ने घोड़ों को खिलाये जाने वाले बाज़ार में उपलब्ध महंगे दाने के बदले अपने स्वयं सहायता समूह के माध्यम से नायाब तरीका निकाला है. वह बताते हैं की उनके स्वयं सहायता से जुड़े स्वयंसेवी गांवों से उन खाद्यान्नों को एकत्र करते हैं जो आदमी के खाने लायक नहीं होता, जिनमें जौ, गेहूं, मक्का, चना, बाजरा आदि होता है, उन्हें खरीद कर अपने स्वयं निर्मित प्लांट में लाते हैं और एक वैज्ञानिक विधि, निर्धारित मात्रा और अनुपात में तैयार कर घोडा पालकों को बेच देते हैं. पैकिंग, मार्केटिंग के खर्चे निकालने के बाद समूहों को 10 से 20 हज़ार तक की आय हो जाती है.

खुशमिजाज, निर्भीक गिरीश के मन में एक टीस है जो बार-बार सामने आ जाती है कहते हैं की उन्हें आजतक कभी राज्य सरकार से किसी भी प्रकार से मदद नहीं मिली उन्होंने एक बार प्रधानमंत्री विवेकाधीन कोष से राहत मांगते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखा जिस पर सोनिया गांधी ने समाज कल्याण विभाग और तत्कालीन मुख्यमंत्री उत्तराखंड रमेश पोखरियाल निशंक को पत्र लिख गिरीश को आर्थिक सहायता दिलवाने को कहा था पर इतना लम्बा वक़्त बीत जाने के बाद भी आजतक गिरीश पर किसी की नज़र नहीं गयी. इस उपेक्षा से गिरीश काफी आहत हैं और कहते हैं की तब से लेकर आज तक किसी भी सरकार या अधिकारी से कोई मदद नहीं मांगी. गिरीश कहते हैं खुद से कभी नाराज़ न होना, दूसरों से कोई उम्मीद न रखना और मजबूत इच्छा शक्ति कभी भी किसी भी व्यक्ति को हार का मुंह नहीं दिखाएगी.

गिरीश आजकल अपने गांववासियों के साथ मिलकर धारी और ओखलकांडा विकास खण्ड के लगभग दो दर्जन गांवों के बीच संपर्क बनाने के लिए सड़क निर्माण का कार्य कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि कई बार शासन-प्रशासन से मांग रखने के बावजूद जब सड़क निर्माण के लिए कोई रास्ता खुलता नजर नहीं आया तो स्वयं ही बीड़ा उठा लिया और ओखलकांडा के जाड़ापानी से शुरू होकर धारी ब्लॉक के गुनियालेख तक बनाये जाने वाले तीन किमी मोटर मार्ग का निर्माण कार्य शुरू कर दिया है. गिरीश ने बताया कि मार्ग पूर्ण होने के बाद धारी ब्लॉक के च्यूरिगाड के लोगों को 70 किमी के फेर से निजात मिलेगी और ये दूरी मात्र 25 किमी ही रह जायेगी. बहरहाल गिरीश और उनके साथी जल्द ही सड़क मार्ग पूर्ण कर लेंगे जिसको लेकर पूरे गांव में खुशी है.

हल्द्वानी में रहने वाले भूपेश कन्नौजिया बेहतरीन फोटोग्राफर और तेजतर्रार पत्रकार के तौर पर जाने जाते हैं.

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Sudhir Kumar

Recent Posts

कुमाउँनी बोलने, लिखने, सीखने और समझने वालों के लिए उपयोगी किताब

1980 के दशक में पिथौरागढ़ महाविद्यालय के जूलॉजी विभाग में प्रवक्ता रहे पूरन चंद्र जोशी.…

4 days ago

कार्तिक स्वामी मंदिर: धार्मिक और प्राकृतिक सौंदर्य का आध्यात्मिक संगम

कार्तिक स्वामी मंदिर उत्तराखंड राज्य में स्थित है और यह एक प्रमुख हिंदू धार्मिक स्थल…

6 days ago

‘पत्थर और पानी’ एक यात्री की बचपन की ओर यात्रा

‘जोहार में भारत के आखिरी गांव मिलम ने निकट आकर मुझे पहले यह अहसास दिया…

1 week ago

पहाड़ में बसंत और एक सर्वहारा पेड़ की कथा व्यथा

वनस्पति जगत के वर्गीकरण में बॉहीन भाइयों (गास्पर्ड और जोहान्न बॉहीन) के उल्लेखनीय योगदान को…

1 week ago

पर्यावरण का नाश करके दिया पृथ्वी बचाने का संदेश

पृथ्वी दिवस पर विशेष सरकारी महकमा पर्यावरण और पृथ्वी बचाने के संदेश देने के लिए…

2 weeks ago

‘भिटौली’ छापरी से ऑनलाइन तक

पहाड़ों खासकर कुमाऊं में चैत्र माह यानी नववर्ष के पहले महिने बहिन बेटी को भिटौली…

2 weeks ago