उत्तरकाशी गंगोत्री रोड पर 73 किमी की दूरी पर बसे खूबसूरत गाँव हरसिल को भला कौन नहीं जानता. हरसिल से ही भागीरथी नदी को पार कर लगभग 3.50 किमी की दूरी तय करने के बाद आता है मुखबा. हरसिल से 3 किमी आगे धराली से भी एक पैदल रास्ता मुखबा के लिए जाता है. दरअसल मुखबा और धराली भागीरथी नदी के आर-पार, आमने-सामने बसे हैं. मुखबा अपने पहाड़ी बनावट के घरों, सेब के बागानों, राजमा के खेतों और पृष्ठभूमि में श्रीकंठ पर्वत के लिए तो जाना ही जाता है, मुखबा की सबसे बड़ी पहचान है मां गंगा के मंदिर से.
मुखबा को मुखीमठ, मुखवास या मुख्यमठ भी कहा जाता है. मुखबा उन चार मठों में से एक है जहाँ शीतकाल के दौरान चारधाम के देवों की पूजा-अर्चना की जाती है. मुखबा देवी गंगा का शीतकालीन प्रवास व पूजा स्थल है. वैसे यहाँ साल भर गंगा की पूजा की जाती है लेकिन गंगोत्री धाम के शीतकाल में बर्फ से अट जाने से पहले गंगा की मूर्ति को गंगोत्री से मुखबा ले आया जाता है. स्थानीय श्रद्धालुओं का एक जुलूस विधि-विधान के साथ मां गंगा की डोली मुखबा लेकर आता है. बसंत तक गंगा मुखबा में ही विराजमान रहती है. गर्मियों में मुखबा के ग्रामीण भव्य शोभायात्रा के साथ गंगा की भोग मूर्ति को गंगोत्री ले जाते हैं. गंगा को गंगोत्री ले जाने, लाने के मौकों पर गाँव के लोग एक महीने तक इस आयोजन की तैयारियां करते हैं.
मुखबा में गंगा मंदिर से सटा हुआ है समेश्वर देवता का मंदिर. समेश्वर देवता मुखबा के ग्रामीणों के लिए ग्राम देवता हैं. अब इसी परिसर में नरसिंह मंदिर का निर्माण किया जा रहा है, इसका कामकाज तेजी के साथ चल रहा है. ये सभी मंदिर देवदार के जंगलों से घिरी पहाड़ी ढलान पर एक छोटे से समतल मैदान में मौजूद हैं. गाँव के बीचों-बीच यह मैदान स्थानीय बच्चों के लिए एक खेलकूद की जगह भी है.
मुखबा में ही रहते हैं गंगोत्री धाम के तीर्थ पुरोहित. मुखबा के सेमवाल जाति के ब्राह्मण ही गंगोत्री के तीर्थ पुरोहित हुआ करते हैं. रमेश चन्द्र सेमवाल बताते हैं कि इस समय यहाँ गंगोत्री धाम के पुरोहितों की चौदहवीं पीढ़ी निवास कर रही है.
मुखबा गाँव को मार्कंडेय ऋषि की तपस्थली के रूप में भी जाना जाता है. किवदंती है कि मुखबा में कभी पांडवों का भी प्रवास रहा था.
मुखबा का नाता ब्रिटिशकालीन अंग्रेज लकड़ी व्यापारी फ्रेडरिक विल्सन के साथ भी जुड़ा है. हरसिल के राजा कहे जाने वाले ईस्ट इण्डिया कंपनी के कर्मचारी रहे फ्रेडरिक विल्सन ने हरसिल में बस जाने के बाद मुखबा की लड़की से शादी रचाई थी.
सितम्बर में मुखबा में लगने वाला सेल्कु मेला अपनी विशिष्ट पहचान रखता है. बर्फ़बारी के स्वागत का उत्सव सेल्कु मेला
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