आजादी की चेतना जगाने के लिए कुमाऊं के कई इलाकों में महात्मा गांधी घूमे. लेकिन कौसानी उनको इतना भाया कि उन्होंने यहां लंबा प्रवास किया. बापू 24 जून 1929 को कौसानी पहुंचे और 7 जुलाई तक यहां रुके. 14 दिन के इस प्रवास के दौरान कुमाऊं में आजादी के आंदोलन को जो धार मिली, वह बढ़ती चली गई.
कौसानी यानी भारत का स्विट्जरलैंड. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने तो उत्तराखंड के इस मनोरम पर्यटन स्थल के बारे में यही कहा था. यहां आने वाले पर्यटक भी कौसानी के अद्भुत सौंदर्य से मुग्ध हुए बगैर नहीं रह पाते. यह 1890 मीटर की ऊंचाई पर बसा खूबसूरत कस्बा है, जहां से हिमालय का विहंगम दृश्य दिखाई देता है. यहां से आप हिमालय के 350 किलोमीटर लंबे नजारे को एक साथ देख सकते हैं. यहां से देखने पर ऐसा लगता है जैसे त्रिशूल, नंदादेवी और पंचचूली जैसी चोटियां आपके एकदम करीब आकर खड़ी हो गई हों.
उत्तराखंड के बागेश्वर जिले के कौसानी में स्थित अनासक्ति आश्रम में जून 1929 में महात्मा गांधी 14 दिनों के एकांतवास पर आए थे,उन्होंने यहीं से हिमालय दर्शन किया था और हिमालयी ऊर्जा लेने के बाद देशव्यापी सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत की थी. डाक विभाग के जरिए उन्होंने यहीं से अपने महादेव देसाई, छगनलाल जोशी, मणिलाल, सुशीला गांधी समेत कई शुभचिंतकों को पत्र भेजे थे और कई पत्र उनके पास आए भी थे.
वो आजादी की लड़ाई का समय था. अंग्रेजी ताकत से देश को स्वतंत्र कराने की बढ़ती छटपटाहट का दौर. एक तरफ विरोध की हिंसक अभिव्यक्ति तो दूसरी ओर अहिंसक प्रतिकार. महात्मा गांधी ने जब अहिंसा को हथियार बनाया तो इसकी एक प्रयोगशाला कुमाऊं भी रहा. बापू ने कौसानी को कर्मस्थली बनाया और देखते-देखते पूरे कुमाऊं में अहिंसा एक आंदोलन बन गई. महात्मा गांधी के विचारों ने, उनके भावी सपनों ने और बगैर कोई हथियार थामे आंदोलन में कूदने की प्रेरणा ने लोगों में इतनी ऊर्जा भरी कि उन्होंने लाठियां खाईं, जेल गए, मगर स्वाधीनता पाने का हौसला नहीं खोया. कौसानी से बहुत सी यादें जुड़ी हैं.
अनासक्ति आश्रम महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए बनाया गया था. प्राकृतिक सौंदर्य से अभिभूत होकर इसे ‘भारत का स्विट्जरलैंड’ की संज्ञा दी थी. यह वही स्थान है, जहां उन्होंने अपनी पुस्तक अनासक्ति योग लिखी थी. आश्रम में गांधी जी के जीवन से जुड़ी पुस्तकों और फोटोग्राफ्स का अच्छा संग्रह है और एक छोटी-सी बुकशॉप भी है.
राष्ट्रपति महात्मा गांधी से जुड़ी ऐतिहासिकता ने भी बड़ी-बड़ी हस्तियों को यहां आने पर मजबूर किया. इन हस्तियों में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, सोनिया गांधी, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता डॉ. कर्ण सिंह और अरुण शौरी प्रमुख हैं. डॉ. सिंह और अरुण शौरी को यह जगह इतनी पसंद आई कि वे अक्सर आकर यहां रहा करते हैं. प्रख्यात साहित्यकार निर्मल वर्मा को भी कौसानी पसंद थी.उन्होंने कई बार यहां की यात्राएं कीं.
कौसानी में जहां महात्मा गांधी ने प्रवास किया था, वहां पहले जिला पंचायत का भवन था. भवन निर्माण ब्रिटिश काल में हुआ था. महात्मा गांधी के जाने के बाद यहां प्रार्थना सभा होने लगी. इसके बाद नए भवन का निर्माण किया गया. गांधी स्मारक निधि की ओर से 1966 में इस बंगले को ‘अनासक्ति आश्रम’ का नाम दिया गया. ‘अनासक्ति’ का शाब्दिक अर्थ आसक्ति यानी राग-द्वेष से मुक्ति है.
कौसानी से महात्मा गांधी ने 21 जून 1929 को अपने निजी सचिव महादेव देसाई को लिखा था यह पत्र ..मैं हिमालय की गोद में बैठा हूं और यह ऋषिराज अपने श्वेत वस्त्र पहने हुए सूर्य-स्नान करते-करते आनंद में लीन है. इस जगह के बारे में गांधी जी ने लिखा है-‘इन पहाड़ों में प्राकृतिक सौंदर्य की मेहमाननवाजी के आगे मानव द्वारा किया गया कोई भी सत्कार फीका है. मैं आश्चर्य के साथ सोचता हूं कि इन पर्वतों के सौंदर्य और जलवायु से बढ़ कर किसी और जगह का होना तो दूर, इनकी बराबरी भी संसार का कोई सौंदर्य स्थल नहीं कर सकता. अल्मोड़ा के पहाड़ों में करीब तीन सप्ताह का समय बिताने के बाद मैं बहुत ज्यादा आश्चर्यचकित हूं कि हमारे यहां के लोग बेहतर स्वास्थ्य की चाह में यूरोप क्यों जाते हैं.
इस आश्रम में बापू के जीवन-दर्शन को सहेजने का प्रयास किया गया है. उनसे जुड़ी यादों के रूप में कुछ किताबें हैं, कुछ बर्तन हैं, कुछ तस्वीरें हैं और कुछ कपड़े. लोग जब आश्रम पहुंचते हैं तो आजादी के दौर की याद ताजा हो जाती है और उसी जज्बे के साथ लौटते हैं.
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