एक गांव में एक परिवार रहता था जिसमें परिवार के नाम पर दो ही सदस्य थे, पति और पत्नी. पति एक मेहनती और समझदार किसान था. पति जितना होशियार व समझदार था पत्नी उतनी ही सीधी-सादी थी, चालाकी व हेर-फेर बिल्कुल नहीं जानती थी. बल्कि उसकी एक कमजोरी यह थी कि उसके घर में जो भी बात होती उसे अपने तक नहीं रख पाती थी. मौका मिलते ही वह देवरानी-जेठानियों को सारी बातें साफ-साफ बता देती. उसका पति उसकी इस आदत से बहुत परेशान था, समझाता भी कि घर की बातें घर में ही रहनी चाहिये, परन्तु वह आदत से मजबूर थी. (Folklore)
उनका घर काफी छोटा था तो पति ने सोचा कि क्यों न मैं खाली समय में कहीं गांव से दूर पत्थर निकालकर जमा करूं जिससे घर को बड़ा बना सकूंगा. जब भी फुरसत मिलती वह घर से फावड़ा, गैंती, कुदाल और पाठल साथ में लेकर ऐसी जगह की खोज में निकल पड़ता जहाँ आसानी से पत्थर निकाले जा सके. एक दिन उसे गांव से काफी दूर कुछ पुराने खण्डहर दिखाई दिए जिनमें खूब सारी झाड़ियां जमी थी. वहाँ खुदाई करके काफी पत्थर निकाले जा सकते हैं यह सोचकर उसने झाड़ियां साफ की और फिर खुदाई करनी शुरू की.
खोदते-खोदते उसे जमीन के अन्दर एक कलश जैसा बर्तन दिखाई पड़ा. उसने कलश का मुहँ खोल कर देखा तो उसके अन्दर चांदी, सोने के सिक्के व आभूषण भरे हुए थे, जिसे देखकर उसे अपार हर्ष हुआ, परन्तु वह फिर डर भी गया. उसके मन में कई बिचार आये. इस भुतहे खण्डहर से धन ले जाया जाय या नहीं और ले जाऊं तो कैसे ले जाऊं? सोचने लगा कि यदि मैं यह धन दिन में यहाँ से नहीं ले जा सकता तो रात में इस वीरान व सुनसान जंगल से अकेले कैसे ले जाऊंगा. किसी पर विश्वास नहीं किया जा सकता है. हाँ, पत्नी को ही साथ में लेकर आना पडे़गा, परन्तु पत्नी तो इतनी बातूनी है कि वह सारी बातें लोगों को बता देगी. क्या करूं, क्या न करूं की स्थिति हो गयी. मिला हुआ धन छोड़ा भी नहीं जा सकता और यहाँ से ले जाने में समस्या है. काफी सोचने के बाद उसने इस समस्या का हल ढूंढ ही लिया.
दूसरे दिन वह बाजार से कुछ मछलियां व पूरियां ले आया जिन्हें लेकर वह दोपहर में ही उस रास्ते पर अकेले आगे बढ़ा. रास्ते में एक जगह झाड़ियों पर मकड़ी का बड़ा जाला बना हुआ था. उसने बड़ी अच्छी तरकीब से जाले के इर्द-गिर्द मछलियां लटका दी. कुछ आगे जाकर एक पेड़ से नीचे की ओर लटक रही टहनियों पर लायी हुयी पूरियां इस सफाई से बांध दी कि लगे कि फल की जगह पेड़ पर पूरियां लगी हुयी है. पूरे रास्ते में तीन-चार जगहों पर उसने यह कारनामा किया.
दोपहर बाद वह घर पहुँचा. उसने पत्नी से तैयार होकर मकान बनाने के लिए निकाले गए पत्थर घर लाने के लिए वहाँ चलने को कहा. पत्नी ने सवाल किया कि अब तो सांझ होने वाली है कल दिन में ले आयेंगे. जिस पर पति ने वक्त आने पर वह सब समझ जायेगी की बात कहकर उसे चुप करा दिया. वे अन्धेरा होने से पहले ही घर से निकल गए.
रास्ते में पति ने अपनी पत्नी को एक जगह लगे मकड़ी के जाले की तरफ देखने को कहा. जैसे ही पत्नी ने जाले की तरफ देखा तो वह जोर से चिल्लाई, ‘अरे! यह क्या है? मकड़ी के जाले पर मछलियां फंसी है?’ पति ने कहा ‘हाँ, मैनें भी ऐसा पहले कभी नहीं देखा है.’ कुछ आगे बढे़ तो एक पेड़ पर पूरियां लटक रही थी. उसने अपनी पत्नी को बताया कि ‘वह देख पेड़ पर पूरियां लटकी हुयी है.’ दो-तीन जगहों पर ऐसा देखा तो पत्नी को बड़ी हैरानी हुई. रोमांचित होकर बड़बड़ाने लगी ‘यह तो बड़े गजब की बात है, यह हम कहीं दूसरे लोक पर तो नहीं आ गये?’ चलते-चलते पति और पत्नी उस जगह पहुँच गए जहाँ पर उसने दिन में सोना, चांदी और अशरफियों से भरा कलश दबा हुआ देखा था. उन दोनों ने खुदाई की और उस धन से भरे कलश को थैले में डालकर घर ले आये.
पत्नी रात भर सोचती रही कि इस बात को किसी को बताऊं या न बताऊं. हालांकि पति ने उसे इस बावत अपनी जुबान पर ताला लगाने को कहा था, परन्तु वह तो आदत से मजबूर थी. उसे रात भर नींद नहीं आई. सुबह होते ही वह पानी भरने गयी तो जान-बूझकर लंगड़ाकर चलने लगी. सहेलियों ने उसे पूछा कि क्या हुआ? क्यों लंगड़ा रही है? कुछ नहीं, कुछ नहीं कह पहले तो उसने नखरे दिखाए परन्तु औरतें भी कहां मानने वाली थी. उसके पीछे पड़ गयी. तब उसने भी ज्यादा देर न करके रात की घटना बता दी कि हमें एक जगह बहुत सारा धन मिला है, उसे वहाँ से घर लाते वक्त यह मोच आ गयी है. उसे जगह का तो सही-सही पता नहीं था इसलिये जगह के बारे में नहीं बता पायी परन्तु उसने जो अद्भुत नजारे रास्ते में देखे थे वे भी नहीं बताए. केवल धन का ही बखान करती रही. पनिहारिनें घर लौटी तो खबर पूरे गांव में आग की तरह फैल गयी.
आखिर यह खबर राजदरबार तक भी पहुँच गयी. राजा ने जब यह सुना तो पति-पत्नी को उस धन सहित दरबार में पेश होने के लिये कुछ सिपाहियों को भेजा. पति जानता था कि यह बात जरूर फैलेगी इसलिये उसने वह धन अपने घर में रखा ही नहीं था, बल्कि घर से थोड़ी दूरी पर पहले ही ही छुपा दिया था. जिससे सिपाहियों को घर में कुछ नहीं मिला. पति-पत्नी को ही दरबार में राजा के सामने पेश किया गया.
राजा ने पति से पूछा तो उसने जवाब दिया कि, मेरी पत्नी झूठ बोल रही है महाराज. अगर इसने धन देखा है तो वहाँ पहुँचने वाले रास्ते के बारे में भी इसे अवश्य मालूम होगा. पत्नी क्योंकि उसके पति द्वारा ही झूठी ठहराई जा चुकी थी इसलिये राजा ने कड़ककर उसे सही-सही और सिर्फ सच बोलने के लिए ही कहा, तो उसने घबराते हुये कहा कि ‘महाराज, मुझे रास्ते का सही-सही ज्ञान तो नहीं है परन्तु मैनें वहाँ जाने वाले रास्ते में कई जगहों पर झाड़ियों में मकड़ी के जाले पर खूब मछलियां फंसी हुयी देखी और दो जगह तो पेड़ पर पूरियां भी लटकी हुयी थी और और…
सुनते ही दरबार में बैठे सभी लोग जोर-जोर से हंसने लगे. राजा को भी पहले तो बड़ी जोर की हंसी आई फिर क्रोध भी आया कि यह औरत तो सचमुच ही पागल है. राजा ने सिपाहियों को आदेश दिया कि ‘इस औरत को चार डण्डे मारकर दरबार से भगा दो. खाम-खाँ दरबार का वक्त जाया कर रही है…’ पति अपनी तरकीब पर मन ही मन बड़ा खुश हुआ. धन भी सुरक्षित बच गया और पत्नी को भी सबक मिल गया. उसके बाद पत्नी ने कसम खाई कि अब मैं कभी अपने घर का भेद किसी को नहीं बताऊंगी. बातूनी औरत हमेशा अपना ही बुरा करती है.
देहरादून में रहने वाले शूरवीर रावत मूल रूप से प्रतापनगर, टिहरी गढ़वाल के हैं. शूरवीर की आधा दर्जन से ज्यादा किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं. विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लगातार छपते रहते हैं.
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