समाज

ऊँची चोटियों पर क्यों बसते हैं पहाड़ियों के लोकदेवता

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये क्लिक करें – Support Kafal Tree

पहाड़ी अपने सरल व्यवहार के लिए जाने जाते हैं. उनका सरल व्यहार उनकी जीवन-शैली में भी खूब झलकता है फिर चाहे उनका खानपान हो या ऊँची पहाड़ियों में रहने वाले उनके लोक देवता, सरलता ही उनकी विशिष्टता है.
(Folk Gods of Uttarakhand)

पहाड़ियों के लोक देवता चोटियों पर रहते हैं. किसी भी गांव के लोक देवता का वास उस गांव से लगी सबसे ऊँची चोटी में ही होता है. ऊँची चोटी पर महज कुछ पत्थरों का एक घेरा होगा या किसी पेड़ की छांव पहाड़ियों के लोक देवता वहीं एकांत में रहते हैं. अब सवाल उठता है कि पहले से ही उंचाई में रहने वाले पहाड़ियों के बुजुर्गों ने अपने देवताओं के लिए ऊँची चोटियां क्यों चुनी होंगी.

इन सवालों के कई तरह के जवाब मिलते हैं पहला जवाब तो शुद्धता से जोड़कर दिया जाता है. लोगों का मानना है कि देवता का वास ऐसे किसी स्थान में होता है जहां शुद्धि हो. शुद्धि का अर्थ गावों में मानी जाने वाली अपनी परम्पराओं से है. इस मान्यता के अनुसार लोक देवता का वास स्थान गाँव से हटकर ऐसे स्थान में किया जाना चाहिये जो दैनिक जीवन की पहुंच से दूर हो.
(Folk Gods of Uttarakhand)

दुसरे जवाब के अनुसार देवताओं का वास आमजन के रहने वाली जगह से अधिक ऊँचाई पर होना चाहिए. मान्यता के अनुसार आराध्य का निवास स्थान मानव के निवास स्थान से उच्च स्थान पर होना चाहिये. देवताओं का वास आमजन के साथ उनसे नीचे कैसे हो सकता है.

कुछ समाजशास्त्रियों ने इसे सामाजिक ताने बाने से जोड़कर देखा है. उनके अनुसार ऊँचे स्थानों में लोकदेवताओं का वास होने सामजिक सौहार्द बढ़ता है. देव पूजन के समय गाँव के लोग मिलकर काम करते हैं. ऊँचे स्थान जहां लोक देवताओं का वास होता है वहां न पानी होता है न भोजन पकाने का प्रबंध. लोक देवता के किसी भी प्रकार के पूजन के लिए लोगों को एक-दूसरे की सहायता करनी ही पड़ेगी.           

मानवशास्त्रियों की माने तो लोक देवों का निवास स्थान गाँव से हटकर या ऊँचे स्थानों में होने के पीछे वैज्ञानिक कारण हैं. पहाड़ों की भौगौलिक स्थिति के चलते भी विपदा के समय ऊँचे स्थान सुरक्षित माने जाते हैं. विपदा के समय ऊँचे स्थान पर लोक देवता के वास की शरण लोगों को आत्मबल भी देता है. विपदा के समय ग्रामीणों की आस्था उनका विश्वास बनती है और उन्हें किसी भी विपदा से लड़ने की शक्ति देता है.
(Folk Gods of Uttarakhand)

काफल ट्री फाउंडेशन

Support Kafal Tree

.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Sudhir Kumar

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

2 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

2 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

3 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

4 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago