कला साहित्य

जहाजी मजदूर से नृत्य की ऊंचाई को छूनेवाला उस्ताद – अस्ताद देबू

बीती 10 दिसम्बर 2020 को भारतीय संस्कृति में एक अहम मुकाम पैदा करने वाले नर्तक अस्तद देबू का देहांत हो गया. आधुनिक नृत्य के जनक मानेजानेवाले 13 जुलाई 1947 को जन्मे अस्ताद देबू ने अपनी बहुमुखी नृत्य साधना का सफर एक कार्गो जहाज से मजदूर के तौर पर शुरू किया था. शालिनी जोशी द्वारा नौ वर्ष पहले ऋषिकेश में किया गया उनका एक ऐतिहासिक इन्टरव्यू पेश है. (Exclusive Interview Astad Deboo)

पचास से भी अधिक सालों से नृत्य करते रहे अस्ताद को कत्थक, कथकली और पश्चिमी नृत्य में समान रूप से महारथ हासिल थी. उनकी प्रस्तुतियों में लोच,नियंत्रण और संतुलन का सौंदर्य और पारंपरिक और आधुनिक नृत्य शैलियों का विलक्षण संयोजन देखने को मिलता था. फ्रांस,जर्मनी, ब्रिटेन,स्पेन और अमरीका में अपनी कोरियोग्राफी और एकल प्रस्तुतियों से धूम मचानेवाले अस्ताद ने नृत्य को आधुनिक जीवन के संदर्भों से तो जोडा ही , मुक्तिबोध और कबीर की रचनाओं को भी नृत्य में अभिव्यक्त किया. 73 साल की उम्र में भी वो प्रयोगधर्मिता,ऊर्जा और गति से लबालब नजर आते हैं.

अस्ताद के साथ ये इंटरव्यू 9 अप्रैल को, 2011 को रात 12 बजे ऋषिकेश में गंगा तट पर रिकॉर्ड किया गया जहां अस्ताद कबीर पर अपनी प्रस्तुति देने आए थे.इस नृत्य के दौरान अस्ताद मंच के ऐसे हाशिये पर चले गये थे जहां ठीक नीचे गंगा की उद्दाम लहरें थीं.दर्शक सांस रोके उन्हें देख रहे थे और अस्ताद का एक पैर हवा में था और दूसरा मंच की कगार पर. (Exclusive Interview Astad Deboo)

अपने नृत्य की तरह ही बातचीत में भी अस्ताद लयबद्ध, शांत लेकिन हलचल पैदा करनेवाले हैं.  

आपका नाम बिल्कुल अलग है.

मैं पारसी हूं. पारसी शास्त्र में में  30 दिन आते हैं तो एक दिन अस्ताद भी है. मेरे माता-पिता ने राशि देखकर मेरा नाम रखा था.

आपने नृत्य सीखना कैसे शुरू किया.

पैदाइश तो मेरी नवसारी गुजरात में हुई लेकिन मेरी नृत्य की तालीम शुरू हुई जमशेदपुर में .वहां मेरे पिता ने मुझे डांस क्लास में भेज दिया.उनका कोई उस समय ऐसा मकसद नहीं था कि एक दिन मैं नर्तक ही बनूंगा.8 साल मैंने कत्थक सीखा गुरू प्रहलाददास से.

फिर कॉलेज के लिये मुंबई गया.वहीं एक अमेरिकन डांस कंपनी मेरी लुईस ने कार्यक्रम पेश किया और पहली बार मैंने परदेस का आधुनिक नृत्य देखा.उस समय हमारे देश में आधुनिक नृत्य की कोई चर्चा या स्थान नहीं था.एक खोज और एक प्यास बढी कि मुझे भी ये अलग तरह की डांस मूवमेंट सीखना है.लेकिन उसके लिये परदेस जाना जरूरी था.

आपके परदेस जाने की भी एक दिलचस्प कहानी है.उस पल को आप हमेशा याद करते होंगे. 

हां,1969 में मैं अपना थैला लेकर एक कार्गो बोट में बैठकर विदेश गया था.दरअसल उस वक्त हिंदुस्तान छोडने के लिये रिजर्व बैंक की अनुमति लेनी पडती थी.लेकिन कार्गो बोट में गल्फ की ओर एक कामगार की तरह आप जा सकते थे. इस तरह मैं मजदूर के तौर पर इरान पंहुचा और वहां से  हिच हैच करते हुए फ्रांस गया.अंगूठा बताकर जो भी गाडी या ट्रक मिलता उसमें बैठ जाता.मकसद था किसी तरह से अमरीका पंहुचना.मैंने वीजा नहीं लिया था क्योकि बताया गया था कि लंदन में मिल जाएगा.पर ऐसा नहीं हुआ.और शुरूआत मैंने लंदन में ही की. (Exclusive Interview Astad Deboo)

1977 के अंत में भारत लौटा और इन 18 सालों के दौरान 35 देशों में घूम-घूमकर नत्य का अध्ययन किया .

पहचान मिलनी कब शुरू हुई

बहुत-बहुत सालों के बाद.1977 से 1980 के बीच मैंने कत्थकली सीखी और फिर मौका मिला बाहर जाने का .एक डांस कंपनी थी पीना बाउश उसके साथ.1982 से मैंने अपना काम शुरू किया और समझिये 8 साल तक हम धक्के खाते रहे.कहिये कि अभी भी हम धक्के ही खा रहे हैं.

ऐसा तो नहीं है आज तो आपकी बडी पहचान है और आधुनिक नृत्य में आपका नाम ही काफी है.

नाम से कुछ नहीं होता.मैं ही जानता हूं कि कितनी मुश्किलों से मैं अपना काम बढाने की कोशिश करता हूं. बहुत कठिन रास्ता है ये.

खैर शोहरत मिली है मानपत्र दिये गये हैं.लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि लोग प्रस्तुति के लिये बुलाते हैं खास तौर पर जो नृत्य मैं करता हूं.  

44 सालों से मैं कार्यक्रम कर रहा हूं लेकिन आज भी हमें बेचना पडता है कोई बुलाता नहीं है.हमारा काम जरूर बढ गया है काफी कलाकार जुड गये हैं.प्रोडक्शन भी बढा है लेकिन उसे कंटीन्यू करना इन हालात में मुश्किल है.

आपका नृत्य मॉडर्न है .क्या ये वेस्टर्न से अलग है

लोग समझते हैं कि मॉडर्न है तो वेस्टर्न है.लेकिन पूरी तरह वेस्टर्न नहीं है.हमारी तालीम तो कत्थक और कथकली में है ,तो वो टेकनीक तो फाउंडेशन है और उसका प्रभाव तो रहेगा.

आधुनिक नृत्य एक स्वतंत्र छतरी है जो मैंने शुरू की है.जो दूसरे कलाकार इस क्षेत्र में आ भी रहे है हम सभी लोगों ने किसी न किसी क्लासिकल नत्य का प्रशिक्षण लिया है. परंपरागत शैलियों में हमें ये मौका नहीं मिलता था कि हम ‘ड्रग एडिक्शन’ की बुराइयों को बताए ,’न्यूक्लियर बम’ के बारे में बताएं.मेरा एक शो है ‘बंगलोर स्ट्रीट’, जिसमें एक आम आदमी है जोगलेकर उसका नाम है कि कैसे-कैसे उसका दिन गुजरता है.मॉडर्न डांस में हम ऐसे थीम ले सकते हैं.जैसे हमने खजुराहो में किया लकडी का रावण. मुक्तिबोध की एक कविता है जिसमें रावण आज के नेता है.

भारतीय शास्त्रीय परंपराओं में ऐसी प्रस्तुतियों का मौका नहीं मिलता क्योंकि वो ज्यादातर राम-रावण,राधा-कष्ण की कहानियों पर आधारित है.आधुनिक नृत्य में ये गुजांइश है.

लेकिन जो कुछ भी मैं कर पाता हूं वो बरसों की साधना और अभ्यास है.

क्या आप आज भी अभ्यास करते हैं.

हफ्ते में 5 दिन तो करता ही हूं.कई बार यात्रा के कारण इसमें बाधा आती है लेकिन हफ्ते में 25 घंटा तो हम नृत्य करते ही हैं . कोई नई नृत्य रचना हुई तो फिर ज्यादा समय देना पडता है.जैसे-जैसे उम्र होती है शरीर भी अलग ढंग से रियेक्ट करता है .हां लेकिन आज भी मैं फौरन एक जगह से कूदकर दूसरी जगह पंहुच सकता हूं.और ये निरंतर अभ्यास से ही संभव हो पाता है. (Exclusive Interview Astad Deboo)

आज टेलीविजन पर डांस के कई रियलिटी शोज चल रहे हैं.

मैं कहूंगा ये बकवास है. जिस तरह से रियलिटी शोज सारे दर्शकों को कब्जा किये बैठा है मैं कहता हूं कि चैनल केबल वाले भी क्या एक गंभीर कार्यक्रम दर्शकों को नहीं दिखा सकते .आप क्या समझते हैं कि सारा हिंदुस्तान ये नाच-गाना ही देखना चाहता है.

ठीक है उसका भी एक स्थान है लेकिन  जब छोटे बच्चे करते हैं ये लचक-मचक तो बहुत दुख होता है कि क्या हम इस दिशा में जा रहे हैं.इस सो कॉल्ड डेवलपमेंट में हिंदुस्तानी शास्त्रीय नृत्य और संगीत का खजाना तो खो ही जाएगा.

हम जैसे लोगों को मौका नहीं दिया जाता.

आपने कोशिश तो की होगी.

सही और सच्ची कला के लिये प्लेटफॉर्म उतना नहीं है.हमने कोशिश की है लेकिन हमें मौका नहीं दिया जाता .आयोजक उतने बुलाते नहीं हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि दर्शकों को पसंद नहीं आएगा.अगर स्वाद चखने का अवसर ही नहीं दिया जाए तो निर्णय कैसे किया जा सकता है ,आगे कैसे बढेंगे.

टेलीविजन में भी हमें मौका नहीं दिया जाता जबकि कितना पावरफुल माध्यम है.हमने कोशिश की है.

ऐसा लगता है आपकी पूछ विदेश में ज्यादा होती हैं और भारत में कम

ये एक विडंबना ही है.मैं क्या करूं विदेश में लोग खुले दिमाग से आते हैं और अपने यहां एक सेट एजेंडा लेकर.

आपने जैसा कहा कि आधुनिक नृत्य की चर्चा में हमेशा मेरा नाम जुडा रहता है लेकिन कितने लोगों ने देखा है.सवाल है कि नाम सुना है पर कितने लोगों ने देखा है.

कई बार हताश हो जाता हूं क्योंकि लखनऊ,हैदराबाद और त्रिवेंद्रम जैसे शहरों की एक लंबी सूची है जहां के दर्शकों तक मैं अपनी कला पंहुचा ही नहीं पाया हूं जबकि मुझे लगता है कि यहां के लोग भी मेरे काम को बेहतर समझेंगे. (Exclusive Interview Astad Deboo)

सच्चाई है कि मुझे यहां कम प्लेटफॉर्म मिला है. अब तो वैसे भी बॉलीवुड डांस ही ब्रांड हो गया है.बाहर भी जाते हैं तो लोग बॉलीवुड ही पूछते हैं.

अगर कोई आपकी तरह नृत्य को पेशा बनाना चाहे तो

बहुत मुश्किल है मैं उन्हें डिस्करेज करता हूं बिल्कुल सलाह नहीं देता.दूसरी बात है कि प्रशंसा है,सम्मान है अगर मौका दिया जाए.

कबीर पर आपके एकल नृत्य को बहुत सराहा गया.अब नया क्या कर रहे हैं.

हां टैगोर की 150वीं जयती पर एक विशेष कार्यक्रम की रचना तैयार कर रहा हूं. नवंबर में मुंबई में करूंगा.इसमें रवींद्र संगीत नहीं रहेगा,ठाकुर जी की कविताओं का अनुवाद और श्यामा को लेकर तैयार कर रहा हूं.इसका नाम होगा इंटरप्रेटिंग टैगोर.   

शालिनी जोशी

मीडिया शिक्षिका और पूर्व पत्रकार बीबीसी, आज तक और ज़ी न्यूज़

यह भी देखें: उत्तराखण्ड मूल की फिल्म निर्देशिका पुष्पा रावत का इंटरव्यू

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