दारमा घाटी पिथौरागढ़ जिले के पूर्वी छोर में बहने वाली धौली गंगा की घाटी को कहा जाता है. दुग्तू- दांतू में पंचाचूली से आने वाली धारा धौली में मिलती है. इस जलधारा का श्रोत पंचाचूली ग्लेशियर में है. (Darma Valley Morning Vinod Upreti)
धौली नदी तीदांग में दो मुख्य धाराओं के मिलने से बनती है: एक बेदांग- दावे की ओर से आने वाली धौली और दूसरी सीपू- चरी ताल की ओर से आने वाली लसर-यांगती. (Darma Valley Morning Vinod Upreti)
दारमा का मुख्य आकर्षण दुग्तू-दांतू से दिखने वाला पंचाचूली का नजारा है. इस यात्रा के कुछ पल जो कैमरा की पकड़ में आये. कुछ रंग एक सुबह के.
कुमाऊं गढ़वाल की दुर्लभ उच्च हिमालयी लाल जड़ी
उत्तराखंड प्रदेश के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ की धारचूला तहसील लम्बे समय तक भारत-तिब्बत व्यापार का महत्वपूर्ण केंद्र रही है. इस तहसील में रं जनजाति के लोगों की बसासत है जो यहाँ की तीन घाटियों – दारमा, व्यांस और चौंदास में शाताब्दियों से निवास करते आये हैं. धारचूला से 18 किलोमीटर दूर तवाघाट नामक स्थान है जहां कालीगंगा और धौलीगंगा नदियों का संगम होता है. यदि हम कालीगंगा नदी के साथ साथ ऊपर चढ़ते जाएं तो व्यांस घाटी पहुँचते हैं और धौलीगंगा के साथ चलें तो दारमा घाटी. तीसरी अर्थात चौंदास घाटी इन दोनों के मध्य में स्थित है. परम्परानुसार रं समाज के लोग इस मार्ग से चलने वाले भारत-तिब्बत व्यापार में एकाधिकार रखते थे. व्यापार के दौरान यहाँ के व्यापारी तकलाकोट और ग्यानिमा में मंडियों में जाकर अपने तिब्बती मित्र व्यापारियों के साथ वस्तुओं का क्रय-विक्रय किया करते थे. तिब्बत से याक के बाल, सुहागा, बकरियां, ऊन और नमक जैसा सामान लाया जाता था जबकि भारत से चीनी, गुड़ और राशन जैसी चीजें विक्रय के लिए ले जाई जाती थीं. पुरुषों के व्यापार में तिब्बत गए होने के दौरान गाँवों में रह रही महिलाएं एक फसल उगाती थीं जिसमें मुख्य रूप से कुटू और फांफर पैदा होता था. फल और सब्जियां भी पैदा किये जाते थे.
पिथौरागढ़ में रहने वाले विनोद उप्रेती शिक्षा के पेशे से जुड़े हैं. फोटोग्राफी शौक रखने वाले विनोद ने उच्च हिमालयी क्षेत्रों की अनेक यात्राएं की हैं और उनका गद्य बहुत सुन्दर है. विनोद को जानने वाले उनके आला दर्जे के सेन्स ऑफ़ ह्यूमर से वाकिफ हैं. विनोद काफल ट्री के लिए नियमित लेखन करेंगे.
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