कोको शैनेल फ़्रांस की एक आधुनिकतावादी ड्रेस डिजाइनर थीं जिनके सीदे सपाट पैटर्न्स ने पश्चिमी दुनिया की महिलाओं के वस्त्रों के क्षेत्र में क्रान्ति ला दी थी. मशहूर पत्रिका ‘टाइम’ द्वारा बीसवीं शताब्दी को प्रभावित करने वाले व्यक्तियों की लिस्ट में वे इकलौती डिजाइनर थीं. (Coco Chanel Designer Birthday)
1920 के दशक में कोको ने महिलाओं के फैशन और डिजायन में जो कार्य किया उसका प्रभाव बहुत लम्बे समय तक देखा गया. पहले विश्वयुद्ध तक महिलाओं के वस्त्र अनेक प्रतिबंधों के अंतर्गत बनाए जाते थे. उन्हें लम्बी स्कर्ट्स पहननी पड़ती थीं जो मानवीय श्रम पर आधारित अनेक कार्यों के लिए खासी जटिल और असुविधापूर्ण होती थीं. कोको ने महिलाओं की पोशाकों को सादगी प्रदान की और उन्हें प्रैक्टिकल बनाया. उन्होंने महिलाओं के लिए ट्राउजर्स और सूत डिजायन किये. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था. (Coco Chanel Designer Birthday)
कोको ने महिलाओं के लिए शैनेल नंबर 5 परफ्यूम भी बनाई जो आज तक दुनिया भर की स्त्रियों के बीच एक अत्यंत लोकप्रिय और विख्यात ट्रेडमार्क बना हुआ है.
एक अनब्याही माँ की संतान कोको का जन्म 19 अगस्त 1883 को हुआ था. उनका बचपन बेहद गरीबी में बीता. जब वे बारह साल की थीं उनकी माँ का देहांत हो गया और उन्हें एक धार्मिक कॉन्वेंट में भेज दिया गया जहाँ उन्होंने कड़ी मेहनत की और कपड़े सीने के मूलभूत गुर सीखे.
18 की आयु में उन्होंने कॉन्वेंट को अलविदा कहा और दरजी का काम शुरू करने के साथ साथ पार्ट टाइम गायन भी किया. 25 की आयु में उनकी मुलाक़ात एक अमीर एरिस्टोक्रेट से हुई जिसकी वजह से उन्हें उच्च वर्ग की अनेक महिलाओं के संपर्क में आने का मौक़ा मिला.
1913 में उन्होंने एक छोटे से शहर में एक बुटीक खोला. उसके बाद कुच्ची और ऐसे ही बुटीक खोलने के बाद वे अंततः फैशन की राजधानी पेरिस में एक बड़ा बुटीक स्थापित करने में सफल रहीं.
1920 का दशक महिलाओं की आज़ादी के लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण था जब अनेक पश्चिमी देशों में महिलाओं को वोट देने का अधिकार मिला. इसी दौरान महिलाओं को उन क्षेत्रों में काम करने के मौके मिले जिन्हें उसके पहले केवल पुरुषों के लिए आरक्षित माना जाता था. कोको के बनाए वस्त्रों के डिजायन इन सामाजिक-राजनैतिक बदलावों को भी परिभाषित करते थे. उन्होंने बिना कॉलर वाली कार्डिगन जैकेट, बायस-कट ड्रेस, शूस्ट्रिंग शोल्डर स्ट्रैप और ईवनिंग स्कार्फ जैसी चीजों को महिलाओं की पोशाकों का हिस्सा बनाया. जाहिर है वे बहुत सफल हुईं
उन्होंने 1938 में फैशन से संन्यास लेने के बाद 16 साल बाद फिर से इसी क्षेत्र में दोबारा से प्रवेश किया और जनवरी 1971 में हुई अपनी मृत्यु तक वे एक कल्ट के रूप में स्थापित हो चुकी थीं.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
हिमालय पहाड़ पर अल्मोड़ा नाम की एक बस्ती है. उसमें एक बड़े मियाँ रहते थे.…
जिसके मन की पीड़ा को लेकर मैंने कहानी लिखी थी ‘नीचे के कपड़े’ उसका नाम…
एक था तोता. वह बड़ा मूर्ख था. गाता तो था, पर शास्त्र नहीं पढ़ता था.…
https://www.youtube.com/embed/sGts_iy4Pqk Mindfit GROWTH ये कहानी है कठोपनिषद की ! इसके अनुसार ऋषि वाज्श्र्वा, जो कि…
-कमल कुमार जोशी समुद्र-सतह से 12,073 फुट की ऊंचाई पर स्थित तुंगनाथ को संसार में…
1980 के दशक में पिथौरागढ़ महाविद्यालय के जूलॉजी विभाग में प्रवक्ता रहे पूरन चंद्र जोशी.…