1930 के दशक में पिथौरागढ़ जैसे दूरस्थ कस्बे में पहला रेडियो लाए धनी लाल और फिर दिखाया सोर वासियों को सिनेमा. मार्च 1932 की 27 तारीख को धनी लाल न्यूयार्क रेडियो कंपनी से इको कोलस्टर ब्रांड के दो रेडियो लाए.
(Cinema in Pithoragarh)
रेडियो के बाद धनी लाल के दिमाग में फिर एक नई लहर आई. इसके परिणाम स्वरूप पिथौरागढ़ वासियों ने चलते-फिरते चित्र की लड़ी यानी सिनेमा देखा. इसके लिए धनी लाल दिल्ली गए. वहां बड़े जुगाड़ लगाए. आखिरकार अपने सीमित साधनों और असीमित हौसले की बदौलत वह पिथौरागढ़ में सिनेमा ले ही आए. ये टूरिंग सिनेमा था.
8 फरवरी 1935 को पहली मूक फ़िल्म ‘सोने की चिड़िया’ नगर के टाउन एरिया में अनेकानेक लोगों ने देखी. आम भी थे और खास भी. टाउन एरिया के अध्यक्ष लाला चिरंजी लाल साह ने प्रोजेक्टर का बटन दबा कर उदघाटन किया.
(Cinema in Pithoragarh)
इसी प्रोजेक्टर से उन्होंने सोर निवासियों को ‘बंगाल का जादू’, ‘देहाती लड़की’, ’नारी नागिन’ जैसी मूक फ़िल्में दिखाईं. 14 मार्च 1940 को ‘आलम आरा’ और 4 अक्टूबर 1940 को ‘हरीश चंद्र’ फ़िल्म दिखाई गई. इतने से ही धनी लाल संतुष्ट न थे. कुमाऊं कमिश्नर वुडविल तभी पिथौरागढ़ के दौरे पर आए. वह धनी लाल के जीवट और लगन देख आश्चर्य में पड़ गये बोले – ‘ओ मैन, आखिर तुम कितना कुछ कर इस रिमोट में फ़िल्म दिखाता है.’
धनी लाल ने वुडविल को उस समय की प्रसिद्ध फ़िल्म सोने की चिड़िया दिखाई. हाकिम खुश हो गया और धनी लाल को धर्मशाला के निकट लीज पर जमीन दी ताकि वो थिएटर बनवा सकें.
इसी धर्मशाला लाइन के पास उन्होंने ‘कृष्णा टाकीज’ खोला जिसमें अनेक मूक और सवाक फ़िल्में चलायीं गईं. यहाँ की धर्मशाला को बनवाने में पीलीभीत के सेठ और चीनी मिल मालिक हरप्रसाद-ललता प्रसाद ने तीन हज़ार रुपये नकद दिए जिसे मालदार परिवार ने बनवाया.
(Cinema in Pithoragarh)
जीवन भर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के कुल महाविद्यालयों में अर्थशास्त्र की प्राध्यापकी करते रहे प्रोफेसर मृगेश पाण्डे फिलहाल सेवानिवृत्ति के उपरान्त हल्द्वानी में रहते हैं. अर्थशास्त्र के अतिरिक्त फोटोग्राफी, साहसिक पर्यटन, भाषा-साहित्य, रंगमंच, सिनेमा, इतिहास और लोक पर विषदअधिकार रखने वाले मृगेश पाण्डे काफल ट्री के लिए नियमित लेखन करेंगे.
हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online
इसे भी पढ़ें: बेजान लकड़ियों में प्राण फूंकते जीवन चंद्र जोशी ‘चाचू’
Support Kafal Tree
.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…
उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…
पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…
आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…
“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…