एक व्यक्ति ने एक सन्यासी से तीन सवाल पूछे. (kumaoni folklore Ivan Minayev)
पहला सवाल था — आप ऐसा क्यों कहते हैं कि परमात्मा सर्वत्र व्याप्त है. मुझे तो वह दिखाई नहीं देता है. मुझे दिखाओ कि परमात्मा कहाँ है?
दूसरा सवाल था — उस परमेश्वर ने लोगों को पाप के लिए कौन-सा दंड निश्चित कर रखा है? संसार में जो कुछ घटित हो रहा है, वह सब परमेश्वर का बनाया नहीं है क्या? यदि लोगों में योग्यता होती तो क्या वे सब कुछ स्वयं नहीं कर लेते?
तीनों प्रश्न पूरे होते ही सन्यासी ने एक भारी पत्थर उठाकर उस व्यक्ति के सिर पर दे मारा. वह व्यक्ति रो पड़ा और उसने काजी के पास जाकर फरियाद की — मैंने एक सन्यासी से तीन सवाल पूछे थे, और उसने उत्तर देने के बजाय मेरे सिर पर पत्थर मार दिया. तब से मेरे सिर में दर्द हो रहा है.
काजी ने सन्यासी से पूछा — बताइए कि आपने इस व्यक्ति के सिर पर पत्थर क्यों मारा? इसके सवालों के जवाब क्यों नहीं दिए?
‘पत्थर ही इसके सवालों का जवाब है.’ सन्यासी ने उत्तर दिया और आगे कहा, यह व्यक्ति कह रहा है कि उसका सिर दर्द कर रहा है. मेरे विचार में तो इसके सिर में दर्द है ही नहीं. अगर है तो मुझे दिखाए. तब मैं भी इसे परमेश्वर दिखा दूंगा. यह अपने लिए न्याय मांगने क्यों आया है? क्या स्वयं इसने नहीं कहा था कि यहाँ जो कुछ भी घटित हो रहा है, सब कुछ परमेश्वर के द्वारा हो रहा है. यदि ईश्वर की इच्छा नहीं होती तो क्या मैं कुछ कर सकता था? क्या इसका शरीर मिट्टी का नहीं बना है? मिट्टी को, आखिर, दर्द कैसे हो सकता है?
सन्यासी की बातें सुनकर वह व्यक्ति सकपका गया. काजी ने सन्यासी की बातों का विश्वास कर लिया. (Kumaoni Folklore by Ivan Pavlovich Minayev)
(ई. पा. मिनायेव द्वारा रूसी में लिखे कुमाऊनी लोक कथाओं के संकलन का जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में रूसी भाषा के प्राध्यापक और विभागाध्यक्ष रहे प्रोफ़ेसर हेमचन्द्र पांडे द्वारा किया गया हिंदी अनुवाद)
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