कुमाऊँ की सोमेश्वर तहसील के रस्यारा गाँव में 1931 में जन्मे चन्द्रलाल सेन कुल ग्यारह भाई-बहनों में छठे थे. उनके निस्संतान चाचा बद्रीलाल सेन ने, जो अल्मोड़ा के जिला अस्पताल में कम्पाउंडर की नौकरी करते थे, बालक चन्द्रलाल की शिक्षा का भार उठाया. अल्मोड़े के की रैमजे इंटर कॉलेज से हईस्स्कूल करने और उसके बाद कुछ समय नौकरी की तलाश में भटकने के बाद उन्हें अल्मोड़ा से बीसेक किलोमीटर दूर बाड़ेछीना स्थित योजना विभाग में बतौर क्लर्क नियुक्ति मिली. खेलों के प्रति गहरी अभिरुचि रखने वाले चन्द्रलाल सेन अपनी फिटनेस के चलते दफ्तर आना-जाना पैदल ही किया करते थे. खेलों के अलावा चित्रकारी, संगीत, फ़ोटोग्राफ़ी, ट्रेकिंग वगैरह में भी उनका अच्छा ख़ासा दखल था. Chandralal Sen Pioneer of Badminton in Almora
1950 में नौकरी लगने के बाद उन्होंने बैडमिन्टन पर ध्यान केन्द्रित किया और जल्द ही राष्ट्रीय और प्रदेश स्तर की सिविल सर्विसेज़ प्रतियोगिताओं में उनका चयन होने लगा. ऐसे कई टूर्नामेंटों में उन्होंने दर्ज़नों इनामात हासिल किए. खेल के प्रति उनकी दीवानगी का आलम यह था कि पोल और नैट अपने कन्धों पर लाद कर जहाँ जगह मिले वहां कोर्ट बना दिया करते थे और छोटी आयु के बच्चों को खेलने को प्रोत्साहित किया करते. यह उस समय की बात है जब अल्मोड़ा में कोई ढंग का न कोई कोर्ट था न स्टेडियम. और इसके अलावा “खेलोगे कूदोगे तो होगे खराब” में विश्वास रखने वाले समाज का रवैया खेल-कूद को लेकर बहुत बेपरवाहीभरा था. उनके घर की आर्थिक परिस्थितियाँ भी इसकी इजाज़त नहीं देती थीं कि किसी महंगे खेल को जूनून बनाया जाए. लेकिन चन्द्रलाल सेन ने न केवल उन्नीस दफे उत्तर प्रदेश का प्रतिनिधित्व किया, उन्होंने अपने इकलौते बेटे धीरेन्द्र को बचपन से ही शारीरिक फिटनेस और बैडमिन्टन की तरफ प्रेरित किया जिसका परिणाम यह हुआ कि वे आज राष्ट्रीय स्तर के प्रशिक्षक हैं. धीरेन्द्र सेन यानी डी.के. सेन के बारे में मैं अलग से लिखूंगा. Chandralal Sen Pioneer of Badminton in Almora
धीरेन्द्र बताते हैं कि सरकारी काम से उनके पिताजी को जब-जब लखनऊ जाना होता था, वे कोई न कोई चिठ्ठी या एप्लीकेशन किसी भी अफसर, मंत्री या विभाग के पास ज़रूर छोड़ कर आते थे कि अल्मोड़ा में खिलाड़ियों के लिए अच्छी सुविधाएं मुहैय्या कराई जाएँ. आज जब अल्मोड़ा में बैडमिन्टन के कोर्ट हैं, स्टेडियम है, स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ़ इण्डिया का प्रस्तार केंद्र है और यह सोया सा दिखने वाला शहर दुनिया के खेल-मानचित्र में अपनी जगह बना रहा है तो चन्द्रलाल सेन के योगदान को हर पल याद किये जाने की ज़रुरत है.
जब वे घर बना सकने की स्थिति में आये तो अल्मोड़ा के तिलकपुर मोहल्ले में उन्होंने अपने आँगन में सबसे पहले बैडमिन्टन का कोर्ट बनाया. चन्द्रलाल सेन जीवन भर खेल को समर्पित रहे और उनकी सक्रियता का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि अपनी अंतिम यात्रा पर निकलने के तीन साल पहले 2010 में उन्यासी साल की आयु में उन्होंने एक राज्यस्तरीय प्रतियोगिता में रनर अप का खिताब हासिल किया.
अल्मोड़ा में उन्हें याद करने वालों की कमी नहीं है – उनकी मेहनत, लगन, तत्परता, अनुशासनप्रियता और मितभाषिता के असंख्य किस्से आज भी सुनने को मिल जाते हैं. उन्हें हर काम में परफैक्शन की तलाश रहती थी और ऐसी ही प्रत्याशा वे अपने संपर्क में आने वालों से रखते थे. अपने घर के कोर्ट में उन्होंने अपने पोतों को भी लगातार प्रैक्टिस करवाई और खेल के उन गुरों से वाकिफ कराया जिन्हें केवल अनुभव से ही बटोरा जा सकता है. Chandralal Sen Pioneer of Badminton in Almora
उनके पोते चिराग और लक्ष्य वर्तमान में विश्व जूनियर बैडमिन्टन में वर्ल्ड नम्बर वन की रैंकिंग के अलावा अनेक बड़े कारनामे कर रहे हैं और अल्मोड़ा जैसे छोटे से नगर को सुर्ख़ियों बनाए रखते हैं. चन्द्रलाल सेन के इन दो पोतों की उपलब्धियों पर समूचे देश को नाज़ है.
एक छोटे से कस्बे के एक छोटे से परिवार की तीन पीढ़ियों की अथक मेहनत और समर्पण से सृजित हुए इन बच्चों की फ़तह और कामयाबी देखने को चन्द्रलाल सेन आज नहीं हैं पर वे होते तो मुझे यकीन है उनसे कहते – “अभी और आगे जाना है. परफैक्शन होनी चाहिए परफैक्शन!”
अल्मोड़ा के लक्ष्य सेन ने जीता बैडमिन्टन वर्ल्ड फेडरेशन का डच ओपन
–अशोक पाण्डे
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…
शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…
कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…
शायद यह पहला अवसर होगा जब दीपावली दो दिन मनाई जाएगी. मंगलवार 29 अक्टूबर को…
तकलीफ़ तो बहुत हुए थी... तेरे आख़िरी अलविदा के बाद। तकलीफ़ तो बहुत हुए थी,…
चाणक्य! डीएसबी राजकीय स्नात्तकोत्तर महाविद्यालय नैनीताल. तल्ली ताल से फांसी गधेरे की चढ़ाई चढ़, चार…