चिपको आंदोलन से सम्बद्ध चंडी प्रसाद भट्ट को राष्ट्रीय एकता एवं सद्भाव के लिए प्रतिष्ठित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय एकता पुरस्कार वर्ष 2017-2018 के लिए चुना गया है.
चंडी प्रसाद भट्ट को 1982 में रेमन मैग्सेसे पुरुस्कार,1986 में पद्मश्री, 2005 में पद्मविभूषण, 2014 में गांधी शांति पुरुस्कार, 2016 में मानवीय उत्कृष्टता के लिए श्री सत्य सांई सम्मान से सम्मानित किया गया.
1934 में चमोली जिले के गोपेश्वर में जन्मे चंडी प्रसाद भट्ट ने बहुत सी किताबें लिखी जिनमें कुछ प्रमुख रही-“पर्वत-पर्वत,बस्ती-बस्ती”, “प्रतिकार के अंकुर”, “फ्यूचर आफ लार्ज प्रोजेक्ट इन हिमालया”, “ईको सिस्टम आफ सेंट्रल हिमालया”, “चिपको अनुभव” आदि.
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय एकता पुरस्कार 1985 से दिया जाता है. पुरस्कार के तहत प्रशस्ति पत्र और दस लाख रुपये नकद प्रदान किए जाते हैं.
परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक न होने की वजह से स्नातक की पढ़ाई छोड़ दी और परिवार की आवश्यकता के अनुरूप जी.एम.ओ.यू में क्लर्क की नौकरी करने लगे. 1956 में भट्ट गांधीवादी विचारक जयप्रकाश नारायण के प्रभाव में आए और कुछ युवा लोगों के साथ मिलकर गांवों के आर्थिक विकास व शराब के खिलाफ उत्तराखण्ड (तब के उत्तरप्रदेश) में सर्वोदय आंदोलन प्रारम्भ किया.
1960 में चंडी प्रसाद भट्ट ने अपनी क्लर्क की नौकरी छोड़कर पूरा समय सर्वोदय आंदोलन के कार्यों में देने का निर्णय लिया. 1964 में गोपेश्वर के ग्रामीण लोगों को एकजुट कर “दसौली ग्राम स्वराज मंडल” की नींव चंडी प्रसाद भट्ट ने रखी, जिसका कार्य गांव के लोगों को जंगल पर आधारित फैक्ट्रियों में नौकरी दिलवाना व शोषण के विरुद्ध आवाज उठाना था.
1973 में चंडी प्रसाद भट्ट ने गांवों के लोगों को इकट्ठा कर चिपको आंदोलन के लिए प्रेरित किया, जिसकी मुख्य मांग 1917 से चली आ रही जंगल नीतियों का संशोधन करना था.
मार्च 2019 में कमलेश जोशी द्वारा चंडी प्रसाद भट्ट का एक इंटरव्यू लिया गया था. इस इंटरव्यू को काफल ट्री में प्रकाशित भी किया गया था. चंडी प्रसाद भट्ट का पूरा इंटरव्यू आप यहां पढ़ सकते हैं :
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…
उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…
पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…
आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…
“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…