सिनेमा एक तरह का त्राटक है
अँधेरे में बैठकर एक जगमगाते स्क्रीन को देखना एक तरह का त्राटक ही है. आप आसपास की सारी दुनिया भूल जाते हैं और समूचा अस्तित्व उन चलती-फिरती तस्वीरों के साथ हिलने-डोलने लगता है, जो सामने है. त्... Read more
सूरज की मिस्ड काल – 4
धूप अलसाई सी लेटी है सुबह दरवाजा खोलते ही धूप दिखी. एकदम दरवज्जे तक आकर ठहरी हुयी सी. जैसे सूदूर से कोई फ़रियादी किसी हाकिम के यहां पहुंच जाये. लेकिन उसके दरवज्जे में घुसने की हिम्मत न होने... Read more
देवीधार का मेला
यह लोकोत्सव कुमाऊं के चम्पावत जनपद में लोहाघाट से लगभग 3 किमी पूर्व एक पहाड़ की तलहटी में स्थित शिवालय में मनाया जाता है. इसके बारे में मान्यता है कि इस पहाड़ी के पश्चिम में शासक बाणासुर, जहाँ... Read more
आखिरकार 1895 में पेरिस के लुमिये भाइयों द्वारा आविष्कृत सिनेमा का माध्यम मूलत दृश्यों और ध्वनियों के मेल का ऐसा धोखा है जो अँधेरे में दिखाए जाने के बाद हर किसी को अपने सम्मोहन में कैद कर लेत... Read more
वीरेन डंगवाल (5.8.1947,कीर्ति नगर,टिहरी गढ़वाल – 28.9.2015, बरेली,उ.प्र.) हिंदी कवियों की उस पीढ़ी के अद्वितीय, शीर्षस्थ हस्ताक्षर माने जाएँगे जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जन्मी और सुमित्रानं... Read more
फ़ितूर सरीखा एक पक्का यक़ीन
आज वीरेन डंगवाल की चौथी पुण्यतिथि है. हिन्दी कविता और पत्रकारिता में अपनी ख़ास जगह रखने वाले इस महान व्यक्ति की कविता के बहाने इस लेख में हमारे साथी शिवप्रसाद जोशी बहुत सारा और कुछ कह रहे हैं... Read more
गढ़वाल रायफल्स और प्रथम विश्व युद्ध
प्रथम विश्व युद्ध में गढ़वालियों ने अपना पराक्रम दिखाकर देश को ही नहीं बल्कि दुनिया को चकित कर दिया था. मेरठ डिवीजन की उनकी दोनों बटालियनों को गढ़वाल ब्रिगेड के नाम से फ्रांस भेजा गया. वहां प... Read more
तकसीम: मंटो की कहानी
सआदत हसन मंटो (1912-1955) उर्दू के सबसे विख्यात अफसानानिगारों में शामिल हैं. उन्होंने कई फिल्मों की पटकथाएं भी लिखीं. उनकी कहानियों में आम आदमी के जीवन संघर्ष और उसकी जटिल मानसिक लड़ाइ... Read more
चार्लेमागेन के दौर से यूरोपीय संघ तक एकीकृत यूरोप का विचार लगातार जारी रहा. लेकिन इसकी वजह अलग-अलग समय पर अलग-अलग थी. कभी सैन्य विस्तार, कभी ईसाई धर्म तो कभी व्यापार. देशों की राष्ट्रीय सीमा... Read more
होली, पागल और पूजा तीनों 1940 में अब्दुल रशीद कारदार की बनाई तीन फ़िल्में हैं. अब्दुल रशीद कारदार की सिनेमाई भूमिका मूक फिल्मों से अमिताभ के उदय के दौर तक फैली हुई है. सहगल शाहजहाँ राजकपूर सु... Read more