कुमाऊनी लोकोक्तियाँ – 22
पिथौरागढ़ में रहने वाले बसंत कुमार भट्ट सत्तर और अस्सी के दशक में राष्ट्रीय समाचारपत्रों में ऋतुराज के उपनाम से लगातार रचनाएं करते थे. वे नैनीताल के प्रतिष्ठित विद्यालय बिड़ला विद्या मंदिर में... Read more
पीहू की कहानियाँ – 5
मैडम अभी सो रही हैं मैडम को पॉटी आ गई है मैडम सुसु करने गई है मैडम का अभी मूड नहीं है मैडम को अभी डॉल से खेलना है मैडम ग़ुस्सा है मैडम रो रही है 33 दिन के शूट के दौरान योगेश जानी को इंतज़ार... Read more
चटोरे जवाईं की लोककथा
मुझे अक्सर अपने दादा, दादी, चाचियाँ, माँ बहुत याद आते हैं. आप कहेंगे इसमें नई बात क्या है. अपनी जिंदगी में हम जिन लोगों को खो देते है वो तो सभी को बहुत याद आते हैं. मेरी बात नई है या नहीं ये... Read more
मुठ्ठी भर कंचे
तब गाँव क्या था, श्याम-श्वेत सिनेमा के दौर का सा गाँव लगता था. चौतरफा खेत-ही-खेत थे, गन्ने-सरसों की फसलों से लहलहाते हुए. गाँव में कुएँ थे, तो रहट भी. यातायात के साधनों में, बैलगाड़ी से लेकर... Read more
हमारे ब्रह्माण्ड की पहली भारतीय कहानी ( एक विदेशी का लिखा हिन्दू लोक-मिथकों का इतिहास : ‘क’ ) सृष्टि के जन्म और विकास को लेकर भारतीय लोक मानस में मौजूद कथाएँ लेखक – रॉबर्तो... Read more
रात में नींद अच्छी आयी. सुबह 7 बजे हमने अपना कंधार का टिकट लिया. बस बड़ी आरामदेह थी. छोटे-छोटे गांवों में जब हमारी बस रूकती तो प्यारे-प्यारे अफगानी बच्चे उबले अण्डे बेचने बस कके पास आ जाते. ग... Read more
कुमाऊनी लोकोक्तियाँ – 21
पिथौरागढ़ में रहने वाले बसंत कुमार भट्ट सत्तर और अस्सी के दशक में राष्ट्रीय समाचारपत्रों में ऋतुराज के उपनाम से लगातार रचनाएं करते थे. वे नैनीताल के प्रतिष्ठित विद्यालय बिड़ला विद्या मंदिर में... Read more
बिजट मंदिर : एक फोटो निबंध
लगभग शाम का 6 बज गया था जब मैं हिमांचल प्रदेश में चूड़धार का ट्रेक करके बिजट महाराज के मंदिर पहुंची. ये मंदिर हिमांचल प्रदेश की हेम्बल घाटी के चौपाल कस्बे से 26 किलोमीटर दूर है. मंदिर की दो... Read more
अंतर देस इ उर्फ़… शेष कुशल है! भाग – 6
गुडी गुडी डेज़ अमित श्रीवास्तव बॉबी चचा के जज़्बात @ मौक़ा-ए-वारदात गुडी गुडी मुहल्ले में एक पुलिस थाना खुला और जैसा कि होना चाहिए उसके खुलते ही वहां अपराध बढ़ने लगे. कुछ लोग इस घटना को ‘आवश्यकत... Read more
हल्द्वानी के इतिहास के विस्मृत पन्ने : 30
बाबा नीम करोली महाराज को लेकर भी श्रद्धालुओं में अगाध श्रद्धा रही है अपने बचपन को याद करते हुए डॉ. मुनगली बताते हैं सन 1952 में जब वह दो-तीन साल के थे घर से बाहर घूमते हुए खो गए. ढूंढ खोज के... Read more