हल्द्वानी के इतिहास के विस्मृत पन्ने : 43
तराई भाबर में भूमि व्यवस्था भी एक विवादास्पद विषय बनी रही है. यहाँ की जमीनों की लूट का अपना एक अलग ही इतिहास रहा है. यहाँ के बीहड़ इलाके को बसाने के लिए ब्रिटिश शासन काल में यहाँ एक खाम अधिका... Read more
उत्तराखण्ड में निकाय चुनाव में हार के बाद कांग्रेस नेताओं के बीच हो रही तकरार में नेता प्रतिपक्ष डॉ. इंदिरा हृदयेश के ताजे बयान ने पार्टी के अन्दर बवाव मचा दिया है. उन्होंने हल्द्वानी नगर नि... Read more
अंतर देस इ उर्फ़… शेष कुशल है! भाग – 9
गुडी गुडी डेज़ अमित श्रीवास्तव हीरामन उवाच-2 (बजाए जा तू प्यारे हनुमान चुटकी) अजीब सी बातें करने लगा था हीरामन. असम्बद्ध बोलता. बोलता तो बोलता ही चला जाता चुप लगाता तो लगता व्रत धारण कर रक्ख... Read more
कुमाऊँ का छोलिया नृत्य
कुमाऊं का सबसे जाना-माना लोक नृत्य है छोलिया. इस विधा में छोलिया नर्तक टोली बनाकर नृत्य करते हैं. माना जाता है कि नृत्य की यह परम्परा एक से दो हज़ार वर्ष पुरानी है. नर्तकों की वेशभूषा और उनके... Read more
कुमाऊनी लोकोक्तियाँ – 41
पिथौरागढ़ में रहने वाले बसंत कुमार भट्ट सत्तर और अस्सी के दशक में राष्ट्रीय समाचारपत्रों में ऋतुराज के उपनाम से लगातार रचनाएं करते थे. वे नैनीताल के प्रतिष्ठित विद्यालय बिड़ला विद्या मं... Read more
देवीधुरा का हिमालय – फोटो निबंध
आश्चर्य से भरा देवीधुरा का हिमालय, देवीधुरा होने को तो एक बेहद छोटा सा कस्बा है जो यात्रा के दौरान शुरू होने से पहले खत्म हो जाता है किंतु ये किसी को भी विस्मित कर सकता है, यहां से दिखने वाल... Read more
भारतीय क्रिकेट के इतिहास के शुरुआती दिन खासे विवादास्पद रहे थे. कई बार ऐसा हुआ कि प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को दरकिनार कर रईसज़ादे नवाबों और महाराजाओं को भारत का प्रतिनिधित्व करने के मौके मिले. भ... Read more
रंगरूटी में निखरती हनुमंत की जवानी
हनुमंत सिंह के बड़े भाई फौज में थे. उन दिनों वे किसी अफसर के ‘खास आदमी’ थे. कहने का तात्पर्य है कि, वे ‘बटमैन’ का ओहदा संभाले हुए थे. संयोग से वही अफसर ‘रिक्रूट... Read more
(बीते हुए कल और आज यानी 29 और 30 नवंबर को देश भर से किसान अपनी मांगों और समस्याओं को लेकर एक बार फिर से राजधानी दिल्ली में हैं. किसानों के नासिक-मुंबई मार्च में देश का हर तबका किसानों का साथ... Read more
कहो देबी, कथा कहो – 16
मेरा पहाड़ दिन भर मक्का के खेतों में या प्रयोगशाला में और कभी-कभार साहित्य की दुनिया में, यही दिनचर्या बन गई थी. पहाड़ शिद्दत से याद आता था. घर की नराई लगती थी. मन गुनगुनाता ही रहता था- पंछी ह... Read more