उतरैणी कौतिक बागेश्वर से एक्सक्लूसिव तस्वीरें
सरयू और गोमती के तट पर लगता है उत्तरायणी कौतिक. इस कौतिक में शामिल होते हैं आस-पास के सैकड़ों गांवों के लोग शामिल होते हैं. क्या बच्चे क्या बूढ़े, क्या स्त्री क्या पुरुष पुरुष, क्या युवक क्या... Read more
कोई भी संस्कृति अपनी भाषा बोली को संरक्षित किये बगैर लम्बे समय तक जीवित नहीं रह सकती. यह बात छोटी आबादी वाली जनजातियों के सन्दर्भ में और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है. अपनी भाषा बोली के प्रत... Read more
पिथौरागढ़ की डीडीहाट तहसील में एक गांव है मड़. डीडीहाट से 15 किमी की दूरी पर चौबाटी क़स्बा है यहां मोटर मार्ग से करीब ढाई किमी की दूरी पर सूर्य का मंदिर है. Sun Temple in Pithoragarh यह सूर्य क... Read more
उत्तराखण्ड का पारंपरिक पहनावा और जेवर
पहाड़ में नंगा सर रहना बुरा समझा जाता था. सर में टोपी डालने का चलन था. कम हैसियत वाले धोती बांधते. मलेसिया और जूट के पजामे और कुरता बनता. खादी और सूती कपड़ा खूब चलन में था. सुराव, मिरजई, फतु... Read more
सौतिया-बाँट, भाई-बाँट : विधवाओं को उत्तराधिकार देने वाले कुमाऊँ के सामाजिक कानून
समाज में विधवा स्त्री के त्याज्य तथा अस्वीकार्य माने जाने की ऐतिहासिक सामाजिक विकृति, देश के एक बड़े हिस्से में विधवाओं के सती होने की कुप्रथा के प्रचलन से ही स्पष्ट होती है. इस पर काफी कुछ... Read more
कुमाऊं में बैठकी होली शुरू हो गई है
बीते रविवार से पूरे कुमाऊं में बैठकी होली शुरू हो चुकी है. सुनने में बड़ा अटपटा है क्योंकि देश और दुनिया के लिये अभी होली आने में पूरे तीन महीने बाकि हैं. लेकिन बीते हुए कल से या यानि पौष माह... Read more
पहाड़ में काम करने न करने पर लोक विश्वास
पहाड़ में कुछ काम करने न करने पर कुछ लोक विश्वास भी बने रहे जैसे यात्रा करने में वारदोख का विचार. व्यक्ति की पूरब दिशा की ओर सोम बार और छनचर को पश्चिम की तरफ, इतवार और शुक्र को उत्तर की ओर,... Read more
पिज्जा, बर्गर और फास्ट फूड के इस दौर में यदि उत्तराखण्ड के परम्परागत व्यंजनों की बात करें तो आधुनिक पीढ़ी को ताज्जुब नहीं होना चाहिये कि उस दौर में रिश्तेदारी में जाने के लिए भी ये ही पकवान... Read more
बड़ी मेहनत से बनती है पहाड़ की कुड़ी
पहाड़ में परंपरागत बने मकानों में स्थानीय रूप से उपलब्ध पत्थर, मिट्टी, लकड़ी का प्रयोग होता रहा. हवा और धूप के लिए दिशा ज्ञान या वास्तु का प्रयोग किया जाता रहा. मिट्टी की परख कर स्थान... Read more
जल्द ही लुप्त हो जायेंगे परंपरागत पहाड़ी लुहार
उसके चेहरे पर आग की दहक से उभरने वाली चमक बिछी थी… आंखें भट्ठी की आग पर टिकी हुईं. बीच-बीच में लहकते कोयले से भभकती चिंगारियां भट्ठी से बाहर की ओर लपक पड़तीं और वह सरिये के अगले सिरे प... Read more