कहो देबी, कथा कहो – 4
पिछली कड़ी नवीन और मैंने एन सी सी भी ले ली. एन सी सी की अपनी प्लाटून की परेड के दौरान एक दिन सावधान!…विश्राम! के बाद सुस्ताते समय एक कैडेट ने धीरे से पूछा, “तुम देवेन एकाकी हो?” मैंने उ... Read more
अल्मोड़े का दशहरा
अल्मोड़ा नगर में पुतले बनाने की परंपरा की शुरूआत कब हुई इसके बारे में कुछ पता नहीं है हुक्का क्लब अल्मोड़ा से निकलने वाली पत्रिका ‘पुरवासी’ के एक अंक में 1930 में बनाए गए रावण के... Read more
बुरा मान गए हमारे पितर
चौमास बीता. श्राद्ध भी बीत गए. आस पास के बृत्ति ब्राह्मणों के साथ घर के बड़े बूढ़े, कच्चे बच्चे सब श्राद्धों का खाना खा के तृप्त थे. खेतों सग्वाडो में कद्दू पक के पीले पड़ गए. ककड़ियां पीली लाल... Read more
साझा कलम : 12 सुनील कुमार
[एक ज़रूरी पहल के तौर पर हम अपने पाठकों से काफल ट्री के लिए उनका गद्य लेखन भी आमंत्रित कर रहे हैं. अपने गाँव, शहर, कस्बे या परिवार की किसी अन्तरंग और आवश्यक स्मृति को विषय बना कर आप चार सौ से... Read more
पुट्टन चाचा और पाउट्स वाली चाची
पहली बार पहाड़ जाकर पुट्टन चाचा वापस आए तो सबसे पहले अपनी फेसबुक प्रोफाइल में खुद के बारे में लिखा- ‘अ ट्रैवलर- इन सर्च ऑफ लाइफ.’ प्रोफाइल फोटो में खाई किनारे खड़ी एक पहाड़ी सेल्फी लगाई और क... Read more
चादर ट्रेक लद्दाख क्षेत्र : एक फोटो निबंध
चादर ट्रेक लद्दाख क्षेत्र के जमी हुई ज़ंस्कार नदी के ऊपर सर्दियों में की जाने वाली एक दुर्गम ट्रेकिंग है. जंस्कार घाटी कि खड़ी चट्टानों की ऊंचाई 600 मीटर तक है और कुछ स्थानों में इसकी चौड़ाई... Read more
प्योर मैथमैटिक्स का रोमांस
अट्ठारह साल के एक नौजवान ने अपने पिता को लिखे पत्र में बड़े उत्साह से अपने रिसर्च टॉपिक के बारे में बताया. जवाब में भेजी गई चिट्ठी में पिता ने लिखा- मेरे बेटे, समानांतर रेखाओं के फेरे में तो... Read more
साझा कलम : 11 प्रीति सिंह परिहार
[एक ज़रूरी पहल के तौर पर हम अपने पाठकों से काफल ट्री के लिए उनका गद्य लेखन भी आमंत्रित कर रहे हैं. अपने गाँव, शहर, कस्बे या परिवार की किसी अन्तरंग और आवश्यक स्मृति को विषय बना कर आप चार सौ से... Read more
‘सब हो जायेगा’ वाले भाई साहब
‘चिंता मत करो, सब हो जायेगा !’ की तसल्ली देने वाले भाई लोगों की तादाद इन दिनों एकाएक काफी बढ़ चुकी है. जिसे देखो वो तसल्ली, भरोसा और आश्वासन जबान में लिए फिरता है. और जैसे ही कोई... Read more
बहुत कम समय भी रहता है देर तक
मन का गद्य -शिवप्रसाद जोशी एक हल्की सी ख़ुशी की आहट थी. लेकिन जल्द ही ये आवाज़ गुम हो गई. फिर देर तक एक बेचैनी बन गई. जैसे उस ख़ुशी को समझने का यत्न करती हुई. क्यों थी वो. क्या थी वो. बेचैनी... Read more