शो मस्ट गो ऑन
मुझ जैसा आदमी… जिसके पास करने को कुछ नहीं है… जो बिलकुल अकेला हो और उससे बढ़ कर बूढ़ा हो… वह क्या करे? अकेला बैठा बैठा. क्या याद करे अपनी जिंदगी के बीते पल को? कैदी बन गया हूँ अप... Read more
किसी भी समाज के निर्माण से लेकर उसके सांस्कृतिक एवं आर्थिक विकास में शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. शिक्षा औपचारिक तथा अनौपचारिक दोनों ही रूपों में प्राप्त की जाती है. अनौपचारिक शिक्ष... Read more
चप्पलों के अच्छे दिन
लंबे अरसे से वह बेरोज़गारों के पाँव तले घिसती हुई जिन्स की इमेज ढोती रही. उसका हमवार जूता, हर राह, हर मंज़िल पर अपनी चमक-धमक के लिए नामवर हुआ. मगर अब लगता है चप्पल के दिन फिर गए हैं. जूते के... Read more
छिपलाकोट अंतरयात्रा : चल उड़ जा रे पंछी
पिछली कड़ी : छिपलाकोट अंतरयात्रा : वो भूली दास्तां, लो फिर याद आ गई सुबह हो गई है. मौसम बिलकुल साफ है. सब लोग उठ गये हैँ. कोने में नाक पर उंगलियां हटाते दबाते भगवती बाबू सांस ऊपर नीचे कर प्रा... Read more
बिरुण पंचमि जाड़ि जामलि, बसंतपंचमि कान कामलि
पहाड़ों में इन दिनों होता है आनन्द और उत्सव का माहौल. अगले कुछ दिन गाँव के लोग मिलकर आंगन में खेल लगाते नज़र आयेंगे. अनेक तरह के लोकगीत जैसे – झोड़े, झुमटा, चांचरी आदि गाते पहाड़ी झूमते नज़र... Read more
हमारी दुनिया एक फ़ैसला-कुन तरीके से उलट रही थी जब ये जुमला बहुत आहिस्ता से फूंका गया था हमारे कानों में – ‘थिंक ग्लोबल एक्ट लोकल!’ कमज़ोर, वंचित और निर्णायक भूमिकाओं से बहुत दूर हाशिये पर रह... Read more
कसारदेवी के पहाड़ से ब्लू सुपरमून
Once in a blue moon, आपने अक्सर अंग्रेज़ी की इस कहावत का ज़िक्र किया होगा या फिर सुना होगा, पर शायद कभी इस बात पर गौर न किया हो की सफ़ेद चाँद के लिए ब्लू मून क्यों कहा जाता है और ये कब दिखता... Read more
कभी हिमालय की तलहटी में बसे गाँवों की आर्थिकी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले पशुपालकों के त्योहार लाया का महत्वपूर्ण स्थान था, लेकिन सरकारों की बेरुखी और नियोजन की अक्षमता व विपणन की सही... Read more
‘गिर्दा’ की जीवन कहानी
‘गिर्दा’ की पूरी जीवन कहानी यायावरी की है. हवलबाग के पास कोसी नदी के करीब ज्योली गांव में माता श्रीमती जीवन्ती तिवाड़ी और पिता हंसा दत्त तिवाड़ी के घर 10 सितम्बर, 1945 को उनका जन्म हुआ. पांच... Read more
आधुनिक चिकित्सा पद्धति एलोपैथी की शुरूआत तो उन्नीसवीं शताब्दी में हुई और देश में तो इसकी पहुंच आमजन तक स्वतंत्रता की प्राप्ति के बाद तक भी बहुत सीमित थी. उस दौर में शुद्ध खान-पान, स्वच्छ पर्... Read more