जाति की जड़ता जाये तो उसके जाने का जश्न मनायें
उत्तराखंड के शिल्पकार वर्ग में सामाजिक-शैक्षिक चेतना के अग्रदूत बलदेव सिंह आर्य (12 मई, 1912 से 22 दिसम्बर, 1992) का आज जन्मदिन है. सन् 1930 में 18 वर्ष की किशोरावस्था में निरंकुश बिट्रिश सत... Read more
गाँव में जाती है देव डोली. यह वर्षों से चली आ रही पहाड़ की प्राचीन परंपरा है. इसके जन-कल्याण से सम्बन्धित अधिमान इसे आदर्श लोक परंपरा का रूप देते हैं. गाँव के हर सदस्य, हर मौ, हर द्वार, हर प... Read more
यूँ ही मन लगा कर रियाज़ करते रहो
हर सुबह की तरह इस सुबह भी श्रीमतीजी और बच्चे बाथरूम के दरवाजे पर रुक कर, मुझे कुछ इस तरह देख रहे थे, जैसे राह चलते लोग रुक कर बन्दर का तमाशा देखते हैं. मैं गलगलिया की तरह मुँह ऊपर कर के कभी... Read more
मिशन ‘हौसला’ एक उम्मीद है उत्तराखंड के लिए. इसे वो लोग अंजाम दे रहे हैं जिनके लिए आपके मन में हज़ार शंकाएं हैं. उसे रखिए. शंकाएं और सवाल ही अंततः संस्थाओं के सबसे काबिल दोस्त साब... Read more
कोरोना वायरस हमारे फेफड़ों पर हमला करता है, इसलिए यह तो तय है कि उससे लड़ने के लिए हमें अपने फेफड़ों को ही सबसे ज्यादा ताकतवर बनाना होगा. फेफड़ों को ताकतवर बनाने के लिए हमें अपनी सांस पर काम... Read more
अल्मोड़े के नौला गाँव में जन्मे मथुरादत्त मठपाल ने आज सुबह अंतिम साँस ली. मथुरादत्त मठपाल कुमाऊनी के अभिभावकों में एक थे. मथुरा दत्त मठपाल गढ़वाली और कुमाऊनी बोली के संरक्षण के लिये संघर्षरत... Read more
एक शब्दहीन नदी: हंसा और शंकर के बहाने न जाने कितने पहाड़ियों का सच कहती शैलेश मटियानी की कहानी
‘माई डियर हंसा!’‘ले प्यारी, इस दफा तेरे आर्डर की मुताबिक, खुले पोस्टकार्ड की जगह पर, बंद इंगलैंड लेटर भेज रहा हूँ. हकीकत तो यही हुई कि लवलेटर जरा सेक्रिट किस्म की वस्तु ही... Read more
कोरोना का सत्कार
शीर्षक थोड़ा अटपटा है. धैर्य रखिए, पूरा पढ़ने के बाद समझ में आएगा. ‘अतिथि देवो भव:’ हमारी प्राचीन भारतीय परम्परा का सूत्र-वाक्य है. बचपन से हम सुनते आ रहे हैं कि अतिथि को ईश्वर का स्वरूप मान... Read more
मानव सभ्यता की बसावट के साथ ही अल्मोड़ा का अपना पृथक ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक महत्व रहा है. लाखू उडियार, फलसीमा, कसार देवी जैसे शहर के निकट के ही के प्रागैतिहासिक स्थल मानव सभ्यता की... Read more
पातलीबगड़ के गुलदार
जानवर और इंसान के सम्बंध काफी नजदीकी और नाज़ुक रहे हैं और आज भी हैं, आए दिन लगातार खबरें आती हैं तेंदुए (गुलदार) और इंसानी टकराव की किंतु पिछले दिनो कुछ ऐसा देखा और महसूस किया जो आजकल के समय... Read more