गाली में भी वात्सल्य छलकता है कुमाउनी लोकजीवन में
किसी भी सभ्य समाज में गाली एक कुत्सित व निदंनीय व्यवहार का ही परिचायक है, जिसकी उपज क्रोधजन्य है और परिणति अपने मनोभावों से दूसरों के दिल को चुभने वाले शब्द कहकर मानसिक रूप से प्रताड़ित करना... Read more
कुमाऊं के रणबांकुरों की विरासत है छोलिया नृत्य
कुमाऊं की बेजोड़ सांस्कृतिक परम्पराओं व लोककलाओं का अपना समृद्ध इतिहास रहा है. इन लोकपरम्पराओं की जड़ें हमें अपने इतिहास तथा पुरातन समाज की गौरवपूर्ण गाथाओं से भी जोड़ती हैं. कुमाऊं का प्रति... Read more
वाह रे! तू भी क्या किस्मत लेकर आया इस दुनियां में. पथरीले पत्थरों के बीच से तेरा ये दीदार बहुत कुछ कह जाता है, पहाड़ की इस पहाड़ सी जिन्दगी और अपने वजूद की जुत्सजू की दास्तां. पत्थरों से भी... Read more
उतरैणी के बहाने बचपन की यादें
असौज का सारा कारोबार समेटकर जाड़ों में जब सारे काम निबट जाते तो हमारी बुब (बुआ) कुछ समय के लिए हमारे घर यानि अपने मायके आती. कभी नानि बुब (छोटी बुआ) तो कभी ठुलि बुब (बड़ी बुआ). जब दोनों आ जा... Read more
प्रताप भैया यदि हमारे बीच होते तो 88 वर्ष आज के दिन पूरे करते. दस वर्ष पूर्व संसार से विदा हुए प्रताप भैया ने 78 बसन्त जिस जिन्दादिली, उत्साह एवं ऊर्जावान ढंग से बिताये, वह हर युवा के लिए ईष... Read more
सिद्धों व सन्तों की तपोभूमि भी रहा भवाली क्षेत्र
भवाली, कुमाऊं क्षेत्र का प्रवेश द्वार होने के कारण देश के दूरदराज के क्षेत्रों से आने वाले परिब्राजक बद्रीनाथ, केदारनाथ आदि क्षेत्रों के तीर्थाटन को जब यहां से गुजरे तो इसके आस-पास का नयनाभि... Read more
’प्राणो वा अन्नः’ अन्न ही प्राण है, यह वेदोक्त बात है. अन्न को ब्रह्म का स्वरूप भी कहा गया है, अन्न को देवता तुल्य माना गया है, जो हमारे शरीर का पोषण करता है. कुदरत ने मानव शरीर की संरचना इस... Read more
हिन्दी भाषा में जहां एक अक्षर के शब्दों का प्रयोग अधिकांशतः कारक के रूप में ने, से, को, का, के, की? में, हे! आदि में अथवा समुच्चय के रूप में दो शब्दों अथवा वाक्यांशों के संयोजन में -या का ही... Read more
सदियों पहले श्यामखेत का पूरा भूभाग एक झील था
भवाली, कुमाऊॅ की यात्रा के लिए एक मुख्य जंक्शन होने के साथ ही रामगढ़, मुक्तेश्वर, तितोली, हरतफा, निगलाट जैसी फल पट्यिों के करीब होने से फलों के खरीद केन्द्र के रूप में भी अपनी पहचान रखता है.... Read more
पहाड़ के खोईक भिड़ महज घरों के आगे की निर्जीव दीवार भर नहीं हुआ करती बल्कि यहां के पारिवारिक, सामाजिक व सांस्कृतिक संबंधों की पहचान तथा चेतना के केन्द्र थे. पहाड़ों की भौगोलिक संरचना जिस तरह... Read more