आसमान में धान बो रहा हूँ: विद्रोही की कविता
नई खेती -रमाशंकर यादव ‘विद्रोही’ मैं किसान हूँ आसमान में धान बो रहा हूँ कुछ लोग कह रहे हैं कि पगले! आसमान में धान नहीं जमा करता मैं कहता हूँ पगले! अगर ज़मीन पर भगवान जम सकता है त... Read more
पाब्लो नेरुदा से एक बातचीत
पाब्लो नेरुदा (12 जुलाई 1904 – 23 सितंबर 1973) की रहस्यमय -सी मृत्यु पर हिन्दी दुनिया में विशेष चर्चा नहीं हुई‐ शायद इसलिए कि उससे कुछ ही पहले नेरुदा को नोबेल पुरस्कार मिलने पर पक्ष-वि... Read more
ग्राहक विष्णु खरे दो बार चक्कर लगा चुकने के बाद तीसरी बार वह अंदर घुसा. दूकान ख़ाली थी सिर्फ़ एक पाँच बरस का ख़ुश बच्चा आईने के सामने कुर्सी पर बैठा हुआ था जिसका बाप लम्बी बेंच से आधी निगाह... Read more
मंटो क्यों लिखता था
मैं क्यों लिखता हूँ -सआदत हसन मंटो मैं क्यों लिखता हूँ? यह एक ऐसा सवाल है कि मैं क्यों खाता हूँ… मैं क्यों पीता हूँ… लेकिन इस दृष्टि से मुख़तलिफ है कि खाने और पीने पर मुझे रुपए ख... Read more
(विष्णु खरे – 1940 से 2018) दिल्ली में अपना फ़्लैट बनवा लेने के बाद एक आदमी सोचता है (कविता सुनें) पिता होते तो उन्हें कौन सा कमरा देता? उन्हें देता वह छोटा कमरा जिसके साथ गुसलखाना भी... Read more
लड़कियों के बाप
विष्णु खरे समकालीन सृजन परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण नाम रहे. मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में 9 फरवरी 1940 को जन्मे विष्णु खरे ने अंग्रेजी साहित्य में स्नातकोत्तर की डिग्री ली. इन्दौर से प्रक... Read more
अल्मोड़ा से बम्बई चले डेढ़ यार – तीसरी क़िस्त कठोपनिषद की तीसरी वल्ली (अध्याय) का पहला मंत्र है: ऊर्ध्व्मूलोSवक्शाख एशोSश्वत्थः सनातनः ! तदेव शुक्रं तद् ब्रह्म तदेवामृतमुच्यते ! तस्मिंल्लोकाःश्... Read more
मेरी नानी हिमालय पर मूंग दल रही है
रमाशंकर यादव ‘विद्रोही’ (3 दिसम्बर 1957 – 8 दिसंबर 2015) हिंदी के लोकप्रिय जनकवि हैं. वे स्नातकोत्तर छात्र के रूप में जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय से जुड़े. यह जुड़ाव आजीवन... Read more
गाबो और उनकी शकीरा
आज से करीब सोलह साल पहले अंग्रेज़ी अख़बार ‘द गार्जियन’ ने शनिवार 8 जून 2002 को नोबेल विजेता गाब्रिएल गार्सीया मारकेज़ का यह आलेख प्रकाशित किया था. शकीरा के संगीत ने तमाम लातीन अमरीक... Read more
झरिया में है नोकिया का टावर
झरिया में है नोकिया का टावर -शेफाली फ्रॉस्ट तुम आयी हो लपटती ज़मीन की गुफाओं से निकल, तुम आयी हो दो दिन तीन रात के सफर के बाद, तुम उतर के इधर देखती हो फिर उधर बिछा देती हो नए शहर की नालियों... Read more