कुमाऊँ में रुहेला आक्रमणकारियों ने लगभग सभी मन्दिरों को लूटा और उनमें रखी हुई मूर्तियों को तोड़ा. जागेश्वर ही अपनी स्थिति के कारण एक ऐसा प्राचीन स्थल है जहाँ वे नहीं पहुँच पाये. जागेश्वर कुम... Read more
रामनगर में पंपापुरी में स्थित एक सामान्य से घर की पहली मंजिल पर स्थित एक कमरे में जब आप जाते हैं तो दुबले शरीर का एक बूढ़ा आदमी किताबों से घिरा मिलता है. मोटे लैंस वाला चश्मा पहने, लगातार कि... Read more
पीन सुंदरी: उत्तराखण्ड की नायिका कथा
मेरे एक दोस्त कहते थे महिलाएँ सब एक सी होती हैं. उनका संदर्भ शायद शेक्सपियर के औरत तेरा दूसरा नाम बेवफाई है, से जुड़ता होगा. मैं इतना सार्वभौम सामान्यीकरण करने का दुःसाहस नहीं कर सकता. कुछ न... Read more
‘‘आज तक राजा ने हमको पढ़ने-लिखने का अवसर नहीं दिया जिससे हम बायां अंगूठा लगाने को मजबूऱ हैं, लेकिन अब अगर राजा के कर्मचारी ‘कर’ आदि वसूलने आयें तो हमें उन्हें अपना दायां अंगूठा दिखाना चाहिए... Read more
उत्तराखण्ड के लोक संगीत के एक युग थे जीत सिंह नेगी
एक पखवाड़े के भीतर उत्तराखण्ड के लोक संगीत को दूसरा बड़ा झटका रविवार 21 जून 2020 को लगा, जब यहॉ के लोकसंगीत के एक आधार स्तम्भ जीत सिंह नेगी का 94 साल की उम्र में देहरादून में निधन हो गया. इस... Read more
साल 2014 में मैं जब जीत सिंह नेगीजी से पहली बार रूबरू मिला था तो सोचा था कि वापसी में ढेर सारे गीतों का खज़ाना मेरे पास होगा. ये जानकर बहुत कष्ट हुआ था कि खुद उनके पास भी उनके गीत ग्रामोफोन... Read more
बड़ी पुरानी कथा है. एक गाँव में एक लड़के को उसके बाप ने बड़े ही लाड़ से पाला. मां के मरने के बाद से ही घर में सालों से दो मर्द ही रहे. जब लड़के के ब्या की बारी आई तो इस बात से लड़की मिलने मे... Read more
गढ़वाली लोकगीत के पितामह जीत सिंह नेगी का निधन
1950 के दशक में एक खुदेड़ दिल्ली बंबई रहने वाले उत्तराखंड के प्रवासियों के बीच खूब लोकप्रिय हुआ, उसके बोल कुछ यूं थे – तू होली ऊंची डांडयूं मां, बीरा घसियारी का भेस मां, खुद मां तेरी सड... Read more
जून का पहला हफ्ता कुछ गर्म थपेड़ों वाला लेकिन मानसून की आश में झूमता हुआ मानसून पूर्व बारिशों में भीग रहा है,सूख रहा है,सँवर रहा है. शहर की आपाधापी में मौसम और प्रकृति को करीब से देखना मुश्क... Read more
‘जिस अंचल में बलभद्र सिंह जैसे वीरों का जन्म होता है, उसकी अपनी अलग रेजीमेंट होनी ही चाहिए.’ कमान्डर इन चीफ, पी. रोबर्टस ने सन् 1884 में तत्कालीन गर्वनर जनरल लार्ड डफरिन को गढ़वालियों की एक... Read more