कुमाऊनी जागर शैली में शिव सती विवाह की कहानी
1937 में जन्मे मार्क गैबेरिओ दर्शन, अरब और इस्लाम पर अपने अध्ययन के लिये जाने जाते हैं. 1963 में मार्क नेपाल में आये. नेपाल में 1967 तक उन्होंने फ्रेंच भाषा पढ़ाने का काम किया. नेपाल में रहन... Read more
कुमाऊँ में वस्त्र उद्योग का इतिहास
ऐसा प्रतीत होता है कि कुटीर उद्योग के रूप में वस्त्र निर्माण समूचे हिमालयी क्षेत्र में विद्यमान था. प्रत्येक गाँव में कृषक अपने गाय-बैलों के साथ भेड़ भी पालते थे, जिनके ऊन से कंबल व वस्त्र ब... Read more
(यह संस्मरण मेरे दादाजी (स्व. मथुरादत्त शर्मा), दादी (स्व. माधवी देवी), और परदादी, जिन्हें अम्मा कहा गया है, (स्व. दुर्गा देवी) की 1960 में बद्रीनाथ धाम की पैदल तीर्थ यात्रा पर उनसे सुने गए... Read more
बेरीनाग में पानी के लिए प्रदर्शन कर रहीं चालीस महिलाओं समेत 70 लोगों पर मुकदमा दर्ज. धारचूला के आपदा पीड़ितों को अगले हफ्ते से भोजन नहीं मिलेगा. हैरत की बात है ऐसी खबरें अब लोगों को कतई प्रभ... Read more
‘रमोलिया हाउस’ हमारी नई शुरुआत
लोकपर्व फूलदेई के मौके पर ‘काफल ट्री’ अपने निर्माणाधीन ‘सांस्कृतिक केंद्र’ के नाम की घोषणा कर रहा है. हल्द्वानी में स्थित इस सांस्कृतिक केंद्र को ‘रमोलिया हाउस’ नाम द... Read more
जार्ज VI के काल का सिक्का पहाड़ में कहलाया छेदु डबल
आज भले ही कुमाऊं में दिन के न जाने कितने गीत बनाये जाते हैं पर जन सरोकार से जुड़ा कोई गीत शायद ही कभी कोई बनता हो. राज्य में पिछले दो दशकों में बने गीत सुनकर लगता है कि जैसे प्रेम ही एकमात्र... Read more
जब बंदर और लंगूर के शरीर से बना हुड़का गमकता है
उत्तराखंड के संगीत की बात हुड़के बिना अधूरी है. देवी-देवताओं के जागर हों या उत्सव हुड़का पहाड़ का मुख्य वाद्य हुआ. कुमाऊं के पूज्य देवता गंगानाथ की जागर में तो केवल हुड़का ही बजाया जाता है.... Read more
कुमाऊं क्षेत्र में भाई-बहिन के प्रेम पर बनी रवायतें किसी से नहीं छिपी. लोककथा, लोकगीत, पर्व और परम्पराओं में इस प्रेम की अनेक झांकियां देखने को मिलती है. प्रचलित परम्पराओं के अनुसार बहिन के... Read more
पूंजीवादी व्यवस्था में : कबाड़ और उसका मूल्य
सुबह-सुबह फुटपाथ के किनारे पड़ी हुई पलास्टिक पालीथीन गत्ता कागज पालास्टिक से बने अन्य समान जो अब कूडे का आकार ले चुके है पड़े हुये दिखते है जहां पर हमें यह सब ज्यादा दिखता है उस इलाके के... Read more
सर्दियों में पहाड़ों की रातें
पूस की रातों में कांसे की थाली, ढोल-हुड़के की थाप पर देवता भी अवतरित किए जाते. कहीं गंगनाथ जू तो कहीं भोलानाथजी. भोल ज्यू तो जब आ गए तो बड़े शांत, बोलते भी धीरे-धीरे, कुछ बतायें तो जैसे सलाह... Read more