उत्तराखण्ड का पारंपरिक पहनावा और जेवर
पहाड़ में नंगा सर रहना बुरा समझा जाता था. सर में टोपी डालने का चलन था. कम हैसियत वाले धोती बांधते. मलेसिया और जूट के पजामे और कुरता बनता. खादी और सूती कपड़ा खूब चलन में था. सुराव, मिरजई, फतु... Read more
सौतिया-बाँट, भाई-बाँट : विधवाओं को उत्तराधिकार देने वाले कुमाऊँ के सामाजिक कानून
समाज में विधवा स्त्री के त्याज्य तथा अस्वीकार्य माने जाने की ऐतिहासिक सामाजिक विकृति, देश के एक बड़े हिस्से में विधवाओं के सती होने की कुप्रथा के प्रचलन से ही स्पष्ट होती है. इस पर काफी कुछ... Read more
कुमाऊं में बैठकी होली शुरू हो गई है
बीते रविवार से पूरे कुमाऊं में बैठकी होली शुरू हो चुकी है. सुनने में बड़ा अटपटा है क्योंकि देश और दुनिया के लिये अभी होली आने में पूरे तीन महीने बाकि हैं. लेकिन बीते हुए कल से या यानि पौष माह... Read more
पिथौरागढ़ के देवसिंह फील्ड का नाश करने एकबार फिर वापसी हुई है शरदोत्सव की
पिथौरागढ़ जिले के बीच में एक मैदान है दुनिया इसे देवसिंह फील्ड नाम से जानती है. दुनिया जानती है इसलिये कहा जा रहा है क्योंकि इस फील्ड ने अंतराष्ट्रीय स्तर के न जाने कितने खिलाड़ी दिये हैं और स... Read more
हल्द्वानी में जिस तेजी से हर समाज ने पनाह ली है उसी तेजी से उनके आहार व्यवहार रीति-रिवाज का प्रभाव भी यहां फैलता गया. बात करें सिंधी समाज की तो पता चलता है की खानपान की नई परंपरा से इस समाज... Read more
पहले हल्द्वानी के खेतों, बगीचों में जंगली जानवर घूमा करते थे, अब अलग-अलग नस्ल के कुत्ते भौंका करते हैं
आज स्थिति बिल्कुल अलग हो गई है पूरा हल्द्वानी और उसके आसपास के मीलों तक फैले गांव फतेहपुर, लामाचौड़, लालकुआं और रामपुर रोड के गांव सब कंक्रीट के जंगल में परिवर्तित हो गए हैं. एक गली, दूसरी,... Read more
बरेली के मिशनरी प्रचारक विलियम बटलर ने पहाड़ में मिशनरी का खूब प्रचार किया था. फतेहपुर के पास ईसाई नगर में पुराने चर्च में विलियम बटलर का नाम आज भी अंकित है ईसाई नगर हेनरी रैमजे के समय में ब... Read more
पहाड़ में काम करने न करने पर लोक विश्वास
पहाड़ में कुछ काम करने न करने पर कुछ लोक विश्वास भी बने रहे जैसे यात्रा करने में वारदोख का विचार. व्यक्ति की पूरब दिशा की ओर सोम बार और छनचर को पश्चिम की तरफ, इतवार और शुक्र को उत्तर की ओर,... Read more
झड़पातली : पहाड़ियों का टाइमपास
वैसे तो पहाड़ के लोगों के पास इतना टाइम ही नहीं होता की उसे पास किये जाने के लिए कुछ किया जा सके. सुबह चार बजे से लेकर रात तक हाड़-तोड़ मेहनत करने वाले पहाड़ियों की डिक्शनरी में शायद ही टाइमपास... Read more
झोली का नाम झोली ही कैसे पड़ा इस बारे में विद्वानों के अपनी अपनी बुद्धि और तजुर्बे के हिसाब से कई मत हो सकते हैं, जैसे मेरी अल्पबुद्धि कहती है कि ये मैदानी भागों में बनाए जाने वाले आलू के झो... Read more