रूस दौरे से लौटने पर नेहरू में क्यों जगी ‘कण्वाश्रम’ को जानने की जिज्ञासा
अंग्रेजी हुकूमत से भारत को आजादी मिलने के बाद वर्ष 1955 में रूस दौरे पर गए भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने जब रूस में महर्षि कण्व ऋषि की तपस्थली और चक्रवर्ती सम्राट भर... Read more
सूर्य भगवान की मूर्ति किसी धातु या पत्थर से निर्मित नहीं है बल्कि यह मूर्ति बड़ के पेड़ की लकड़ी से बनी है. लाल वर्ण, सात घोड़ों के रथ में सवार भगवान सूर्य देव को सर्वप्रेरक, सर्व प्रकाशक, स... Read more
उत्तराखण्ड में सिक्कों की छपाई का इतिहास
उत्तराखण्ड के गढ़वाल मंडल का श्रीनगर शहर मध्यकाल से ही सिक्कों के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध रहा था. उस समय इन सिक्कों को ‘टिमाशास’ कहा जाता था. जब-जब नेपाल या लद्दाख़ के रास्ते तिब्बत के साथ ह... Read more
कमला कांड : 1989 में जब हल्द्वानी दहल उठा था
6 सितम्बर 1989 का दिन भी हल्द्वानी में एक दुखद घटना वाला दिन रहा. दरअसल इस घटना के पीछे पुलिस के प्रति आम जनता का छिपा आक्रोश था जो पूरे कुमाऊं अंचल में छा गया पुलिस चौकियों-थानों में आगजनी,... Read more
मानव सभ्यता की बसावट के साथ ही अल्मोड़ा का अपना पृथक ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक महत्व रहा है. लाखू उडियार, फलसीमा, कसार देवी जैसे शहर के निकट के ही के प्रागैतिहासिक स्थल मानव सभ्यता की... Read more
पहली बार कुमाऊं शब्द का प्रयोग इतिहासकार अब्दुल्ला के ग्रंथ तारीखे-दाऊदी में मिलता है
उत्तराखण्ड के कुमाऊं मंडल को पहले कूर्मांचल नाम से जाना जाता था. इस भूभाग का कुर्मांचल नाम चम्पावत के नाग मंदिर के अभिलेखों में मिलता है. चम्पावत के नागमंदिर में राजा कल्याणचंद के काल के शिल... Read more
मानसखंड में अल्मोड़ा
मानसखण्ड में वर्तमान कुमाऊँ के विभिन्न स्थानों का वर्णन एवं महत्व प्रतिपादित किया गया है. मानसखण्ड के 21वें खण्ड में ‘मानसखण्ड’ नामक भौगोलिक क्षेत्र की सीमा निर्धारित की गई... Read more
उत्तराखंड में हिम मानव ‘येति’ के निशान
यति या मिच कांगामी (भयंकर हिममानव) सदियों से मनुष्य के लिए एक कौतुहल का विषय रहा है. अनेक देशों में हिम मानव पर शोध कार्य चल रहा है, लेकिन बिना प्रमाणिक तथ्यों के अभाव में यह रहस्यमय प्राणी... Read more
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अनेक लोगों ने योगदान दिया. बड़े नेताओं के अलावा ऐसे हज़ारों नाम हैं जो आज भी गुमनाम हैं. उत्तराखंड के ऐसे हज़ारों वीर हैं जिन्होंने आज़ादी की लड़ाई में अपने जान... Read more
जब उत्तराखंड के जंगलों में भटके दयानन्द सरस्वती
स्वामी दयानन्द जी 11 अप्रैल सन् 1855 को 30 वर्ष की उम्र में कुम्भ मेले की धूम सुनकर उत्तराखण्ड के वन पर्वतों की ओर प्रस्थान करते हुए हरिद्वार पहुंचे थे. हरिद्वार में स्वामी जी ने अपना निवास... Read more