विशाल हृदय वाले गुरूजी और हिरन का आखेट
हेडमास्टर साहब, मस्तमौला आदमी थे. टेंशन बिल्कुल नहीं पालते थे. बरसात के दिनों को छोड़कर, सालभर कक्षाएँ बाहर लगती थीं. स्कूल- बिल्डिंग के आगे एक खुला सा मैदान था. पहाड़ के हिसाब से अच्छा-खासा... Read more
प्रगतिशीलता का दुपट्टा और सुंदरता का कीड़ा
प्रगतिशीलता का दुपट्टा तह करके आलमारी में रख दूं तो इस सुंदरता वाले कीड़े ने मुझे भी कम नहीं काटा. जब तक दुपट्टा ओढ़े रहती, कीड़ा कुछ दूर-दूर से ही मंडराता था. दुपट्टा हटाते ही उसको खुला मैद... Read more
वीरेन्द्र डंगवाल : कविता और जीवन में सार्थक भरभण्ड -नवीन जोशी गरुड़ बटी छुटि मोटरा, रुकि मोटरा कोशिअघिला सीटा चान-चकोरा, पछिला सीटा जोशि हमारी गाड़ी कोसी पहुंची ही थी कि मेरे मुंह से बचपन में... Read more
साझा कलम: 5 – कौशल पन्त
[एक ज़रूरी पहल के तौर पर हम अपने पाठकों से काफल ट्री के लिए उनका गद्य लेखन भी आमंत्रित कर रहे हैं. अपने गाँव, शहर, कस्बे या परिवार की किसी अन्तरंग और आवश्यक स्मृति को विषय बना कर आप चार सौ से... Read more
सूरज की मिस्ड काल – 4
धूप अलसाई सी लेटी है सुबह दरवाजा खोलते ही धूप दिखी. एकदम दरवज्जे तक आकर ठहरी हुयी सी. जैसे सूदूर से कोई फ़रियादी किसी हाकिम के यहां पहुंच जाये. लेकिन उसके दरवज्जे में घुसने की हिम्मत न होने... Read more
आखिरकार 1895 में पेरिस के लुमिये भाइयों द्वारा आविष्कृत सिनेमा का माध्यम मूलत दृश्यों और ध्वनियों के मेल का ऐसा धोखा है जो अँधेरे में दिखाए जाने के बाद हर किसी को अपने सम्मोहन में कैद कर लेत... Read more
वीरेन डंगवाल (5.8.1947,कीर्ति नगर,टिहरी गढ़वाल – 28.9.2015, बरेली,उ.प्र.) हिंदी कवियों की उस पीढ़ी के अद्वितीय, शीर्षस्थ हस्ताक्षर माने जाएँगे जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जन्मी और सुमित्रानं... Read more
फ़ितूर सरीखा एक पक्का यक़ीन
आज वीरेन डंगवाल की चौथी पुण्यतिथि है. हिन्दी कविता और पत्रकारिता में अपनी ख़ास जगह रखने वाले इस महान व्यक्ति की कविता के बहाने इस लेख में हमारे साथी शिवप्रसाद जोशी बहुत सारा और कुछ कह रहे हैं... Read more
अध्यात्म और विपश्यना का यथार्थवाद
विपश्यना अध्यात्म का यथार्थवाद है. यहां न आत्मा है, न ईश्वर और न कोई सच्चिदान्द. ध्यान में उतरने के लिए कल्पना, मंत्र, यंत्र समेत किसी बाहरी आलंबन की जरूरत नहीं पड़ती. बुद्ध कहते हैं कि अमूर... Read more
साझा कलम: 4 – अनुराग उप्रेती
[एक ज़रूरी पहल के तौर पर हम अपने पाठकों से काफल ट्री के लिए उनका गद्य लेखन भी आमंत्रित कर रहे हैं. अपने गाँव, शहर, कस्बे या परिवार की किसी अन्तरंग और आवश्यक स्मृति को विषय बना कर आप चार सौ से... Read more