छुअ जिन मोरे लाल
सीन वन: सलामी आज से तकरीबन पच्चीस बरस पहले का होगा ये वाक़िया. गर्मियों के दिन थे और अपने बड़े भाई साहब के दोस्त के ननिहाल जाना हुआ. तब होता था ऐसा कुछ. दोस्त के मामा के ननिहाल या मामा के दो... Read more
ओएशडी सैप कह लो चाहे निजी शचिव कह लो – नीश हर जगह होने वाले हुए उत्राखंड में
उसने अपनी फुलौड़ी नाक को ज़रा सा टेढ़ीयाया और बोला- ‘वरफ़ारी हो रई वरफ़ारी’ (Personal Secretaries of Modern Politicians Satire) -`क्या’ -`अए वरफ़ारी सुरु हो गई… इश्नो... Read more
इस भुस्कैट हो चले विवाद से बेहतर है हम भाषा के मुद्दे को एक अलहदा तरीके से समझने की कोशिश करें. मुझे लगता है सबसे सशक्त भाषा वही है जिसमें किसी मुसीबत में फंसा आदमी अपनी जान बचाने के लिए किस... Read more
कल्पनीय सच का विधान : चंदन पांडेय के उपन्यास ‘वैधानिक गल्प’ के बहाने ‘आज’ से जिरह
सबकुछ सायास है वैधानिक गल्प में. उसके इस तरह से होने पर बहस होनी चाहिए क्योंकि जान बूझकर किसी घटना, व्यक्ति या विचारधारा को उजागर करने के उद्देश्य के लिए बुनी गयी चीज़ में वो मात्रा सबसे निर... Read more
बार बार तारीख को बदला है छात्रों ने
फरवरी का पहला दिन था. साल उन्नीस सौ साठ. सत्रह से उन्नीस बरस के चार लड़के अमरीका के उत्तरी कैरोलिना के ग्रीन्सबोरो शहर के एक रेस्टोरेंट ‘वूल्सवर्थ लंच काउन्टर’ में आए और खाना माँ... Read more
नए साल पर दूरदर्शन के जमाने की मीठी यादें
नए साल की ईव पर (न्यू इयर्स ईव जैसे फ्रेज़ ने भी जीवन में उन प्रोग्रामों की वजह से ही घुसपैठ की, वर्ना हैप्पी न्यू ईयर जैसे तीन ऊर्जाहीन शब्दों की शरण में ही जाना पड़ता था) दूरदर्शन का सबसे... Read more
जाता हुआ साल और लोकतंत्र के व्याकरण का गणित
साल के आख़िरी दिनों में जब हमारी पीढ़ी के पढ़े-लिखे-एम एन सी जैसी अबूझ नागरिकता वाली कम्पनियों में लगे, ज़्यादातर दोस्त शैम्पेन की बोतल और केक थामे कहवाघरों से निकलते दिख रहे हैं, ऐसी बहसों... Read more
इट इज़ नॉट ब्लाइंडनेस इट्स अ ब्लाइंडफ़ोल्ड
रिटायर होने के तीन माह पूर्व उनसे एक अनौपचारिक बातचीत थी. – अब तक कितने? – एक भी नहीं – कभी लगा नहीं कि इस क्रिमिनल को उड़ा दिया जाए? – बहुत सालों,... Read more
अपनी निगाह पर भी निगाह रखिये
आईपीसी में अपना बचाव करने का अधिकार है, न कर पाने का ‘अपराध’ नहीं है. कोई धारा नहीं जिसमें सेल्फ डिफेंस न कर पाने पर आपको सज़ा का प्रावधान हो. क्यों? क्योंकि अपराध को रोकने और अप... Read more
संविधान दिवस पर एक सरकारी सेवक कम लेखक का आत्मालाप
लिखना अपने होने को तस्दीक करना है Constitution Day Special Amit Srivastava हम क्यों लिखते हैं इससे पहले ये जानना ज़रूरी है कि वो क्या है जो हमें लिखने से रोकता है. कोई नियम, कोई क़ानून, कोड... Read more