खबर एनडीटीवी डाट कॉम पर प्रकाशित एक खबर के मुताबिक़ मोदी सरकार के राज में सरकारी कंपनियों को 2016-17 में 30 हजार करोड़ का घाटा हुआ है. इस खबर का आधार कैग की रिपोर्ट को बनाया गया है. कैग की रिपोर्ट के अनुसार मौजूदा नरेंद्र मोदी सरकार में ही हर साल 30 हजार करोड़ का कंपनियों को घाटा हुआ है.
बीमार चल रहे अधिकांश उपक्रमों (पीएसयू) में देश का हजारों करोड़ रुपये डूब रहा है. केंद्र सरकार के स्वामित्व वाले ये सार्वजनिक उपक्रम का घाटा बढ़ता जा रहा है. अभी तक देश की सरकारी कंपनियों के घाटे का आंकड़ा रिकॉर्ड एक लाख करोड़ को भी पार कर गया है.
2014-15 में 132 सार्वजनिक उपक्रमों को 30861 करोड़ का नेट लॉस फार द ईयर यानी संबंधित वर्ष में घाटा हुआ. 2015-16 में 153 उपक्रमों को 31957 करोड़ का वार्षिक नुकसान उठाना पड़ा. इस बीच समग्र घाटा 104756 करोड़ रहा. इसी तरह 2016-17 में कंपनियों का नेट लॉस 30678 करोड़ और समग्र घाटा 104730 करोड़ रहा.
कैग की रिपोर्ट के 2016-17 में सबसे ज्यादा स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया को नुकसान हुआ. कंपनी को इस वर्ष 3187 करोड़ का घाटा झेलना पड़ा. इसी तरह महानगर टेलीफोन निगम लिमिटेड को 2941 करोड़, हिंदुस्तान फोटोफिल्म्स कंपनी लिमिटेड को 2917, यूनाइडेट इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड को 1914, ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड को 1691 और राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड को 1263 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ. खास बात रही कि 173 सरकारी नियंत्रण कटेगरी की कंपनियों में से 41 को 2016-17 में ही 4308 करोड़ का नुकसान हो गया.
इस से पूर्व में कैग ने प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना (पीएमएसएसवाई) के तहत 6 नए एम्स की स्थापना में 4-5 वर्ष की देरी पर केंद्र की मोदी सरकार की खिंचाई की थी. रिपोर्ट में अपूर्ण परियोजना, प्रशासनिक उदासीनता, कमजोर निगरानी का भी जिक्र किया गया था.
इसके अलावा मोदी सरकार पर कैग की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम वर्ष 2017 तक सभी ग्रामीण बस्तियों को स्वच्छ पेयजल आपूर्ति की सुविधा उपलब्ध कराने के अपने लक्ष्य को पूरा करने में सरकार नाकाम रहा रहीं. रिपोर्ट में कहा गया है कि कार्यक्रम में कम से कम 50 प्रतिशत ग्रामीण आबादी को 2017 तक पाइप से पानी पहुंचाने का विचार था. समुचित योजना की कमी और कोष के खराब प्रबंधन के कारण विभिन्न योजनाओं के पूरा होने में बहुत देरी हुयी और लागत भी बढ़ गयी.
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